भविष्य का बड़ा घनचक्कर है। कल ये करूंगा, कल वो करूंगा। और कल कभी आता है? आता तो आज है, गाता है, चला जाता है। और हम कल की मुलाकातों के ख्यालातों में ही रह जाते हैं। रह जाते हैं कि नहीं? भविष्य एक सपना है, एक कल्पना है। सपनों में जीने वाला आदमी, कल्पनाओं में समय व्यतीत करने वाला आदमी यानी भविष्य संवारने के चक्कर में फंसा आदमी, चाहे वह रोगी हो, योगी हो, भोगी हो, कदम दर कदम समझौता दर समझौता ही तो करता चलता है। कोई भी समझदार व्यक्ति यह कह सकता है, जिसे कदम दर कदम समझौता दर समझौता करना पड़े, उसका चाहे सबकुछ ठीक हो जाये, भविष्य तो कतई ठीक नहीं हो सकता। हो सकता है क्या? तो क्या करें, कैसे समझें भविष्य की उलझन को?
भविष्य का घनचक्कर व्यक्तित्व विकास के मार्ग को कैसे प्रभावित करता है, अब जरा इस पर विचार करें। एक कहावत सुनी होगी आपने। रोपा पेड़ बबूल का, आम कहां से आये। मतलब? भविष्य जो है, वह वर्तमान का बिल्कुल उचित परिणाम भर है। और कुछ नहीं है। यानी जब आप बबूल का पौधा लगायेंगे तो उसमें से आने वाले दिनों में आम के फल नहीं मिल सकते, नहीं मिलेंगे, नहीं मिलते हैं। आम का फल चाहिए तो आम के पौधे ही लगाने होंगे। आपने किसी को गाली दी तो आपका भविष्य आपको आपकी पिटाई का न्योता दे रहा है, इसे गंभीरता से समझने की जरूरत है। आपने जहर पीया तो आपका भविष्य आपकी मौत को आमंत्रित कर चुका है। आपने परीक्षा में सभी प्रश्न हल किये तो आपका भविष्य आपको पहले स्थान पर स्थापित करने वाला है। तो यह तय है कि आप कल परीक्षा में पास हों, कुछ सुपरिणाम आपके हिस्से में आयें, इसके लिए जरूरी है कि आप भविष्य नहीं, वर्तमान और वर्तमान की हरकतों पर ध्यान दें।
भविष्य को लेकर जो शीर्षक बनाया गया है, उसके जेरेसाया कुछ अलहदा , कुछ महत्वपूर्ण बातें कहना चाहता हूं। यह पूरी चर्चा बस उस एक शार्षक को परिभाषित करने के लिए ही है। व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति को इसे गंभीरता से समझने और उस पर विचार करने की जरूरत है। अमल तो विचार के साथ ही शुरू हो जायेगा, इसकी गारंटी है। मैं कहना यह चाहता हूं कि वर्तमान का उचित परिणाम भर भले भविष्य है, पर यह तब भी है जब न वर्तमान है और यह तब भी है जब न भूत है। नहीं समझे? जी हां, यदि भविष्य का वजूद है तो उसका भूत और उसका वर्तमान एक अलग प्रकार की ही चीज है। भविष्य कभी बर्बाद नहीं होता, कभी चौपट नहीं होता। हो ही नहीं सकता। बल्कि सब कुछ चौपट हो जाये तो भी जो एकमात्र चीज बची रहती है, वह भविष्य ही है।
आज आप लुट गये, बर्बाद हो गये, आपकी बीवी किसी प्रेमी के साथ भाग गयी, बच्चा खो गया, नौकरी चली गयी, फेल कर गये, संपत्ति पर किसी ने कब्जा कर लिया, आपके पास कुछ नहीं बचा, आप चिल्ला रहे हैं, कराह रहे हैं, तड़प रहे हैं, आपकी आंखों के आगे अंधेरा छाया है, रास्ता नहीं सूझ रहा, वैसी स्थिति में भी मैं आपको दिलासा दिलाता हूं कि संभलिए, आपका भविष्य बचा हुआ है। भविष्य यानी कल।
जी हां, चेतिए, आपका भविष्य बचा हुआ है। कल आयेगा और आपके लिए भी कल आयेगा। वह आपका भविष्य है। आप उसे फिर से संवार सकते हैं, क्योंकि भविष्य बचा हुआ है और अभी उसे आना है। जो नहीं बचा रहने वाला, संवारा तो उसे ही जाता है। तो जब भविष्य ही बचा रहता है तो फिर काहे की भविष्य की चिंता। चिंता तो उसकी की जाती है, जो बचा नहीं रहने वाला। भविष्य तो आखिर तक बचा रहने वाला है तो काहे की चिंता, काहे की फिक्र? काहे का डर, काहे की घबराहट, काहे की भाग-दौड़, काहे की हड़बड़ी-जल्दबाजी , काहे के लिए नैतिक-अनैतिक करने की मजबूरी? काहे की? काहे की??
फिलहाल इतना ही। भविष्य को लेकर बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उससे कुछ और बातें मन में आ रही हैं, व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति के लिए शायद वह किसी काम आ जाये। इंतजार कीजिए अगली पोस्ट का।
ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा करते निरुद्यमी प्राणी, धोते वीर कु-अंक भाल का, बहा भ्रुवों से पानी। (दिनकर की पुस्तक - कुरुक्षेत्र - से)
भविष्य की चिंता में सचमुच मनुष्य वर्तमान को भी बर्वाद कर देता है .. भविष्य के लिए कर्म और चिंतन तो करना ही चाहिए .. पर हर परिणाम को स्वीकार करना ही अच्छा है .. क्यूंकि चिंता से कोई फायदा होने से तो रहा ।
ReplyDeleteबढ़िया। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा। - ब्रजेश, जमशेदपुर।
ReplyDeleteसही है, सब कुछ खत्म हो जाने के बाद भी बचा रहता है भविष्य। - देवेन्द्र सिंह, जमशेदपुर।
ReplyDeleteApka vichar parhker bahut laga. Age ke liye intjar hai. : Sunil Agrahari,Faizaba, U.P.
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील भाई।
ReplyDeleteyour new story will energize everyone. By this very story a man can get a new direction for his future. SANJAY.KUMAR. UPDHYAY. BAGAHA. W. CHAMPARAN.
ReplyDeleteआपका यह नया आलेख जीवन के लिए प्रेरणादायी है। इसे पढऩे के बाद हर व्यक्ति अपने-आप में कायम कमी को ढूंढेगा और तब भविष्य की सोचेगा। वर्तमान परिवेश में आपका यह लेख जीवन की वास्तविक सच्चाई को बयां कर रहा है। अगले आलेख के इंतजार में।
ReplyDeleteसंजय कुमार उपाध्याय, बगहा (प.च.)
BADHIYA
ReplyDeletewhere can i get this poem: bhagya ka path padha karte hai nirudyami prani
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