Saturday, September 26, 2009

आप सभी को दशहरे की बधाई


यह भी याद करें,

यह भी फरियाद करें।

कि मिलता रहे

हमें, हम सबको,

सदा, सदा और हमेशा।

मां का प्यार... ,

बहन का प्यार... ,

कभी-कभी दुल्हन का भी प्यार... ।

Friday, September 25, 2009

फेट, ट्रस्ट, होप

मुझे याद आता है दुष्यंत की रचना का एक टुकड़ा। मैं बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूं, मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं .....। कविता किसी दूसरे अर्थ में लिखी गयी है, पर मुझे इसका जो मतलब समझ में आता है, उसका नजारा कराना चाहूंगा। नजारों की नजर यह है कि जो कुछ भी सामने दृष्टिगोचर है, कम से कम उस पर तो पूरी नजर फेर ही ली जाए। अंधेरा है तो अंधेरा कहिए, सुबह है तो सुबह। अंधेरे को सुबह कहने-समझने में खतरे ही खतरे हैं।

तीन दृष्टांत हैं, तीन तरह की घटनाएं। ये सभी के सामने घटती रहती हैं, पर शायद ही कभी किसी ने इसकी गहराई थामने की कोशिश की हो। आइए, कम से कम मौके और दस्तूर का लिहाज करते हुए अब इसकी गहराई नाप ली जाए। मेरा मानना है कि एक बार इन घटनाओं के जेरेसाया हकीकत और फसाने को ठीक-ठीक समझ गए तो संवर गया भविष्य, सुधर गया कल। वह कल जो कभी आता ही नहीं है। जब आता है तब आज बन जाता है। ये तीन बातें है फेट, ट्रस्ट और होप।

दृष्टांत एक - एक गांव में वहां के लोगों ने बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने का समय निश्चित किया। तय समय पर सारे लोग वहां प्रार्थना के लिए आए। पर, सभी खाली हाथ थे। खाली हाथ यानी प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ेंगे और काम मुकम्मल। पर, वहां एक ऐसा बच्चा भी आया, जिसके हाथों में छाता था। उसे भवितव्यता पर भरोसा था कि हमारे कृत्य यदि बारिश के लिए किए जा रहे हैं तो बारिश होगी। और यदि बारिश होगी तो भींगने से बचने के लिए उसके पास छाता था। यह क्या था। यह था फेट का नमूना।

दृष्टांत दो - एक बच्चे को आप आकाश में उछालते हैं। उसे तो अपनी मौत के भय से थर-थर कांपना चाहिए। पर नहीं, वह हंसता है, किलकारियां मारता है, चहकता है। उसे भरोसा है कि आप उसे गिरने नहीं देंगे, आप उसे मरने नहीं देंगे। क्या है यह? यह है ट्रस्ट।

दृष्टांत तीन - हर रात आप सोने जाते है। सोते भी हैं और सोने से पहले आप कल का पूरा मेनू तैयार कर लेते हैं। एक-एक मिनट तक का। यह करेंगे, वह करेंगे। यहां जाएंगे, वहां जाएंगे। कोई कभी यह नहीं सोचता कि अरे अभी सोया, कल जगेंगे कि नहीं पता नहीं। पर नहीं, आप या कोई ऐसा नहीं सोचता। क्या है यह? यह होप है।

फेट, ट्रस्ट, होप के बहुत सारे उदाहरण हो सकते हैं, पर समझने की बात यह है कि भविष्य संवारने के लिए चेतनशील व्यक्ति में इन तीन चीजों का होना मुझे जरूरी लगता है। आपमें किसी काम के शुरू करने से पहले छाता लेकर चलने वाला फेट होना चाहिए, अपने इर्द-गिर्द के माहौल-परिवेश से कुछ लम्हों- कुछ लोगों पर आपका ट्रस्ट होना चाहिए और एक बार सो गए तो फिर जगेंगे, ऐसा होप होना चाहिए। होना चाहिए कि नहीं? फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास को लेकर भविष्य संवारने के लिए टिप्स तलाशती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कही से ढूंढ़ लाओ दोस्तों, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है। एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है। एक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है। निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी, पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है। दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर, और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है। - दुष्यंत

Wednesday, September 23, 2009

मैं तूफान में भी चैन से सोता हूं....

