पर, जिस हीन भावना से उबरने की बात सीरीज में चल रही थी, बाहैसियत उस मिजाज के यदि गाली देने पर अमल किया गया तो यही माना जायेगा कि व्यक्ति हीन भावना से ग्रसित है और उसी के जेरेसाया गालियां बक रहा है। कुलदीप भाई ने बहुत गलत नहीं कहा है। निराशा, हताशा की स्थिति में लोग ऐसा भी करते है।गालियां देते हैं और खासकर सुनाने के अंदाज में गालियां देते हैं। मेरा मानना है कि गालियां बकना हीन भावना से ग्रसित होने का ही परिचायक है, न कि इससे निकलने का उपाय। मेरा मतलब यह है कि यदि आप गाली दे रहे हैं तो यह साबित कर रहे हैं कि आप हीन भावना के शिकार हैं।
मेरा मानना है, गालियां देने से समस्या का निदान नहीं हो सकता। ऐसा कर आप अपनी जुबान तो खराब करेंगे ही, इसके कुछ खतरे भी आपको झेलने पड़ सकते हैं। गाली देने के एवज में आपको उससे भी बड़ी-बड़ी गाली सुननी पड़ सकती है। और बड़ी गाली खाकर आप जिद पर आये, कोई और एक्शन लिया तो मामला मार-पिटाई पर उतर सकता है। इसमें भी खतरा यह है कि यदि आप कमजोर पड़े तो पिट भी सकते हैं। और ख्याल कीजिएगा, गाली देने वाला व्यक्ति जब कहीं पिटता है तो उसे बचाने वाले भी कम ही दिखते हैं। गाली देने वाले को सोसाइटी में कभी अच्छा नहीं माना गया। उल्टे लोग उससे किनारा कर जाते हैं। हीन भावना से उबरने के लिए आप गाली देने लगे तो निश्चित ही उन लोगों के आपसे दूर हो जाने का खतरा है, जो आपके हमदर्द, हमकरीब और हमकदम हैं।
दरअसल, हीन भावना एक तुलनात्मक सोचों वाली मानसिक स्थिति है, जिसमें फंसा व्यक्ति अपनी स्थिति से ज्यादा दूसरों की स्थिति के अध्ययन में उलझकर अपना सर्वस्व चौपट कर रहा होता है। क्या इसका निदान गाली देने से संभव हो सकता है? नहीं, कुलदीप भाई, बिल्कुल नहीं। जरा सोचिए, गाली देने से आपकी स्थिति में क्या फर्क पड़ेगा? जिसकी तुलना से आप हीन भावना से ग्रसित हुए, उस पर क्या फर्क पड़ेगा? मेरा मानना है- कुछ भी नहीं। गाली देकर थोड़ी देर के लिए संतुष्ट भले हो लें, पर यह एक और अवसाद की ओर ले जायेगा। हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति के लिए अवसाद की एक और अवस्था खतरनाक ही कही जा सकती है। इसलिए गाली नहीं। गाली दुर्जनता की पहचान है, और हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति को इस राह पर आगे बढ़ने की सलाह कतई नहीं दी जा सकती।
फिलहाल कुलदीप भाई को धन्यवाद और सबसे ज्यादा धन्यवाद उस पत्रकार मित्र को , जिन्होंने कुलदीप भाई की प्रतिक्रिया मेरे मेल पर भेजी और एक और मसले पर विचार करने का अवसर दिया।
व्यक्ति यदि साहस दिखाये तो बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
हीन भावना आये ही क्यो ? पहले अपने ऊपर इतना विशवास तो होना चाहिये कि.कुलदीप भाई गाली देना भी एक हीन भावना का दुसर रुप है, यानि जब आप हीन भावना से ग्र्स्त होंगे तभी गलिया भी देगे.
