जब परिस्थितियां प्रतिकूल दिखें तो सबसे पहले यह जरूरी है कि आप गहराई से अध्ययन कर ऐसी स्थितियों के लिए कारणों का पता करें। यदि कारण मिल गया तो निवारण भी मिलेगा। जरूरत है कारणों की तलाश की। कभी-कभी कारण नहीं मिल पाते, पर परिणाम से पता चलता है कि स्थितियां प्रतिकूल होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में मान्य प्रक्रियाओं के तहत आचरण और व्यवहार को दुरुस्त करने की जरूरत होती है। कभी-कभी इसके दुरुस्त रहने के बावजूद स्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं। ऐसे में पूरे माहौल को सार्वजनिक रूप से व्यापकता देकर देखने की जरूरत होती है। आपको देखना होगा कि जिस माहौल, जिस परिवेश में आप रह रहे हैं, उसी माहौल और उसी परिवेश में और भी लोग कैसे रह रहे हैं। ऐसे में परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का सूत्र पकड़ में आ सकता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का सबसे बेहतर तरीका है, खुद पर विश्वास। आप कितने मजबूत हैं, इसका इसी बात से पता चलता है कि आपका अपने ऊपर कितना भरोसा है। जिसका अपने ऊपर ही भरोसा नहीं होगा, उसके लिए स्थितियां क्या अनुकूल और क्या प्रतिकूल? आंधियों से सीना भिड़ाने का जज्बा रखने वालों ने तो हवाओं का रुख भी मोड़ दिया है। अपने को खंगालिए, पहचानिए। क्या जन्म लेते ही आपने इतनी शिक्षा हासिल कर ली? नहीं न? समय गुजरा, हिम्मत दिखायी, लगे-भिड़े, डांट खायी-फटकार लगी, तब जाकर आपने कक्षा दर कक्षा पास की। नौकरी के लिए कहां-कहां न परीक्षाएं दीं, कैसे-कैसे न इंटरव्यू फेस किये, तब जाकर पास हुए। अब परिस्थितियां थोड़ी प्रतिकूल चल रही हैं। तो इसे भी तभी दूर किया जाता है, इसका भी रूख तभी मोड़ा जा सकता है, जब आपका खुद पर भरोसा होगा। मेरा मानना है कि जिनका खुद पर भरोसा टूटा, डिगा, परिस्थितियां उनके लिए ही प्रतिकूल हो जाती हैं। और जब आप खुद पर भरोसा कर रहे हों तो आपके पास होना चाहिए-धैर्य, संयम और निष्ठा। व्यक्तित्व विकास पर चर्चा अभी जारी रहेगी।
झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए।
खुद पर कैसे करें भरोसा, यह भी समझाइए। - अनोज (राजस्थाना)
ReplyDeleteआपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . यदि मनोबल ऊँचा हो तो प्रतिकूल परिश्तियाँ अनुकूल हो जाती है . बधाई अच्छे विचारो के लिए.
ReplyDeleteमहेन्द्र मिश्र
बहुत अच्छा आलेख.....आभार।
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