आप देख सकते हैं गुप्ता जी, अपराधी चुनाव में खड़ा हो रहे हैं और जीत रहे हैं। जीत ही नहीं, गद्दी भी पकड़ते जा रहे हैं। तो जीतने के बाद वे क्या करेंगे? वे वही कर रहे हैं, जो उनकी प्रकृति है, प्रवृति है। तो उन्हें जीत की दहलीज पर पहुंचाने वालों को क्या कहा जाय? क्या उन्हें परिश्रमी माना जायेगा, मेहनती माना जायेगा, उद्यमी माना जायेगा? गुप्ता जी, पूरी कौम में नक्कारापन बज रहा है, उसी का परिणाम है-लूट-दंगा-खून और इन सब से सनी आज की राजनीति व राजनेता। लोगों को अपना लक्ष्य तय करना होगा, अपना श्रम तय करना होगा और उस पर मेहनत करनी होगी। इतना ही नहीं, मेहनत की रोटी खाने का संकल्प लेना होगा। तभी उपजेगी ईमानदारी और तभी अस्तित्व में आयेगा अनुशासन। फिलहाल राज्य, सत्ता औऱ श्रम पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध रचना कुरुक्षेत्र से कुछ पंक्तियां पेशे खिदमत है, मुलाहिजा फरमाइए।
एक
छिपा दिये सब तत्वआवरण के नीचे ईश्वर ने
संघर्षों से खोज निकाला
उन्हें उद्यमी नर ने।
दो
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में
मनुज नहीं लाया है
अपना सुख उसने अपने
भुजबल से ही पाया है।
तीन
प्रकृति नहीं झुकती है
कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से, श्रमजल से।
चार
नर समाज का भाग्य एक है
वह श्रम, वह भुजबल है
जिसके सम्मुख झुकी हुई
पृथिवी, विनीत नभ तल है।
पांच
श्रम होता सबसे अमूल्य धन
सब जन खूब कमाते
सब अशंक रहते अभाव से
सब इच्छित सुख पाते।
छह
राजा-प्रजा नहीं कुछ होता,
होते मात्र मनुज ही,
भाग्य लेख होता न मनुज को
होता कर्मठ भुज ही।
फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। जैसा कि पिछली बार भी कहा गया था, अगली पोस्ट में सकारात्मक सोच पर ही विचार पेश किये जायेंगे।
भूख इंसान को गद्दार बना देती है।
अच्छा लगा, लिखते रहिए। सकारात्मक सोच पर आपके आलेख का इंतजार है। - अनोज शुक्ला, अजमेर, राजस्थान।
ReplyDeletebilkul sahi likhaa aapne aisi chetna ko jagaaye rakhiye
ReplyDeleteaccha likha hai ..likhte rahiye....
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