Saturday, January 23, 2010

रातोरात हो सकता है चमत्कार

चमत्कार का नाम तो आपने सुना होगा, चमत्कार को कई बार नमस्कार भी किया होगा। क्या आप नहीं चाहते कि आपके जीवन में कुछ चमत्कार हो? कोई कहे कि आपके जीवन में भी चमत्कार हो सकता है और बड़ी आसानी से हो सकता है, ठीक ऐसे जैसे आप पान की दुकान पर गए और दो-चार रुपये देकर पान खा लिया, मिठाई खाने की चाही और महज दस-बीस खर्च कर दो-चार रसगुल्ले खा लिए तो शायद ही भरोसा हो। मैं कहना चाहता हूं कि इससे भी आसान तरीके से (आसान इसलिए कि इस प्रक्रिया में कोई पैसा खर्च नहीं होने वाला) आपके जीवन में चमत्कार हो सकता है, यदि आप चाहें।

अभी पीछे की दो पोस्टों में आपने काउंटडाउन की तासिर जानी। इससे जस्ट आगे की बात बताना चाहता हूं। जो कहने जा रहा हूं, उसे हूबहू सही मान लेने का मेरा कोई आग्रह नहीं है। हां, विचार करने की गुजारिश जरूर है। दरअसल, इंसानियत का सलीका कुछ वादों और उन वादों को पूरा करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से ही रफ्तार पकड़ता है और मुकाम पाता है। इस राह में आदमी कुछ सही, कुछ गलत भी कर गुजरता है। पापी पेट का सवाल है, कहते आपने बहुत लोगों को सुना होगा। और लोग मान भी लेते हैं, माफ भी कर देते हैं। मगर, पापी पेट के लिए पाप करने का काम चलता रहता है, चलता रहता है। इसे रोका जा सकता है। तत्काल, तत्क्षण, बिना किसी पुलिस, बिना किसी कानून के।

अभी पिछले दिनों मैं सोच रहा था। कोई इंसान इंसानियत कायम रखने के लिए क्या करे? क्या करे?? दिमाग ने जो जवाब उगला, वह आपके पेशेनजर है, मुलाहिजा फरमाइए। विचार समझ में आ गया तो गारंटी है, चमत्कार जैसा ही होगा। इंसान कुछ करने के लिए हर रात खुद से कुछ संकल्पों पर विचार करे। उन संकल्पों को लागू करने की जहमत में पड़े बिना यह सोचे कि यदि संकल्प लेना ही पड़े तो वह किन-किन चीजों को अपने आचरण में समाहित करने के लिए संकल्प लेगा। मेरा मानना है कि व्यक्तित्व में बस इस एक कार्रवाई से चमत्कारिक चमक पैदा हो सकती है।

होगा क्या? यदि इंसानियत के लिए कुछ संकल्पों की दिशा में दिमाग दौड़ा तो लगने लगेगा कि आपको तंबाकू का सेवन नहीं करना चाहिए। सिगरेट-शराब से तौबा कर लेनी चाहिए। अब तक परोपकार किया नहीं, कल से कुछ इस ओर भी ध्यान दिया जाए। बच्चे को बेकार में डांट दिया, उससे माफी मांग लेनी चाहिए। बीवी के सिर में दर्द है, तीन दिनों से दवा के लिए कह रही है, कल लेता आऊं। फलां काम लटका है, कल निपटा लूं। फलां के चक्कर में जीवन बर्बाद हो रहा है, उससे छुटकारा पा लूं। फलां के साथ रहने से छवि खराब हो रही है, कल से उसके साथ नहीं दिखना है। अब तक भविष्य के लिए कुछ पैसे जमा नहीं किए, कल से कुछ बचत पर ध्यान देना है।

ये छोटी-छोटी बातें हैं, पर इसके प्रति आपका केयरलेसनेस आपके व्यक्तित्व को हल्का करता है, जबकि इसके प्रति जब आप केयरफुल होते हैं तो आपका व्यक्तित्व निखार पाता है। निखार पाता है कि नहीं? तो रातोरात आपका पूरा व्यक्तित्व केयरफुल हो जाए, यह चमत्कार जैसा है कि नहीं? है न? और यदि है तो इस चमत्कार को हासिल करने के लिए आपको करना क्या पड़ा? मेरी समझ से कुछ भी नहीं। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास को लेकर चर्चाओं का सिलसिला जारी रहेगा। पर, अगली कुछ पोस्टों में अच्छे पत्रकार के गुणधर्मो पर चर्चा होगी। दरअसल, भाई लोग पत्रकार और पत्रकारिता पर कुछ लिखने का दबाव बनाए हुए हैं और मैं भी कुछ कोशिशें करना चाहता हूं।