आप कुछ कर रहे हैं औऱ आपका कलेजा कांप रहा है। क्या है इसका मतलब? मतलब साफ है कि कुछ न कुछ गलत है, कहीं न कहीं कमजोरी है। आप बोल रहे हैं और आपकी जुबां लड़खड़ा रही है। मतलब, या तो बोलना नहीं आता या जो बोल रहे हैं उसकी आपने तैयारी नहीं की है। जिंदगी के मुकाम पर जब आपकी उम्र बढ़ती जाती है तो आप भविष्य के गर्भ में तो प्रवेश करते जाते हैं, पर इसके साथ ही आप अतीत भी बनते जाते हैं। बीए की कक्षा का विद्यार्थी मनोहर पोथी नहीं पढ़ सकता। यदि पढ़ता है तो गलत है। जिन बाल - बच्चों के लिए आपका जीवन आदर्श बनना चाहिए, उनके सामने भी आप फ्रेशर्स बने रहेंगे तो माना जाएगा कि आपने जिस रास्ते पर अपनी जिंदगी को घसीटा है, वह गलत था। दिल्ली की ओर जाने वाले यदि सही रास्ते पर आगे बढ़ें तो वे दिल्ली ही पहुंचेंगे। रास्ता गलत होगा तो वे कहां पहुंच जाएंगे कहा नहीं जा सकता।

संदर्भ भविष्य का है और बात उसके संवारने की। एक कथा से बात बढ़ाना चाहूंगा। एक आदमी ने एक नौकर रखा। आदमी ने नौकर से पूछा कि तुम्हारी क्या खासियत है? नौकर का जवाब था - मैं तूफान में भी चैन से सोता हूं। आदमी उलझा, बोला - तुम्हारी बात समझ नहीं पाया। नौकर बोला - समझा भी नहीं पाऊंगा। आदमी बोला - क्यों? नौकर बोला - लोग विश्वास नहीं करते हैं। आदमी बोला - मैं विश्वास करूंगा। नौकर बोला - पर मैं बातों में नहीं, काम में विश्वास रखता हूं। आदमी उसका कायल हुए बिना नहीं रहा। संतुलित जुबान, खुद पर विश्वास का अजूबा नमूना, बोला - ठीक है, तुम्हें मौका देता हूं।

नौकर को मौका मिला। वह वहां नौकरी करने लगा। वह सामान्य व्यक्ति की तरह ही काम करता, पर काम करता रहता था। उसकी दिनचर्या दुरुस्त थी। उसके पहनावे पर कभी कोई अंगुली नहीं उठा सकता था। बातें सटीक करता था। आदमी को कभी किसी चीज के लिए उसे खास तौर से ताकीद करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मगर एक रात....।

मौसम खराब हुआ। आसमान में काले बादल घुमड़ आए। हवाओं ने जब गति पकड़ी और उसके आंधी का रूप अख्तियार करने की आशंका बनी तो आदमी घबराया। जिस मुहल्ले में वह रह रहा था, वहां के सभी लोगों में भगदड़ मची हुई थी। कोई पशुओं को छप्पर के नीचे बांध रहा था, कोई अनाज संभाल रहा था, कोई लकड़ियां बचाने की जुगत में लगा था। एक तरह से पूरे मुहल्ले में जाग हो गयी थी। ऐसे में ही आदमी ने नौकर को आवाज दी। पर, नौकर की ओर से कोई जवाब नहीं आया। एक-दो हांक लगाने के बाद वह भागा-भागा नौकर की झोपड़ी में पहुंच गया। देखता है कि नौकर आराम से चादर ताने गहरी नींद में पड़ा है और खर्राटे खींच रहा है।

