Friday, December 31, 2010

मुबारक हो नया साल

दिन-रात पड़ा है, गढ़ो घड़ा

कुछ तो लिख डालो पाती

नए साल की धमक जरा

धीमे से सुनना साथी।

धरती ने खोला आसमान

धीरे से चलना साथी

नए साल की धमक जरा

धीमे से सुनना साथी।

बहुत कुछ हुआ गुजरे साल
मुबारक हो नया साल।।

Thursday, December 23, 2010

एक शेक्सपीयर 'वे’ और एक 'ये’








एक का चमक रहा घर व गांव, दूसरे का डूब-धंस रहा

एक 'शेक्सपीयर’ थे ब्रिटेन के विलियम शेक्सपीयर। अपनी रचनाओं (नाटकों व कविताओं) के लिए विश्व भर में प्रसिद्धि पाई और अपने देश ब्रिटेन का नाम रोशन किया। और देखिए, देश और देशवासियों ने उन्हें क्या दिया। उनकी यादों को सहेजकर, उन्हें चमका कर और उन्हें दर्शनीय बना कर उन्हें फिर से जिंदा कर दिया। एवन नदी के किनारे स्ट्रैटफोर्ड है वह जगह, जहां स्थित एक घर में शेक्सपीयर जन्मे, खेले-कूदे और जवान हुए। आज उनका घर ही नहीं, पूरा स्ट्रैटफोर्ड अपान एवन नामक छोटा शहर विश्व के नक्शे पर पर्यटन स्थल के रूप में दमक रहा है। लंदन से 110 किलोमीटर दूर इस स्थल तक पहुंचने के लिए ट्रेन व बस सेवाएं दोनों हैं। प्रशंसकों ने तो शेक्सपीयर एक्सप्रेस नाम की भी एक ट्रेन चला दी है।

और एक थे अपने 'शेक्सपीयर’ रामवृक्ष बेनीपुरी। रचनाधर्मिता का मुक्ताकाश, साहित्य के पुरोधा, क्रांति की मशाल। एक नदी (नाम बागमती) के किनारे बसा है इनका भी गांव बेनीपुर। बस व ट्रेन तो छोडि़ए, इस गांव तक पैदल जाने का भी रास्ता नहीं है। दो बांधों के बीच टापू बने इस गांव को गुड़हन के जंगल ने अपनी आगोश में ले रखा है। हर साल आने वाली बाढ़ की गाद से पूरा गांव जमींदोज होता जा रहा है। और इसी गांव में है वह मकान, जहां हमारे 'शेक्सपीयर’ का जन्म हुआ था। यह मकान भी पूरे गांव के साथ रफ्ता-रफ्ता गायब होता जा रहा है। जो रफ्तार है, अगले पांच-सात सालों में तो यह जरूर ही गायब हो जाएगा।

आज अपने 'शेक्सपीयर’ की जयंती है। गांव वालों ने गुड़हन को काट कर रास्ता बना दिया है। घर और सामने लगी बेनीपुरी जी की प्रतिमा की साफ-सफाई भी कर दी है। बेनीपुरी जी के पुत्र महेन्द्र बेनीपुरी हर साल की तरह इस साल भी धूमधाम से जयंती मना रहे हैं। बेनीपुरी चेतना समिति की ओर से एक समारोह का भी आयोजन किया जा रहा है। इसमें प्लानिंग बोर्ड के उप चेयरमैन हरिकिशोर सिंह और स्थानीय विधायक राम सूरत राय शामिल हो रहे हैं। देखना है कि इस बार क्या घोषणाएं होती हैं? क्या फिर वही कि बेनीपुर को चमकाएंगे, यहां आकर गांव वालों के साथ पूरी रात बिताएंगे? विस्थापित होने को तैयार बेनीपुर गांव में रह रहे बेनीपुरी जी के परिजनों की मांग है, पुनर्वासन और मुआवजा। देखना है कि इस बार क्या यह उन्हें मिल पाता है?

Wednesday, December 22, 2010

कह रहा बेनीपुर, सबको राम-राम-राम


जिनके दिल में पूरे हिन्दुस्तान का दर्द बसा था, जिनका जीवन अंधकार के खिलाफ रोशनी की तलाश और बेचैनी में बीता, उनका गांव बेनीपुर पूरी दुनिया से विदा ले रहा है और सबको राम-राम-राम कह रहा है। कोई काम न आया और फिर आया 23 दिसंबर। आंदोलन के पर्याय, चिरविद्रोही, बिहार में समाजवाद के प्रथम प्रकल्पक, किसान आंदोलन के अग्रणी, निर्भीक पत्रकार व साहित्य के आकाश रामवृक्ष बेनीपुरी की जयंती मनाने का दिन। निश्चित रूप से इस रोज बेनीपुरी जी का देशभर में गुणगान किया जाएगा, पर वह धरती, जहां उन्होंने जन्म लिया, खेले, जवान हुए, आज 'बाय-बाय’ कर रही है।

जी हां, हर साल बागमती नदी का कहर झेलता, उत्तरी-दक्षिणी तटबंधों के बीच बसा और गुड़हन से ढंका यह गांव पांच वर्षों में 12 से 14 फुट जमीन के अंदर समा चुका है। कभी बिजली के लिए यहां लगा पोल खूंटे की तरह दिखता है। जिस मकान में बेनीपुरी जी का जन्म हुआ, उसी के सामने 1987 में लगाई गई थी उनकी प्रतिमा। इस पर उचक कर माला चढ़ाई जाती थी, आज वह एक साधारण आदमी के कद से भी नीचे हो गई है।

मुजफ्फरपुर से सीतामढ़ी के रास्ते में जनाढ़ से दाएं फूटता है बेनीपुर का रास्ता। मगर, पूरे सफर में कहीं कोई निशान नहीं मिलेगा, जिससे लगे कि आप राष्ट्र की धरोहर की ओर बढ़ रहे हैं। जनाढ़ से मुड़ते ही एक किलोमीटर पर मिलेगा मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी रेल लाइन के लिए बागमती पर बनता पुल। इसके नीचे से नदी पार करिए। मिलेगी पगडंडी, गुड़हन से ढंकी। रास्ता बताने वाला न हो तो भटक जाएंगे। बालू में धंसते पांवों के साथ चलिए करीब डेढ़ किलोमीटर, फिर आएगा बेनीपुर। कृषि कार्यों से दूर, गरीबी से कराहता, भूख और बीमारी से जूझता गांव।

लोग विस्थापितों की श्रेणी में हैं। करीब तीन किलोमीटर दूर बागमती बांध के पार एक दूसरा बेनीपुर बसाने की घोषणा हो चुकी है। पर, लोग वहां जाएं कैसे? पुनर्वास और मुआवजा की टकटकी है। इसी साल 30 जनवरी को गांव में ही प्रमंडलीय आयुक्त ने घोषणा की थी कि जून तक सभी को पुनर्वासित किया जाएगा, पर दिसंबर आ गया। लोग तैयार हैं, बस उचित फैसले का इंतजार है। इस गांव की एक सबसे बड़ी मांग यह है कि न घर रहा न खेती, सरकार कम से कम सभी को अंत्योदय योजना से जोड़ दे, ताकि दो जून रोटी का जुगाड़ हो जाए, ताकि भूखों मरना न पड़े।



एक शायर का कलाम - कल तक जिसके वजूद पर तूने कई खत लिखे थे उम्मीद के, अभी हाल की बात है, वो दरख्त प्यार का जल गया।