व्यक्तित्व विकास के लिए नशा पर नियंत्रण कितना जरूरी है, इसे एक-दो दृष्टांत से समझा जाये। एक साहबान जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिल्कुल नये शहर में ड्यूटी ज्वाइन करने पहुंचे तो कार्यस्थल पर बाद में पहुंचे, पहले पहुंच गये शराब के ठेके पर। छक कर सफर की खुमारी उतारी और रेस्ट हाउस में जाकर सो गये। नशे की नींद थी, जगने में थोड़ा विलंब हुआ। नहाये-धोये और लेट ही सही, पहुंच गये दफ्तर। उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि वे महक रहे थे और पूरा दफ्तर नाक-भौं सिकोड़ रहा था। उनकी बगल में बैठा एक युवक तो महक से उल्टियां करने लगा। भांडा फूट चुका था। पहले दिन से ही उस दफ्तर में उनके ऊपर दारूबाज का ठप्पा लगा और आप भरोसा कीजिए सीनियर, उम्रदराज और काबिल-जहीन होने के बावजूद वे उस इज्जत को तो नहीं ही पा सके, जिसके हकदार थे, अंततः उन्हें नौकरी छोड़कर चला जाना पड़ा। एक दूसरे साथी का जिक्र करूं। जहीन-तरीन, दिन में चार बार चेहरे पर पानी मारने वाले, साबुन से चेहरा चमका कर रखने वाले औऱ बड़ी नफासत से कपड़े पहनने वाले शख्स को आदत थी शाम में सुट्टा लगाने की, यानी गांजा पीने की। कहीं होते, शाम होते ही एकाध घंटे के लिए गायब हो ही जाते। लोग जान न जायें, इसलिए अपने कमरे पर सुट्टा लगाने का पूरा इंतजाम कर रखा था। एक छुट्टी के दिन जब उनके कमरे पर उनके दफ्तर के साथियों ने उनसे मिलने के लिए दस्तक दी तो किवाड़ के खुलते ही जो धुआं बाहर निकला, उससे उनके कैरियर में आग लग गयी। नशे के नाम पर तो बड़े-बड़े इल्म का जिक्र किया जा सकता है, मगर जो छोटे-छोटे पान, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू जैसे सामान हैं, वे भी अच्छा-खासा व्यक्ति को भिखमंगा बना देते हैं। नशा करने वाला व्यक्ति अपने औसान में कभी नहीं रह पाता, आर्थिक दबाव बोनस में पाता है। ताज्जुब की बात तो यह भी है कि नशे को जिंदगी का हिस्सा बना लेने वाला शख्स भी दूसरे नशेड़ी भाई पर कभी विश्वास नहीं करता। ठीक किसी कातिल की भांति। आपने देखा होगा, बड़े से बड़ा हत्यारा भी नहीं चाहता कि उसका बेटा गुनाहों के दलदल में फंसे। मेरी समझ से, बातें स्पष्ट हो चुकी होंगी। व्यक्तित्व विकास के लिए नशा से परहेज जरूरी है। बात समझ गये हों तो शत्रुघ्न सिन्हा की एक फिल्म का वह गाना तो गुनगुना ही सकते हैं-पान, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू ना शराब, हमको तो नशा है....। व्यक्तित्व विकास पर चर्चा अभी जारी रहेगी। धन्यवाद।
माफी जुर्म की परवरिश होती है, क्योंकि माफी मांग लेने से जुर्म का निशान नहीं मिटता।
नफासत से ही नशे से सावधान किया है। बधाई हो, वर्ना तो नशेड़ियों के साथ जो कुछ किया जाय, कम ही है। - अनोज, अजमेर (राजस्थान)
ReplyDeleteबहुत सुदर लिखा है...ज्ञानवर्द्धन हो रहा है बहुतों का...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteवाकई, नशे ने कई घर उजाड़े हैं। - देवेन्द्र सिंह, जमशेदपुर।
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