आप कुछ कर रहे हैं औऱ आपका कलेजा कांप रहा है। क्या है इसका मतलब? मतलब साफ है कि कुछ न कुछ गलत है, कहीं न कहीं कमजोरी है। आप बोल रहे हैं और आपकी जुबां लड़खड़ा रही है। मतलब, या तो बोलना नहीं आता या जो बोल रहे हैं उसकी आपने तैयारी नहीं की है। जिंदगी के मुकाम पर जब आपकी उम्र बढ़ती जाती है तो आप भविष्य के गर्भ में तो प्रवेश करते जाते हैं, पर इसके साथ ही आप अतीत भी बनते जाते हैं। बीए की कक्षा का विद्यार्थी मनोहर पोथी नहीं पढ़ सकता। यदि पढ़ता है तो गलत है। जिन बाल - बच्चों के लिए आपका जीवन आदर्श बनना चाहिए, उनके सामने भी आप फ्रेशर्स बने रहेंगे तो माना जाएगा कि आपने जिस रास्ते पर अपनी जिंदगी को घसीटा है, वह गलत था। दिल्ली की ओर जाने वाले यदि सही रास्ते पर आगे बढ़ें तो वे दिल्ली ही पहुंचेंगे। रास्ता गलत होगा तो वे कहां पहुंच जाएंगे कहा नहीं जा सकता।
संदर्भ भविष्य का है और बात उसके संवारने की। एक कथा से बात बढ़ाना चाहूंगा। एक आदमी ने एक नौकर रखा। आदमी ने नौकर से पूछा कि तुम्हारी क्या खासियत है? नौकर का जवाब था - मैं तूफान में भी चैन से सोता हूं। आदमी उलझा, बोला - तुम्हारी बात समझ नहीं पाया। नौकर बोला - समझा भी नहीं पाऊंगा। आदमी बोला - क्यों? नौकर बोला - लोग विश्वास नहीं करते हैं। आदमी बोला - मैं विश्वास करूंगा। नौकर बोला - पर मैं बातों में नहीं, काम में विश्वास रखता हूं। आदमी उसका कायल हुए बिना नहीं रहा। संतुलित जुबान, खुद पर विश्वास का अजूबा नमूना, बोला - ठीक है, तुम्हें मौका देता हूं।
नौकर को मौका मिला। वह वहां नौकरी करने लगा। वह सामान्य व्यक्ति की तरह ही काम करता, पर काम करता रहता था। उसकी दिनचर्या दुरुस्त थी। उसके पहनावे पर कभी कोई अंगुली नहीं उठा सकता था। बातें सटीक करता था। आदमी को कभी किसी चीज के लिए उसे खास तौर से ताकीद करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मगर एक रात....।
मौसम खराब हुआ। आसमान में काले बादल घुमड़ आए। हवाओं ने जब गति पकड़ी और उसके आंधी का रूप अख्तियार करने की आशंका बनी तो आदमी घबराया। जिस मुहल्ले में वह रह रहा था, वहां के सभी लोगों में भगदड़ मची हुई थी। कोई पशुओं को छप्पर के नीचे बांध रहा था, कोई अनाज संभाल रहा था, कोई लकड़ियां बचाने की जुगत में लगा था। एक तरह से पूरे मुहल्ले में जाग हो गयी थी। ऐसे में ही आदमी ने नौकर को आवाज दी। पर, नौकर की ओर से कोई जवाब नहीं आया। एक-दो हांक लगाने के बाद वह भागा-भागा नौकर की झोपड़ी में पहुंच गया। देखता है कि नौकर आराम से चादर ताने गहरी नींद में पड़ा है और खर्राटे खींच रहा है।
अब तो आदमी आग-बबूला हो गया। झकझोर कर नौकर को जगाया और उस पर बिफर ही तो पड़ा। बड़े बकवास आदमी हो तुम, तूफान आने वाला है। पूरे मुहल्ले में भगदड़ मची हुई है और तुम खर्राटा खींच रहे हो। नौकर ने बड़े मासूमियत से पूछा - आखिर मुझसे क्या गलती हो गयी? आदमी बोला - बड़े खफ्ती आदमी हो। चलो बाहर। पशुओं को बाड़े में पहुंचाओ। लकड़ियों को घर में डालो कि वे भींगे नहीं। थोड़े अनाज भी बचा लो और घर में पहुंचा दो ताकि तूफान के दिनों में खाने-पीने की दिक्कत नहीं हो। नौकर ने जो कहा, भविष्य के लिए चिंता करने वालों को वह मार्क करना चाहिए। उसने कहा - पर यह सब तो मैं काफी पहले कर चुका हूं। आदमी अवाक।
