Wednesday, September 9, 2009

फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की....

संदर्भ भविष्य को संवारने का है, शुरुआत करता हूं एक शेर से। मुलाहिजा फरमाइए। शेर है - फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। जब तक आप इस शेर की मस्ती को जज्ब करें, तब तक इसी के जेरेसाया मैं अपनी दो बात आपसे कह लूं। आप देखें कि मतलब कितना कारगर निकलता है।
इस शेर को पढ़ने से आपको लग सकता है कि यह तो जिद की बात है और जिद किसी बात में अच्छी नहीं होती। मगर नहीं। यदि आप भविष्य की चिंताओं में मशगूल हैं और इसे संवारने के प्रति गंभीर हैं तो यह शेर आपके लिए रामबाण औषद्यि की तरह काम आने वाला है। धैर्य के साथ मेरी बातों को पढ़ते जाइए।
आम तौर पर होता क्या है? आदमी एस्केपिंग हो जाता है। चंचल मन, क्या करे। कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर। कभी हां, कभी ना। कभी बीवी, कभी साली, कभी कोई और। इस शेर का लब्बोलुआब आपसे थोड़ा टिकने, थोड़ा रुकने की अपील करता है। यह एकाग्रता का भी आपसे आह्वान करता है। यह शेर आपसे कहता है कि स्थितियां - परिस्थितियां आपको उद्वेलित करेंगी, आंदोलित करेंगी, उदास बनाएंगी, निराश करेंगी, पर आप तो ठान ही लीजिए कि नहीं, हम नहीं घबराएंगे, हम नहीं भागेंगे, हम रुकेंगे, देखेंगे, समझेंगे, समझने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।
आम तौर पर होता क्या है? दृढ़ से दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाला व्यक्ति भी मुकाम तक पहुंचता-पहुंचता भटक जाता है। एक विचार का मुकम्मल संपादन हुआ नहीं कि दूसरे विचारों से वह घिर जाता है। दूसरे विचारों पर कुछ कदम चला नहीं कि तीसरे विचार उसे लुभाने लगते हैं। ऐसे में समझदारी के कुछ ही वर्षों में आदमी सैंडविच बनकर रह जाता है। भविष्य संवारने की चिंताएं भले उसके साथ हर कदम, हर सांस से कदमताल करती हों, पर वह पूरा जीवन भटकता रहता है, भटकता रहता है। जब वह बूढ़ा हो जाता है, उसकी इंद्रियां जवाब देने लगती हैं, जवाब दे जाती हैं तो वह अफसोस करने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाता। कोई चेतना आयी भी तो अब वह क्या कर लेगा?
और ऐसा होता क्यों है? ऐसा इसलिए होता है कि आदमी बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, पर जब कभी चुनौतियां उसके सामने आयीं, तभी वह घबरा जाता है। चुनौतियों को स्वीकारने का तो वह ख्याल भी नहीं कर पाता। जबकि चुनौतियां आती ही हैं भविष्य संवारने के लिए। जिसने चुनौतियां नहीं स्वीकारीं, उसका भविष्य क्या खाक संवरेगा? यह शेर आपके सामने बेहतर भविष्य लेकर आयी चुनौतियों को स्वीकारने का भी आपसे आग्रह कर रहा है।
और कोई यह चाहता हो कि उसका भविष्य संवरे तो उसे भविष्य के खतरे से भी पूर्व में ही सावधान रहने की जरूरत होती है। भोज के वक्त कोंहड़ा रोपने की कहावत तो आपने सुनी होगी। इसका मतलब जब बारिश शुरू हो जाए तब जलावन बचाने की चिंता करने से कुछ भी हाथ नहीं आता। इसकी तैयारी पहले से करने होती है। यह शेर आपको भविष्य में गिरने वाली बिजली से भी सावधान रहने का इशारा कर रहा है।
तो व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति जो अपना भविष्य भी संवारना चाहते हैं, उनसे मेरी एक अपील यही है कि आप कम से कम इस शेर को दिन में एक बार जरूर गुनगुनाइए। आइए एक बार फिर इस शेर को पढ़े- फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। फिलहाल इतना ही। भविष्य संवारने के लिए टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

विश्वास से ज्यादा जहां संशय घना हो जाए, वहां जिंदगी कमजोर होती है, पर जब आप यह सीख जाते हैं कि संशय के बीच भी विश्वास कैसे बरकरार रखा जाए, वहां जिंदगी मजबूत हो जाती है।

17 comments:

  1. शानदार। पिछली पोस्ट से भी बेहतर। आप तो गजब लिख रहे हैं भई। एक शेर का इतना सुंदर विश्लेषण! वाह।

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  2. बढ़िया अभिव्यक्ति और सुन्दर शेर जरुर याद रखेंगे.

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  3. हां, एक बात कहना भूल गया शुक्ला जी। मुझे लगता है आप अपने इन विचारों को पुस्तक का आकार दे दें। एक पुस्तक के लायक सामग्री तो आपके ब्लाग पर इकट्ठा हो ही गयी है।

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  4. आपके चिंतन पर ताज्जुब होता है। आपमें मैनेजमेंट गुरु होने के सारे लक्षण मौजूद हैं। आपके विचार सर्वोत्तम हैं। लेखन शैली जानदार। और क्या कहूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं। आपसे एक ही आग्रह है, लिखते जाइए, लिखते जाइए, हम जैसे कम बुद्धि वालों को बड़ा ज्ञान मिल रहा है।

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  5. देवेन्द्र जी का सुझाव पसंद आया। एकलव्य जी शेर को याद रखेंगे, यह जानकर रोमांचित हुआ। संध्या जी का मैं आभारी हूं। ब्रजेश जी पिछली दो पोस्टों से मेरा गुणगान कर रहे हैं। उन्हें मेरा लेख समीक्षा के दृष्टिकोण से पढ़ना चाहिए, यह मेरा उन्हें सुझाव है।

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  6. वाह भई वाह। जहां फलक बिजलियां गिराये, वहीं आप आशियां बनाने की सलाह दे रहे हैं। यह क्या आ बैल मुझे मार जैसा नहीं होगा?

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  7. मैं तो सेफ गेम खेलता हूं मालिक।

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  8. रंजन जी, सेफ गेम खेलिए पर मेरा सुझाव है कि बाल को देखकर भागिए मत।

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  9. भविष्य पर अब समअप कीजिए और कोई नये विषय पर लिखना शुरू कीजिए।

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  10. बेहतरीन आलेख...पूर्णतः सहमत.

    क्या बात है:

    फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की,
    हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की।

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  11. Sir, your new story is very good. You have suficient matter to write a book.Please write a book on that very matter.
    SANJAY.KUMAR.UPADHYAY.
    BAGAHA

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  12. बहुत ही बढि़या लिखा है, बधाई

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  13. एक जिम्मेदार अविभावक की तरह अपने बच्चो को भविष्य की राह दिखाने वाली शिक्षाप्रद प्रस्तुती। भविष्य पर और अधिक जानकारियो का इंतजार है।

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  14. अखलाक जी की बात मान ही लूं। मैं भी सोचता हूं कि एक-दो आलेखों के साथ भविष्य को संवारने के टिप्स की सीरीज का समअप कर दिया जाए। आगे की टापिक्स की सूचना आगे के आलेखों में ही दी जाएगी।

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  15. शुक्ला जी, मैं कहना चाहूंगा कि अखलाक जी की बातों को तभी मानिए, जब आपको भी यह लगे कि आपने अपनी बात पूरी कर ली है। वैसे इस मामले में आप बेहतर फैसला कर सकते हैं।

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  16. लेखन शैली जानदार है

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