घर से बात शुरू करते हैं। आपका कोई भाई, आपकी कोई बहन आज्ञाकारी है, पढ़ने में तेज है, क्लास में फर्स्ट आता-आती है तो निश्चित रूप से उन्हें मां-पिता का प्यार आपसे अधिक मिलेगा। ऐसी परिस्थिति में आपके हीन भावना से ग्रसित होने की संभावना बनती है और उपाय यही है कि आप भी आज्ञाकारी बनिए, पढ़ाई पर ध्यान दीजिए और अभिभावक की उम्मीद पर खरा उतर कर दिखाइए। पढ़ाई के लिए की गयी आपकी मेहनत और उसके एवज में मिलने वाला अभिभावक का प्यार आपको हीन भावना से निश्चित रूप से उबार देगा और आप पूरे परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में सम्मानित जीवन जी सकेंगे।
आप नौकरी पर दफ्तर गये। स्थिति यह भी हो सकती है कि आप वहां खूब मन लगा कर काम करते हों, बेहतर परिणाम देते हों, फिर भी कोई बुरा बॉसकभी जाति के नाम पर तो कभी अपने खुद के भ्रष्टाचार को छुपाने के नाम पर आपको तरजीह नहीं देता हो। हो सकता है कि वहां कोई चमचा, कोई कमअक्ल, कम काम करने वाला आपसे ज्यादा इज्जत - वेतनवृद्धि और आपसे ज्यादा सुरक्षित पा रहा हो। ऐसे में आपके हीन भावना से ग्रसित होने की जायज संभावना बनती है। लेकिन सावधान, यह सिर्फ आपके हीन भावना से ग्रसित हो जाने का ही मामला नहीं है, यह मामला एक गलत प्रबंधन और उसके द्वारा तैयार गंदे माहौल काभी है। ऐसी स्थिति से उबरने के दो रास्ते होते हैं।
पहला-आप यह देखिए कि आपके हीन भावना तक पहुंचा देने वाला यह माहौल जिस इमीडिएट बॉस द्वारा बनाया गया है, उसकी खुद की संस्थान में कितनी और कहां तक स्वीकार्यता-मान्यता है। यदि आपने यह फीडबैक लिया कि यह बिल्कुल उसकी अपनी मनमानी है और उसका बिल्कुल व्यक्तिगत गुण-अवगुण है तो हीन भावना से ग्रसित होने की जगह आपको सावधान होने की जरूरत है। वैसे तो लापरवाही कभी जायज नहीं होती, पर ऐसी परिस्थिति में इसे बिल्कुल त्यागने की जरूरत है। और निश्चित मानिए, एक सतर्क और जवाबदेह व्यक्ति का बहुत बुरा नहीं होता। देर से ही सही उसे स्वीकारा जाता है। इसके अलावा जल्दबाजी में जो काम करने के लायक है, वह यह है कि आप थोड़ा-थोड़ा कर, टुकड़ों में, सावधानीपूर्वक ऊपर के लोगों से बातचीत का संपर्क स्थापित कीजिए और अपनी समस्याएं शेयर कीजिए। गलत के विरोध में उठाया गया आपका एक-एक कदम आपको हीन भावना से निकालता चला जायेगा।
दूसरा- कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि संवाद का सिलसिला भी अंततः दम तोड़ देता है और आपके लिए संभावनाओं के मार्ग बंद दिखने लगते हैं। हालांकि, ऐसा होता कम ही है, पर यदि यह मान भी लेते हैं कि आपको इससे बेहतर फलाफल हासिल नहीं हुआ तो हीन भावना से ग्रसित होने की फिर भी जरूरत नहीं है। जरूरत इसलिए नहीं है कि यह हीन भावना का मामला है ही नहीं। यह आपके लिए अपनी क्षमताओं को तौलने और उसके प्रदर्शन का मौका है। अपने बाजुबल को तौलिये और संस्थान बदलने की जुगत में भिड़ जाइए। निश्चित रूप से नयी जगह, नया मुकाम आपको हीन भावना से तो उबारेगा ही, आपके व्यक्तित्व को भी निखारेगा। निखारेगा कि नहीं? फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास के सिलसिले में हीन भावना से उबरने की संभावनाओं पर चर्चा अभी जारी रहेगी।
आज जो प्रमाणित है, कभी वह केवल काल्पनिक था।
भई वाह, मजा आ गया। आपके लेखन में अब शानदार विश्लेषण मिल रहा है। देवेन्द्र, जमशेदपुर।
ReplyDeleteKaushal Bhai,
ReplyDeleteAApke lekho se mere vayktitva mein kafi sudhar aaya hai.
Brajesh, jamshedpur.
प्रेरक सटीक विचार. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख लिखा, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत आभार!!
ReplyDeleteIss wichar ko padhkar murdon main bhi jaan aa jaye. Sundar lekh ke liye dhanyawad.
ReplyDeleteAnoj, Ajmer
आप सभी ने इस विचार को पसंद किया, मैं अभिभूत हूं। आप सभी को धन्यवाद। अगली पोस्ट में भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा।
ReplyDeleteआपका यह लेखा काफी प्रेरणादायक है। कुछ ऍसे ही और विषय पर जानकारी दें। रविकांत प्रसाद
ReplyDeleteyour story is just like a light in a dark room, in which a frustreted man is sitting in wait of b good suggesation.
ReplyDeletesanjay. kumar. upadhyay. Bagha.