मुजफ्फरपुर के अधिवक्ता अरुण शर्मा का एसएमएस : बिहार (BIHAR) ही एक ऐसा स्टेट है जिसके हर अल्फाबेट से भारत का नाम आता है। बी से भारत, आई से इंडिया, एच से हिन्दुस्तान, ए से आर्यावर्त तथा आर से रेवाखंड। (अरुण शर्मा जी से आप arun.adhiwakta@gmail.com पर पत्राचार कर सकते हैं)

Friday, January 15, 2010

काउंटडाउन का मतलब टार्गेट पर नजर

बड़ा दिलचस्प शब्द है काउंटडाउन। इसके कुछ और चमत्कार देखिए। एक लड़का किसी नई कक्षा में नामांकन कराता है। अब फायनल एक्जाम के लिए उसके पास बारह महीने हैं। वह सोचता है, अरे बारह महीने हैं, बारह महीने। एक महीना बीता। वह सोचता है, अभी तो एक ही महीना गुजरा है, आगे ग्यारह महीने पड़े हैं। फिर एक महीना बीता। वह फिर सोचता है, एक और महीना ही तो गुजरा है। अभी तो दस महीने पड़े हैं। फिर एक महीना और बीता। अब भी उसके पास नौ महीने हैं। और जब छठे महीने से वह कोर्स की तैयारी के लिए सुर्खरू होता है तो मामला भारी पड़ जाता है। मेहनत बढ़ाता है तो बीमार पड़ जाता है, हाइपर टेंशन का शिकार हो जाता है। एकाध महीने इसी में यों ही गुजर जाते हैं। अब तो वह डरने लगा है। साथी छात्रों, शिक्षकों व अभिभावक सभी से नजरें चुराने लगा है। आखिर में या तो वह अच्छे मार्क नहीं ला पाता या फेल हो जाता है।

अब क्या यह बताने की जरूरत है कि वह किस सिंड्रोम का शिकार था? उसका माइंड काउंटअप का गोता लगा रहा था। इस काउंटअप ने उसका सत्यानाश कर दिया। गिनती वही थी, महीने उतने ही होते, पर यदि उसने काउंटडाउन किया होता तो तस्वीर दूसरी होती। जरा इसका भी जायजा लीजिए कि क्या होता? यदि छात्र का माइंड काउंटडाउन करता होता तो कोर्स पूरा करने के लिए जो बारह महीने थे, उसका गुजरने वाला एक-एक दिन उसके लिए वैल्यूएबल हो जाता। एक महीना के गुजरते उसका कलेजा धक मारता और वह इस चिंतन में गहरे डूब जाता कि अब उसके पास ग्यारह महीने ही हैं। फिर क्या होता? काउंटडाउन करते उसके माइंड का कोर्स के साथ एक निश्चित संबंध बैठता और गुजरते समय के साथ उसकी तैयारी सटीक होती चली जाती। फिर क्या यह बताने की जरूरत है कि उसका रिजल्ट क्या आता? नहीं न।

काउंटडाउन एक चमत्कारिक शब्द है। आप दुनिया के किसी हिस्से में हों, किसी फील्ड में काम कर रहे हों, यदि इसके अर्थो को समझकर इस पर सही ढंग से अमल किया तो इसके जो चमत्कारिक परिणाम होंगे, उसे आप ही हासिल करेंगे। एक बार फिर बताऊं, दुनिया में हर चीज की एक निश्चित अवधि होती है, निश्चित फ्रेम होता है, निश्चित सर्कल भी। उसी अवधि, उसी फ्रेम, उसी सर्कल में चीजें घूमती हैं। आपको इस निश्चित अवधि से अनजान नहीं रहना होगा। इस निश्चित अवधि का संज्ञान में आना, उसका भान होना ही काउंटडाउन है। काउंटडाउन उस मैकेनिज्म का नाम है, जिससे आप समय पर नजर रख सकते हैं और उसके अनुसार अपना भविष्य प्लान कर सकते हैं। काउंटडाउन का मतलब ही है टार्गेट पर नजर। और अब क्या यह कहने की जरूरत है कि जिस किसी व्यक्ति की अपने टार्गेट पर नजर होती है, सफल वही हो सकता है। तो मानेंगे न कि हमें आज से काउंटडाउन करना शुरू कर देना चाहिए? फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास और बेहतर भविष्य के टिप्स खोजती चर्चाएं अभी जारी रहेंगी।

देहरादून से पुरुषोत्तम जी का एसएमएस - यदि आप अपनी मुस्कुराहटों का इस्तेमाल नहीं करते तो आप ठीक उस अरबपति की भांति हैं, जिसके पैसे बैंक में पड़े हैं और जिसके पास चेकबुक नहीं है।