अब तो आदमी आग-बबूला हो गया। झकझोर कर नौकर को जगाया और उस पर बिफर ही तो पड़ा। बड़े बकवास आदमी हो तुम, तूफान आने वाला है। पूरे मुहल्ले में भगदड़ मची हुई है और तुम खर्राटा खींच रहे हो। नौकर ने बड़े मासूमियत से पूछा - आखिर मुझसे क्या गलती हो गयी? आदमी बोला - बड़े खफ्ती आदमी हो। चलो बाहर। पशुओं को बाड़े में पहुंचाओ। लकड़ियों को घर में डालो कि वे भींगे नहीं। थोड़े अनाज भी बचा लो और घर में पहुंचा दो ताकि तूफान के दिनों में खाने-पीने की दिक्कत नहीं हो। नौकर ने जो कहा, भविष्य के लिए चिंता करने वालों को वह मार्क करना चाहिए। उसने कहा - पर यह सब तो मैं काफी पहले कर चुका हूं। आदमी अवाक।

नौकर बोला - जी हां, मैंने कहा था न कि मैं तूफान में भी चैन से सोता हूं। आप देख ही रहे हैं कि जब तूफान की आशंका से लोग भगदड़ मचाए हुए हैं, मैं यहां चैन से सो रहा था। यह मेरी लापरवाही नहीं थी। मुझे पता था कि यह तूफान के आने का महीना है और वह कभी भी आ सकता है। जब तूफान आ जाता तो मैं अकेला आदमी क्या-क्या करता। इसीलिए लकड़ियां सुखा कर पहले ही छप्पर के नीचे डाल दी थीं। अनाज इस महीने की शुरुआत में ही घर के अंदर पहुंचा दिया था। इतना ही नहीं, पिछले तीन-चार दिनों से मैंने पशुओं को रात में बाड़े में ही बांधना शुरू कर दिया है। अब बताइए मालिक, इस तूफान में मैं खर्राटे नहीं लूं तो पागल की तरह इधर-उधर भागता फिरूं?

नौकर की साइकोलाजी को यदि एक वाक्य में कहें तो कहा जा सकता है कि चिंता नहीं, सम्यक चिंतन से संवरता है भविष्य। मालिक तूफान के आने पर भविष्य की चिंता में घुल रहा था, पर नौकर इसका चिंतन काफी पहले कर चुका था और मौका आने पर तसल्ली में था, आराम में था। मुझे लगता है कि इस कथा से कुछ बातें साफ हुई होंगी। फिलहाल इतना ही। भविष्य को संवारने की दिशा में टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

एक चुटकुला - एक आदमी ने कहा- मुझे तो आंखें बंद करने पर भी दिखाई देता है। दूसरे ने पूछा - क्या? आदमी का जवाब था - अंधेरा।

Wednesday, September 9, 2009

फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की....

