एक झूठ बार-बार बोला जाय तो सच हो जाता है।
Monday, June 1, 2009
इन नदियों को बचाना होगा
पतित पावनी गंगा हो या वरदायिनी बूढ़ी गंडक, मैया कमला हो या माता सीता की नगरी होकर बहने वाली बागमती-लखनदेई, किसी का पानी पीने लायक नहीं रहा। पहाड़ों के सिल्ट से भरी उत्तर बिहार की ये नदियां कचरा निष्पादन का आसान माध्यम बनी हुई हैं। प्रदूषण से इनकी कलकल करती धाराओं का रंग तक बदरंग हो चुका है, पर नियंत्रण के कहीं कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं। सिकरहना नदी के दूषित जल से पश्चिमी चंपारण का बड़ा उपजाऊ हिस्सा रेत बनता जा रहा है। प्रतिवर्ष इस पर काबू पाने की सरकारी घोषणा होती है और फिर सब कुछ हवा-हवाई हो जाता है। नेपाल से वाया रक्सौल सरिसवा नदी का पानी नेपाल के कल-कारखानों से निकले कचरे के कारण हरा हो गया है। धनौती नदी ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो सूखती जा रही है। पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर के कुछ इलाकों और दरभंगा को बागमती व अधवारा समूह की नदियों के कहर से बचाने के लिए तीन दशक पूर्व हरित क्रांति के नाम पर बागमती परियोजना की शुरुआत की गयी थी। आधे-अधूरे काम व तटबंधों के निर्माण के कारण यह योजना बर्बादी का कारण बन गयी, नदियों का कहर जारी है। दरभंगा शहर के किनारे से गुजर रही बागमती गंदा नाला सा ही दिखती है। यही हाल सीतामढ़ी में लखनदेई का है। नाला बनी यह नदी कूड़ा-कचरों से पटी हुई है। कोसी व कमला बलान का पानी अभी उतना प्रदूषित नहीं दिखता, जबकि अधवारा समूह की करीब आधा दर्जन नदियों का पानी जहरीला हो चुका है। मधुबनी के इलाकों में इसका पानी पीने से कई मवेशी मर चुके हैं और कई लोग गंभीरतम रूप से बीमार हो चुके हैं। नेपाल की सिगरेट फैक्टरी का कचरा इन नदियों में फेंके जाने से बेनीपट्टी के इलाकों से होकर बहने वाली इन नदियों के पानी का रंग भी बदल चुका है। बूढ़ी गंडक मुजफ्फरपुर से लेकर समस्तीपुर तक कचरा, दूषित जल, बेकार प्लास्टिक व कूड़े-कर्कट से पटी हुई है। नदी की जलधारा पर तैरती अधजली व लावारिसलाशें कभी भी देखी जा सकती हैं। पीने की तो बात छोडि़ए, इसका पानी कपड़ा घोने लायक भी नहीं रह गया है। मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी के अध्यापकों डा. अचिन्त्य एवं डा. सुरेश कुमार की अध्ययन रिपोर्ट में बूढ़ी गंडक के पानी में सीसा की मात्रा को दो से 4.89 मिली प्रति लीटर बताया गया, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भारतीय मानक ब्यूरो के मानक के अनुसार इसकी अधिकतम मात्रा 0.05 मिली प्रति लीटर ही होनी चाहिए। दरभंगा होकर गुजरने वाली कमला और जीवछ नदियों का तल गाद से काफी ऊपर उठ चुका है, यह भी कम खतरे की बात नहीं है। वैसे, कमला सात माह और जीवछ 10 महीने तक सूखी रहती है।
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