एक धनी आदमी अपने बेटे को गांव में गरीबी व गरीबों को दिखाने ले गया। दिन भर गरीबों के दर्शन कराकर शाम में घर लौटने के दौरान पिता ने बेटे से पूछा-बताओ बेटे, आज तुमने क्या देखा और क्या महसूस किया? बेटे का जवाब बड़ा महत्वपूर्ण था। मेरा खास तौर से आग्रह है , उसे गंभीरता से पढ़ियेगा। बेटे ने कहा, पापा जी, मैंने देखा , हमलोग एक कुत्ता पालते हैं, उनके पास चार-चार, पांच-पांच कुत्ते हैं। पिता चुप। बेटा बोलता जा रहा था-हमारे पास रहने के लिए जमीन का एक टुकड़ा है, उनके पास जहां तक नजर जाये, वहां तक जमीनें हैं। हम दीवारों में बंद लोग हैं, उनके सामने खुला आकाश, फैली धरती है। हम स्वीमिंग पूल में नहाते हैं, जो दो फर्लांग तक भी नहीं जाता, उनके पास बड़ी-बड़ी, लंबी-लंबी नदियां हैं। हम भोजन करने के लिए अनाज बाजार से खरीदते हैं और हमारे खाने के लिए वे उसी अनाज को पैदा करते हैं। हमने अपनी सेवा के लिए नौकर लगा रखे हैं, जबकि उन्होंने सेवा में अपना जीवन झोंक दिया है। सच पिताजी, आज हमने जाना कि कितना गरीब हैं हम! पिता चुप, बोलने के लिए कुछ भी नहीं रहा था।
यह कथा दृष्टि की व्यापकता को फोकस करती है। आप जिन चीजों को लेकर हीन भावना से ग्रसित होते हैं, दरअसल वह आपका निराश और आग्रह छोड़ चुका मन है। अपने मन को आग्रही बनाइए, उस आग्रह के लिए खुद को क्रियाशील कीजिए, हीन भावना की तो कहीं कोई बात ही नहीं है। बढ़ते एक-एक कदम के साथ आप एक मार्ग की रचना करते जाएंगे और आप पाएंगे कि उसका अनुसरण करने वाला आपके पीछे ही है। पर, कदम तो बढ़ाना ही होगा। इसके लिए हीन भावना नहीं, इच्छा शक्ति को जागृत करने की जरूरत है। कार्ययोजना बनाने और उस पर अमल करने की जरूरत है। हीन भावना से उबरने के उपायों पर अभी चर्चा जारी रहेगी। धन्यवाद।
पूछो किसी भाग्यवादी से यदि विधि अंक प्रबल है, पद पर क्यों न देती स्वयं वसुधा निज रतन उगल है।
वाह क्या बात कही आप ने, बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
बात मजाक से शुरु हुई। एक ऐसा ही मेल मेरे पास भी आया था-
ReplyDeleteप्रश्न - जिसका कोई मित्र ना हो उसे क्या कहते हैं?
उत्तर - कोइनामित्रा। खैर----।
इसी बहाने आपने गहरी बात कह दी। वाह।
काम करें जो भी यहाँ मन में हो विश्वास।
हीन भावना तभी मिटे करते रहें प्रयास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Nice Story to motivate all of us and to understand the value of work done by all human beings......
ReplyDeleteThanks for this sweet story.....
छोटी-छोटी बातें बड़ी-बड़ी चीजों की ओर इशारा कर जाती हैं। इस पर तो कभी एक बड़ा सा विचार पेश करने की इच्छा है। फिलहाल हीन भावना से उबरने वाले पार्ट २ के आलेखा का आप तीन लोगों ने जिस तरीके से लिया है, उससे मैं उत्साहित हुआ। श्यामल सुमन जी की टिप्पणी के अंदाज का मैं कायल हो गया।
ReplyDeleteबढ़िया। एक काम लायक आलेख। - अनोज (अजमेर, राजस्थाना)
ReplyDeleteकौशल जी, हीन भावना से उबरने को लेकर आपका दूसरा आर्टिकल जोरदार लगा। पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर आप एक अच्छा सीरीज तैयार कर चुके हैं। इस पूरी सामग्री को किताब की शक्ल क्यों नहीं देते? मेरे सुझाव है, आप अपने इन विचारों को पुस्तक आकार दीजिए। - देवेन्द्र (जमशेदपुर)
ReplyDeleteआदरणीय देवेन्द्र जी, आपका सुझाव बेहतर है। पर्सनालिटी डेवलपमेंट की इस सीरीज को मैं भी पुस्तक आकार देना चाहता हूं। आशीर्वाद बनाये रखिए। निश्चित ही ऐसा होगा। एक बेहतर सुझाव के लिए आपका धन्यवाद।
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