Wednesday, January 28, 2009

हवाओं का भी रुख मोड़ सकते हैं आप

परिस्थितियां कब प्रतिकूल हो जाएं, कहा नहीं जा सकता। कभी यह प्रत्याशित होती हैं तो कभी अप्रत्याशित। आदमी अप्रत्याशित रूप से प्रतिकूल होने वाली परिस्थितियों से ही घबराता है, प्रभावित होता है। जब स्थितियां अनुकूल हों तो घबराना कैसा? कल पानी बंद रहेगा, इसका जिसे पहले से पता है, वह तो रात में ही इंतजाम चौकस कर लेगा। पर, जिसे इस बात का पता न हो, उसके लिए ऐन मौके पर परेशानी वाली बात हो जाती है। पर, क्या इससे वह बिना पानी का रह जाता है? यह विचार करने की बात है। यह ठीक है कि पानी बिना तो दिन नहीं कट सकता। तो जिसे पहले से पता न हो कि कल पानी बंद रहेगा और जब कल आता है और पानी बंद हो जाता है तो क्या वह व्यक्ति बिना पानी का रह जाता है? नहीं, वह पानी बिना नहीं रहता। वह पानी का जुगाड़ करता है। थोड़ी परेशानी उठाता है, थोड़ी मेहनत करता है, थोड़ा समय खपाता है, पर पानी का इंतजाम कर लेता है। ऐसी कई जरूरतें आदमी पूरी करता है,,जो उसके सामने एकाएक आती हैं। घर में पैसे नहीं, किताब कैसे खरीदें, फिर भी पढ़ने वाला पढ़ता है, लैंप पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ता है, उधार किताबें मांगकर पढ़ता है और डिस्टिंक्शन मार्क लाता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो पहले ही झटके में सफलता पा गया हो। क्या किया उसने? सफल व्यक्तियों का आकलन करें तो पता चलता है कि उसने विफलताओं से सबक लिया और निरंतर प्रयास की प्रक्रिया जारी रख कर उसने सफलता पायी। थक-हार कर बैठने वाला आखिर कैसे सफल हो सकता है?
जब परिस्थितियां प्रतिकूल दिखें तो सबसे पहले यह जरूरी है कि आप गहराई से अध्ययन कर ऐसी स्थितियों के लिए कारणों का पता करें। यदि कारण मिल गया तो निवारण भी मिलेगा। जरूरत है कारणों की तलाश की। कभी-कभी कारण नहीं मिल पाते, पर परिणाम से पता चलता है कि स्थितियां प्रतिकूल होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में मान्य प्रक्रियाओं के तहत आचरण और व्यवहार को दुरुस्त करने की जरूरत होती है। कभी-कभी इसके दुरुस्त रहने के बावजूद स्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं। ऐसे में पूरे माहौल को सार्वजनिक रूप से व्यापकता देकर देखने की जरूरत होती है। आपको देखना होगा कि जिस माहौल, जिस परिवेश में आप रह रहे हैं, उसी माहौल और उसी परिवेश में और भी लोग कैसे रह रहे हैं। ऐसे में परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का सूत्र पकड़ में आ सकता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का सबसे बेहतर तरीका है, खुद पर विश्वास। आप कितने मजबूत हैं, इसका इसी बात से पता चलता है कि आपका अपने ऊपर कितना भरोसा है। जिसका अपने ऊपर ही भरोसा नहीं होगा, उसके लिए स्थितियां क्या अनुकूल और क्या प्रतिकूल? आंधियों से सीना भिड़ाने का जज्बा रखने वालों ने तो हवाओं का रुख भी मोड़ दिया है। अपने को खंगालिए, पहचानिए। क्या जन्म लेते ही आपने इतनी शिक्षा हासिल कर ली? नहीं न? समय गुजरा, हिम्मत दिखायी, लगे-भिड़े, डांट खायी-फटकार लगी, तब जाकर आपने कक्षा दर कक्षा पास की। नौकरी के लिए कहां-कहां न परीक्षाएं दीं, कैसे-कैसे न इंटरव्यू फेस किये, तब जाकर पास हुए। अब परिस्थितियां थोड़ी प्रतिकूल चल रही हैं। तो इसे भी तभी दूर किया जाता है, इसका भी रूख तभी मोड़ा जा सकता है, जब आपका खुद पर भरोसा होगा। मेरा मानना है कि जिनका खुद पर भरोसा टूटा, डिगा, परिस्थितियां उनके लिए ही प्रतिकूल हो जाती हैं। और जब आप खुद पर भरोसा कर रहे हों तो आपके पास होना चाहिए-धैर्य, संयम और निष्ठा। व्यक्तित्व विकास पर चर्चा अभी जारी रहेगी।

झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए।

3 comments:

  1. खुद पर कैसे करें भरोसा, यह भी समझाइए। - अनोज (राजस्थाना)

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  2. आपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . यदि मनोबल ऊँचा हो तो प्रतिकूल परिश्तियाँ अनुकूल हो जाती है . बधाई अच्छे विचारो के लिए.
    महेन्द्र मिश्र

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  3. बहुत अच्‍छा आलेख.....आभार।

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