समस्तीपुर और दरभंगा दो जिले ऐसे हैं, जहां पानी में आर्सेनिक जानलेवा खतरे के रूप में सामने आया है। इससे बड़ी संख्या में लोग कैंसर जैसे संक्रामक बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं और असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैं। समस्तीपुर में गंगा के तटीय इलाकों पटोरी, मोहनपुर, मोहिउद्दीननगर, विद्यापतिनगर, सिंघिया, बिथान आदि प्रखंडों के करीब एक हजार हैंडपंप आर्सेनिक के रूप में जगह उगल रहे हैं। इन इलाकों में 410 फुट के बाद ही पीने योग्य पानी निकलता है। इतनी गहराई तक जाकर चापाकल गाड़ना काफी खर्चीला है और किसी आम आदमी के लिए आसान नहीं है। यहां सरकारी सभी चापाकल जवाब दे चुके हैं। वहीं, दरभंगा जिले के बिरौल प्रखंड के पडऱी में आर्सेनिकयुक्त पानी से दहशत बढ़ती जा रही है। यहां जहर युक्त पानी पीने से पिछले एक साल में तीन दर्जन से भी अधिक लोग कैंसर से ग्रसित हो गये और असमय काल कवलित हो गये। सरकारी स्तर पर इससे छुटकारा दिलाने की कोई योजना सामने नहीं आयी।
दरअसल, उत्तर बिहार की बड़ी आबादी आज भी खुले कुओं और जलस्रोतों से पीने का पानी लेने को मजबूर है। प्रखंडों में जल मीनार लगाने की योजनाएं धराशायी हो चुकी हैं। हर जगह सिर्फ दावे चल रहे हैं। मुजफ्फरपुर को ही नमूना माना जाय तो यहां के साहेबगंज में पंप लगा, जलमीनार गायब है। कुढऩी में वाटर टावर नहीं बन सका। बाढग़्र्रस्त क्षेत्र औराई, कटरा और गायघाट में लोग आज भी कुओं का गंदा पानी पीने को विवश हैं। साहेबगंज में लीकेज प्राब्लम है तो बरूराज और मोतीपुर में कई पंप जले पड़े हैं।
सवालों का जवाब तलाशने वाला समाज ही पूजा जाता है।
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