Wednesday, January 6, 2010

शुरू कीजिए काउंटडाउन

नया साल शुरू हो चुका है। इसके पांच दिन गुजर चुके। कल छठा दिन होगा, परसों सातवां, तरसों आठवां, फिर नौवां, दसवां और एक दिन निश्चित ही कोई दिन ऐसा भी होगा, जो इस साल का अंतिम दिन होगा। फिर शुरू होगा एक और नया साल। साल की शुरुआत से ही शुरू हो जाएगा उसके आखिरी दिन तक पहुंचने का सफर। सिलसिला चलता आ रहा है। सदियों से। काउंटडाउन, काउंटडाउन और सिर्फ काउंटडाउन। तिथियां आगे बढ़ती हैं, पर चलता है काउंटडाउन। ऐसे में एक आम आदमी क्या करे? खासकर व्यक्तित्व विकास के लिए क्या किया जाए? है न यह सवाल? एक बड़ा सवाल? तो आइए, जानते हैं कुछ नायाब चीज, लेते हैं कुछ नए संकल्प।

जी हां, जिंदगी का भी काउंटडाउन शुरू कर दीजिए। यह अटपटा लग सकता है, बकवास लग सकता है, पागल का प्रलाप लग सकता है, मगर है नहीं। गौर कीजिएगा तो लगेगा बात सच्ची है, काम की है। और यह मैं यूं ही नहीं कह रहा। आप सीधी गिनती गिनते हैं। इसका कोई अंत है क्या? गिनते जाइए, गिनते जाइए, गिनते जाइए। जहां खत्म करेंगे, वहां से भी एक, दो, तीन, चार, पांच.. बढ़ने की गुंजाइश बनी रहेगी। बनी रहेगी न? और यकीन मानिए, आप खत्म हो जाएंगे, गिनती चलती रहेगी, चलती रहेगी। गिनती पूरी नहीं होने वाली, इसे मान लीजिए। मान लेने में ही भलाई है। ध्यान रखिए, यहां गिनती गिनना बंद करने की सलाह नहीं दी जा रही है। न, कतई नहीं। गिनती गिनना बंद करने का मतलब जीवन खत्म, सांसें बंद, बातें खत्म। पर, अभी तो सांसें चल रही हैं। जीवन चल रहा है। बातें हो रही हैं। सलाह यह है कि काउंट कीजिए, पर अप नहीं डाउन। जी हां, काउंटडाउन। सइया निनानवे, अनठानवे सनतावने ..।

मैं बताऊं, आप मान लेंगे। आपके जीवन की घडि़यां निश्चित हैं। जिस दिन बच्चा जन्म लेता है, उस दिन उसकी उम्र सबसे ज्यादा होती है। आप पचास के हो गए, इसका मतलब? इसका मतलब आपके पास जीवन की घडि़यां सिकुड़ रही हैं। आप खत्म हो रहे हैं। और एक खत्म होता आदमी क्या करता है? एक बड़ा सवाल। व्यक्तित्व में शामिल करने वाला। इसका जवाब आपको चमत्कारिक बना देगा, यदि आपने इस पर गंभीरता से सोच लिया। कभी सोचा आपने कि खत्म होता आदमी क्या करता है? खत्म होता आदमी कभी लूट की बात नहीं करता। कभी चोरी की बात नहीं करता। कभी हिंसा की बात नहीं करता। कभी किसी को एक तिनके से भी जख्म पहुंचाने की बात नहीं करता। वह माफी मांगता चलता है। वह परोपकार की बात सोचता है। वह ईश्वर का भजन करने लगता है। वह आशीर्वाद देने लगता है। वह अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने लगता है।

है न चमत्कार की बात? यह सबकुछ मरता आदमी करता है। उफ, मरता आदमी! जिंदा आदमी क्या करता है? सोचिएगा तो शर्म आ जाएगी। जो जिंदा आदमी को करना चाहिए, वह मरता आदमी करता है तो यह शर्म की ही बात है। लेकिन, मैं कहता हूं, जिंदा आदमी यही कर सकता है। क्यों? क्योंकि वह काउंटअप करता है। वह आगे की गिनती गिनता है, जिसका कोई अंत नहीं है। अंतहीन सिलसिले में फंसा आदमी दुख को ही प्राप्त हो सकता है, भय को ही प्राप्त हो सकता है। दुख और भय से निपटारा पाना हो तो करना होगा जिंदगी का काउंटडाउन। एक बार काउंटडाउन का मिजाज बना तो समझिए मिला उपाय, संवरा भविष्य, संभला व्यक्तित्व। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास और भविष्य संवारने के टिप्स तलाशती काउंटडाउन पर चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

इलाहाबाद से सतीश चंद्र श्रीवास्तव का एसएमएस - 2010 का पांचवां दिन 'पंचतत्व' से आपके लिए एक महान शुभकामना लेकर आया है, नए साल में हर दिन आपकी सभी इच्छाएं पूरी हों।