संदर्भ भविष्य को संवारने का है, शुरुआत करता हूं एक शेर से। मुलाहिजा फरमाइए। शेर है - फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। जब तक आप इस शेर की मस्ती को जज्ब करें, तब तक इसी के जेरेसाया मैं अपनी दो बात आपसे कह लूं। आप देखें कि मतलब कितना कारगर निकलता है।
इस शेर को पढ़ने से आपको लग सकता है कि यह तो जिद की बात है और जिद किसी बात में अच्छी नहीं होती। मगर नहीं। यदि आप भविष्य की चिंताओं में मशगूल हैं और इसे संवारने के प्रति गंभीर हैं तो यह शेर आपके लिए रामबाण औषद्यि की तरह काम आने वाला है। धैर्य के साथ मेरी बातों को पढ़ते जाइए।
आम तौर पर होता क्या है? आदमी एस्केपिंग हो जाता है। चंचल मन, क्या करे। कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर। कभी हां, कभी ना। कभी बीवी, कभी साली, कभी कोई और। इस शेर का लब्बोलुआब आपसे थोड़ा टिकने, थोड़ा रुकने की अपील करता है। यह एकाग्रता का भी आपसे आह्वान करता है। यह शेर आपसे कहता है कि स्थितियां - परिस्थितियां आपको उद्वेलित करेंगी, आंदोलित करेंगी, उदास बनाएंगी, निराश करेंगी, पर आप तो ठान ही लीजिए कि नहीं, हम नहीं घबराएंगे, हम नहीं भागेंगे, हम रुकेंगे, देखेंगे, समझेंगे, समझने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।
आम तौर पर होता क्या है? दृढ़ से दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाला व्यक्ति भी मुकाम तक पहुंचता-पहुंचता भटक जाता है। एक विचार का मुकम्मल संपादन हुआ नहीं कि दूसरे विचारों से वह घिर जाता है। दूसरे विचारों पर कुछ कदम चला नहीं कि तीसरे विचार उसे लुभाने लगते हैं। ऐसे में समझदारी के कुछ ही वर्षों में आदमी सैंडविच बनकर रह जाता है। भविष्य संवारने की चिंताएं भले उसके साथ हर कदम, हर सांस से कदमताल करती हों, पर वह पूरा जीवन भटकता रहता है, भटकता रहता है। जब वह बूढ़ा हो जाता है, उसकी इंद्रियां जवाब देने लगती हैं, जवाब दे जाती हैं तो वह अफसोस करने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाता। कोई चेतना आयी भी तो अब वह क्या कर लेगा?
और ऐसा होता क्यों है? ऐसा इसलिए होता है कि आदमी बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, पर जब कभी चुनौतियां उसके सामने आयीं, तभी वह घबरा जाता है। चुनौतियों को स्वीकारने का तो वह ख्याल भी नहीं कर पाता। जबकि चुनौतियां आती ही हैं भविष्य संवारने के लिए। जिसने चुनौतियां नहीं स्वीकारीं, उसका भविष्य क्या खाक संवरेगा? यह शेर आपके सामने बेहतर भविष्य लेकर आयी चुनौतियों को स्वीकारने का भी आपसे आग्रह कर रहा है।
और कोई यह चाहता हो कि उसका भविष्य संवरे तो उसे भविष्य के खतरे से भी पूर्व में ही सावधान रहने की जरूरत होती है। भोज के वक्त कोंहड़ा रोपने की कहावत तो आपने सुनी होगी। इसका मतलब जब बारिश शुरू हो जाए तब जलावन बचाने की चिंता करने से कुछ भी हाथ नहीं आता। इसकी तैयारी पहले से करने होती है। यह शेर आपको भविष्य में गिरने वाली बिजली से भी सावधान रहने का इशारा कर रहा है।
तो व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति जो अपना भविष्य भी संवारना चाहते हैं, उनसे मेरी एक अपील यही है कि आप कम से कम इस शेर को दिन में एक बार जरूर गुनगुनाइए। आइए एक बार फिर इस शेर को पढ़े- फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। फिलहाल इतना ही। भविष्य संवारने के लिए टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

विश्वास से ज्यादा जहां संशय घना हो जाए, वहां जिंदगी कमजोर होती है, पर जब आप यह सीख जाते हैं कि संशय के बीच भी विश्वास कैसे बरकरार रखा जाए, वहां जिंदगी मजबूत हो जाती है।