नौकर बोला - जी हां, मैंने कहा था न कि मैं तूफान में भी चैन से सोता हूं। आप देख ही रहे हैं कि जब तूफान की आशंका से लोग भगदड़ मचाए हुए हैं, मैं यहां चैन से सो रहा था। यह मेरी लापरवाही नहीं थी। मुझे पता था कि यह तूफान के आने का महीना है और वह कभी भी आ सकता है। जब तूफान आ जाता तो मैं अकेला आदमी क्या-क्या करता। इसीलिए लकड़ियां सुखा कर पहले ही छप्पर के नीचे डाल दी थीं। अनाज इस महीने की शुरुआत में ही घर के अंदर पहुंचा दिया था। इतना ही नहीं, पिछले तीन-चार दिनों से मैंने पशुओं को रात में बाड़े में ही बांधना शुरू कर दिया है। अब बताइए मालिक, इस तूफान में मैं खर्राटे नहीं लूं तो पागल की तरह इधर-उधर भागता फिरूं?
नौकर की साइकोलाजी को यदि एक वाक्य में कहें तो कहा जा सकता है कि चिंता नहीं, सम्यक चिंतन से संवरता है भविष्य। मालिक तूफान के आने पर भविष्य की चिंता में घुल रहा था, पर नौकर इसका चिंतन काफी पहले कर चुका था और मौका आने पर तसल्ली में था, आराम में था। मुझे लगता है कि इस कथा से कुछ बातें साफ हुई होंगी। फिलहाल इतना ही। भविष्य को संवारने की दिशा में टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।
एक चुटकुला - एक आदमी ने कहा- मुझे तो आंखें बंद करने पर भी दिखाई देता है। दूसरे ने पूछा - क्या? आदमी का जवाब था - अंधेरा।
Wednesday, September 23, 2009
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तूफानी लेख। वाकई दिमाग को झकझोर कर रख देने वाला।
ReplyDeleteजुलाई से आप हर महीने तीन लेख ही लिख रहे हैं। सितंबर में तीसरा लेख आ गया। मेरा तो कलेजा धड़क रहा है कि अब इस महीने आप फिर कुछ नहीं लिखेंगे। आप इतना अच्छा लिखते हैं। हर रोज क्यों नहीं लिखते?
ReplyDeleteलेख जानदार, चुटकुला शानदार।
ReplyDeleteकौशल जी, आपने बिल्कुल सही लिखा है। हमारे धर्मग्रंथों में भी इस पर बल दिया गया है। और यह कितना सही है - भविष्य की चिंता नहीं, सम्यक चिंतन जरूरी है।
ReplyDeleteरंजन जी को जवाब देना जरूरी समझता हूं। अपनी टिप्पणी में उन्होंने एक तकनीकी पहलू की ओर इशारा किया है। सच, इसकी गिनती तो मैं भी नहीं कर पाया। रंजन जी को बधाई। आखिर मैं कितना कम लिख पा रहा हूं। वादा करता हूं, थोड़ी गति बढ़ाऊंगा। रंजन जी, आपको फिर से साधुवाद।
ReplyDeleteजोरदार रोचक लेख.....
ReplyDeleteमै तूफ़ान में भी चैन से सोता हु , अच्छा है भाई शानदार लेख और चुटकला जानदार
ReplyDeletebhai waah dilchasp lekh
ReplyDeleteAgrasochi aadmi hi bade sapne dekhta hai aur bade mukam pata hai. Aapne rochak tarike se kam ki bat kahi.
ReplyDeleteHow sweet line main tuphan men bhi chain se sota hun. Nice, SANJAY.KUMAR.UPADHYAY. BAGAHA.W.CHAMPARAN
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