ReplyDeleteधन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
कौशल जी, टिप्पणी का आपने ठीक विश्लेषण किया है। कुलदीप जी खिलंदड़ेपन में भी शायद संतुलन आये। धन्यवाद। - देवेन्द्र, जमशेदपुर।
ReplyDeleteसही है, गाली देने से अवसाद बढ़ता है। - ब्रजेश, जमशेदपुर।
ReplyDeleteयह आलेख जीवन के सफर में टूट चुके लोगों के लिए एक सबक है और इस पोस्ट का सीधा असर पढऩेवाले के दिलो दिमाग पर होता है। ऐसे में यह पोस्ट वाकई पठनीय है। - संजय उपाध्याय, बगहा, बिहार।
ReplyDeleteपढ़ा, पसंद आया। आगे भी इस तरह के गंभीर टापिक पर लिखें ताकि आपको चाहने वाले लाभान्वित होते रहें। रविकांत
ReplyDeleteआप सभी को धन्यवाद। लेकिन, थोड़ा-थोड़ा मार्गदर्शन भी किया कीजिए। इस आलेख पर कुलदीप भाई क्या बोलेंगे, यह महत्वपूर्ण है। मैं तो बस उनकी टिप्पणी का इंतजार कर रहा हूं।
ReplyDeleteकुलदीप जी की बातों से मैं सहमत हूं। दरअसल लातों के भूत बातों से नहीं मानते। कभी-कभी गाली देने से भी बात बन जाती है। - अनोज, अजमेर, राजस्थान।
ReplyDeleteकौशल जी बात यहाँ समझाने की है !
ReplyDeleteजब हम किसी को गालियाँ देते हैं तो अपने अन्दर के नकारात्मक तत्वों को बाहर निकालते हैं !
जम्मू के कई हिस्सों में एक ख़ास पर्व होता है ... उस दिन लोग जी भर की गालियाँ बकते हैं .... ऐसा ही कुछ आपने बनारस में होली के समय देखा होगा ... लोग बाकायदा घर के सामने खड़े होकर गालियाँ गाकर अपना गुबार बाहर निकालते हैं ! जाने kitne वर्षों से ये परंपरा चली आ रही हैं .... इसके पीछे शायद मंतव्य यही रहा होगा कि आदमी अपना फ्रसट्रेशन बाहर निकाल सके !
ओशो ने जो सक्रीय ध्यान विधि का कांसेप्ट दिया ... उसमें भी तृतीय चरण में अपने भावों को बाहर निकाला जाता है ... चाहे वो रोना हो .. चीखना हो .. चिल्लाना हो ! इस तरह से आदमी अपने अन्दर की निगेटिविटी को बाहर निकालकर शांत हो जाता है ! किसी भी इंसान के लिए यह बहुत जरूरी है कि वो अपने अन्दर नकारात्मक भावों को जमा न होने दे ! आज आप जिस हिंसक समाज को देख रहे हैं उसका एक बहुत बड़ा कारण यही है !
शुभकामनाएं !
आज की आवाज
कौशल जी बात यहाँ समझाने की है !
ReplyDeleteजब हम किसी को गालियाँ देते हैं तो अपने अन्दर के नकारात्मक तत्वों को बाहर निकालते हैं !
जम्मू के कई हिस्सों में एक ख़ास पर्व होता है ... उस दिन लोग जी भर की गालियाँ बकते हैं .... ऐसा ही कुछ आपने बनारस में होली के समय देखा होगा ... लोग बाकायदा घर के सामने खड़े होकर गालियाँ गाकर अपना गुबार बाहर निकालते हैं ! जाने kitne वर्षों से ये परंपरा चली आ रही हैं .... इसके पीछे शायद मंतव्य यही रहा होगा कि आदमी अपना फ्रसट्रेशन बाहर निकाल सके !
ओशो ने जो सक्रीय ध्यान विधि का कांसेप्ट दिया ... उसमें भी तृतीय चरण में अपने भावों को बाहर निकाला जाता है ... चाहे वो रोना हो .. चीखना हो .. चिल्लाना हो ! इस तरह से आदमी अपने अन्दर की निगेटिविटी को बाहर निकालकर शांत हो जाता है !
किसी भी इंसान के लिए यह बहुत जरूरी है कि वो अपने अन्दर नकारात्मक भावों को जमा न होने दे ! आज जो आप जिस हिंसक समाज को देख रहे हैं उसका एक बहुत बड़ा कारण यही है !
शुभकामनाएं !
आज की आवाज
गाली देकर थोड़ी देर के लिए संतुष्ट भले हो लें, पर यह एक और अवसाद की ओर ले जायेगा।
ReplyDeleteAapki baat se sahmat hoon.