Monday, September 7, 2009

बाप की लाश और बेटी की परीक्षा

भविष्य की चिंताएं कैसे-कैसे फैसले कराती है, इसे मैंने देखा है और देखकर हैरान भी हुआ हूं। कुछ दृश्यों से आपको भी दो-चार कराना चाहूंगा। हो सकता है इन उदाहरणों से भविष्य और उसके मैकेनिज्म को समझने में आसानी हो और यह अनुभव किसी काम आ जाए।
पहला उदाहरण - एक गांव में एक व्यक्ति मर गया। उसकी बेटी मैट्रिक का एक्जाम दे रही थी और उस रोज भी उसका पेपर था। मैंने देखा कि बाप की लाश दरवाजे पर पड़ी थी और रोती बेटी को गांव वालों ने मोटरसाइकिल पर बिठाकर एक्जाम देने के लिए भेज दिया था। लोग चर्चा कर रहे थे, जाने वाला तो गया, अब इस लड़की का भविष्य क्यों खराब किया जाए?
दूसरा उदाहरण - कुछ दिनों पहले उसी गांव में एक लड़के की शादी होनी थी। शादी के लिए वही तिथि शुभ मानी गयी और तय भी कर ली गयी, जिस तिथि को उस लड़के को मैट्रिक का एक्जाम देना था। लड़के के घर से एक्जामिनेशन सेंटर की दूरी करीब तीस किलोमीटर थी। अब संयोग देखिए, जिस दिन बरात जानी थी, उस रोज रोडवेज में हड़ताल हो गयी। एक्जाम और शादी, लड़के के लिए तो दोनों ही भविष्य के लिए जरूरी चीजें थीं।
उसने अलस्सुबह साइकिल से तीस किलोमीटर की यात्रा की और निश्चित समय पर परीक्षा केन्द्र पहुंचा। उसी साइकिल से फिर उसने तीस किलोमीटर की दूरी तय की और बरात के लिए घर पहुंच गया। शादी तो हो गयी पर परीक्षा में वह फेल हो गया। पर, परीक्षा में फेल होने का फिक्र न तो लड़के को और न ही उसके किसी घर वाले को था। सभी का यही कहना था कि परीक्षा तो अगले साल भी आएगी। शादी का शुभ मुहूर्त में होना जरूरी था।
यह दोनों उदाहरण मेरी समझ से भविष्य के उस मैकेनिज्म को फोकस करते हैं, जहां सेचुरेशन लेवल पर भविष्य का अर्थ भी बदल जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति को इस सेचुरेशन लेवल को अलग कर समझने की जरूरत है। जैसे आप किसी काम में तल्लीनता से लगे रहते हैं और देखते ही देखते जब उसका निहितार्थ खत्म हो जाता है तो बाद में उस काम को याद करना भी आप जरूरी नहीं समझते।
कुछ बातें ऐसी हैं, जिसका फलाफल और निहितार्थ जानते रहने के बावजूद व्यक्ति उसे अपना भविष्य समझता है और उसे सुधारने में लगा रहता है। जैसे करीब नब्बे प्रतिशत बच्चे अपने अभिभावक को बुजुर्गावस्था में लात मार देते हैं, पर शायद ही कोई पिता हो जो अपने बच्चे का भविष्य संवारने से अपना मुंह मोड़ता हो। और इसी सिलसिले में यह भी कहना चाहूंगा कि बाप बुढ़ापे में भले अपने बेटों से लात खा रहा हो, पर वह कभी भी अपने बेटों का बुरा नहीं सोचता।
भविष्य बड़ा रहस्यमय चीज है। अनजान, अबूझ। धर्म - अध्यात्म और साधु-संतों तक की बातें उसका रहस्य नहीं खोल पातीं। और इसी रहस्य पर पकड़ बनानी है। तो कैसे बने पकड़? कैसे संवरे भविष्य? इस सिलसिले में अभी चर्चा जारी रहेगी। फिलहाल इतना ही।

ऐसा कहा जाता है कि जब आप हंसते हैं तो ईश्वर के लिए प्रार्थना करते हैं। जब आप दूसरों को हंसाते हैं तो ईश्वर आपके लिए प्रार्थना करता है। सबक - खुद खुश रहिए और दूसरों को भी खुश रखा कीजिए।