भविष्य की चिंताएं कैसे-कैसे फैसले कराती है, इसे मैंने देखा है और देखकर हैरान भी हुआ हूं। कुछ दृश्यों से आपको भी दो-चार कराना चाहूंगा। हो सकता है इन उदाहरणों से भविष्य और उसके मैकेनिज्म को समझने में आसानी हो और यह अनुभव किसी काम आ जाए।
पहला उदाहरण - एक गांव में एक व्यक्ति मर गया। उसकी बेटी मैट्रिक का एक्जाम दे रही थी और उस रोज भी उसका पेपर था। मैंने देखा कि बाप की लाश दरवाजे पर पड़ी थी और रोती बेटी को गांव वालों ने मोटरसाइकिल पर बिठाकर एक्जाम देने के लिए भेज दिया था। लोग चर्चा कर रहे थे, जाने वाला तो गया, अब इस लड़की का भविष्य क्यों खराब किया जाए?
दूसरा उदाहरण - कुछ दिनों पहले उसी गांव में एक लड़के की शादी होनी थी। शादी के लिए वही तिथि शुभ मानी गयी और तय भी कर ली गयी, जिस तिथि को उस लड़के को मैट्रिक का एक्जाम देना था। लड़के के घर से एक्जामिनेशन सेंटर की दूरी करीब तीस किलोमीटर थी। अब संयोग देखिए, जिस दिन बरात जानी थी, उस रोज रोडवेज में हड़ताल हो गयी। एक्जाम और शादी, लड़के के लिए तो दोनों ही भविष्य के लिए जरूरी चीजें थीं।
उसने अलस्सुबह साइकिल से तीस किलोमीटर की यात्रा की और निश्चित समय पर परीक्षा केन्द्र पहुंचा। उसी साइकिल से फिर उसने तीस किलोमीटर की दूरी तय की और बरात के लिए घर पहुंच गया। शादी तो हो गयी पर परीक्षा में वह फेल हो गया। पर, परीक्षा में फेल होने का फिक्र न तो लड़के को और न ही उसके किसी घर वाले को था। सभी का यही कहना था कि परीक्षा तो अगले साल भी आएगी। शादी का शुभ मुहूर्त में होना जरूरी था।
यह दोनों उदाहरण मेरी समझ से भविष्य के उस मैकेनिज्म को फोकस करते हैं, जहां सेचुरेशन लेवल पर भविष्य का अर्थ भी बदल जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति को इस सेचुरेशन लेवल को अलग कर समझने की जरूरत है। जैसे आप किसी काम में तल्लीनता से लगे रहते हैं और देखते ही देखते जब उसका निहितार्थ खत्म हो जाता है तो बाद में उस काम को याद करना भी आप जरूरी नहीं समझते।
कुछ बातें ऐसी हैं, जिसका फलाफल और निहितार्थ जानते रहने के बावजूद व्यक्ति उसे अपना भविष्य समझता है और उसे सुधारने में लगा रहता है। जैसे करीब नब्बे प्रतिशत बच्चे अपने अभिभावक को बुजुर्गावस्था में लात मार देते हैं, पर शायद ही कोई पिता हो जो अपने बच्चे का भविष्य संवारने से अपना मुंह मोड़ता हो। और इसी सिलसिले में यह भी कहना चाहूंगा कि बाप बुढ़ापे में भले अपने बेटों से लात खा रहा हो, पर वह कभी भी अपने बेटों का बुरा नहीं सोचता।
भविष्य बड़ा रहस्यमय चीज है। अनजान, अबूझ। धर्म - अध्यात्म और साधु-संतों तक की बातें उसका रहस्य नहीं खोल पातीं। और इसी रहस्य पर पकड़ बनानी है। तो कैसे बने पकड़? कैसे संवरे भविष्य? इस सिलसिले में अभी चर्चा जारी रहेगी। फिलहाल इतना ही।
ऐसा कहा जाता है कि जब आप हंसते हैं तो ईश्वर के लिए प्रार्थना करते हैं। जब आप दूसरों को हंसाते हैं तो ईश्वर आपके लिए प्रार्थना करता है। सबक - खुद खुश रहिए और दूसरों को भी खुश रखा कीजिए।
वाह भई वाह। शानदार लिखा है आपने। बिल्कुल मौलिक, बिल्कुल सरल अंदाज। एक बार फिर से बधाई। आपसे अब अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं।
ReplyDeleteशुक्ला जी, आपने मामला उठाया तो दिलचस्प अंदाज में, पर ऐसा लगता है कि कुछ जल्दबाजी में निपटा दिया। मेरी समझ से इस आलेख का लेंथ कुछ और होना चाहिए था। चलिए, इतना भी लिखा है, वह अच्छा ही लिखा है। सबसे बड़ी बात, आपके लेखन में रिद्म शानदार होता है। एक सांस में पढ़ने वाली पोस्ट होती है।
ReplyDeleteकौशल जी, इस पोस्ट पर कमेंट बाद में करूंगा। फिलहाल इतना ही कह सकता हूं कि आपने अच्छा लिखा है। कुछ तो ज्ञानबद्धन हुआ ही है।
ReplyDeleteलेकिन, अर्थ थोड़ा और स्पष्ट होना चाहिए था।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, आपने ठीक कहा। बहुत दिन हो गये थे। ब्लाग पर कुछ लिख नहीं पा रहा था। काम की व्यस्तता थी। पर बातें जेहन में घुमड़ रही थीं। शुरुआत कर दी है। आप लोगों का प्यार मिलता रहा तो तो बातें जो शुरू हुई हैं, वह पूरी भी जरूर होंगी। वादा करता हूं, इस सीरीज की अगली पोस्ट वहीं से शुरू करूंगा जहां से यहां लिखना समाप्त हुआ है। मेरे लेखन में एक अच्छा रिदम आपने पकड़ा, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। धन्यवाद।
ReplyDeleteअद्भुत। मजा आ गया। वाकई विचार करने लायक बात है। लगातार लिखते रहें। विचारों को परोसते रहें।
ReplyDeleteएम. अखलाक
अखलाक साहब, आप मेरे मित्र हैं और पेशे से पत्रकार। आप भीड़तंत्र वाली टिप्पणी न करें। आप जरा मेरे लेखों के गंभीरता से पढ़ें और समालोचनात्मक टिप्प्णी करें। आपसे तो मुझे यही उम्मीद है। फिलहाल आपने टिप्पणी कर इस ब्लाग की टीआरपी बढ़ाई है, इसके लिए आपको लख लख बधाइयां।
ReplyDeleteअच्छा रहा सबक!! नोट करके रख लिया.
ReplyDeleteआपने तो एक गंभीर बात बतायी है ,
ReplyDeleteआभार आपका !
उड़न तस्तरी की ओर से आयी टिप्पणी खुश करने वाली है। इनकी टिप्पणियों में हमेशा सकारात्मकता झलकती है। इससे सीख लेने की जरूरत है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और रोचक विचार ज्ञानबद्धन हुआ।
ReplyDelete¥æÂÙð Ìô çÎÜ ·¤ô Ûæ·¤ÛæôÚ çÎØæÐ ·¤æàæ °ðâè â×Ûæ âÕ·¤ô ãôÌèÐ °·¤ ¥ÙéÚôÏ ãô»æ ç·¤ ¥Õ ¥æ â×æÁ ·¤è §Ù â¢ßðÎÙæ¥ô¢ ·¤ô °·¤ ÂéSÌ·¤ ·¤è àæ€Ü Îð ãè´ Îð´Ð
ReplyDeleteâæÎÚ, â¢ÁØ ·é¤×æÚ ©ÂæŠØæØ
Õ»ãæ, Âçà¿× ¿ÂæÚ‡æ