Sunday, November 16, 2014

खबर साफ्ट तो हेडिंग हार्ड - 2

खबरों की जान है शीर्षक - 6

आइए लेते हैं खबरों की खबर - 10


उदाहरण दो - शहर गोरखपुर। एक अभियान प्लान किया गया। नाम दिया गया - क्यों न काटे मच्छर। इस कालम के तहत नगर निगम की कारगुजारियों, कमियों और शहर भर में व्याप्त  गंदगियों पर स्टोरी बन रही थी, छप रही थी। एक खबर बनी शहर के नालों पर। आलम यह था कि शहर के सभी नाले जाम थे और खबर भी इसी गंदगी को परोस रही थी। मदद कर रहे थे फोटो, जो बता रहे थे कि यहां के नाले-वहां के नाले बजबजा रहे हैं, उबल रहे हैं। अब मौका था ब्रेन ड्रेन का। क्यों? इसलिए कि नालों पर निश्चित रूप से इसके पहले भी खबरें छप चुकी होंगी, फोटो छप चुके होंगे।

तो शुरू हुई चर्चा। दो ही बातें थीं। एक नालों की गंदगी, दूसरी इसकी सफाई में लापरवाही। सवाल था लापरवाह कौन? जवाब भी तय था नगर निगम, उसके मुलाजिम। अगला सवाल था आखिर नगर निगम सफाई क्यों नहीं करता? क्या लापरवाही है? जवाब जो आया, वह चौंकाने वाला था। यानी लापरवाही तो बहुत बाद की बात है, बड़ी बात है लूट। लूट? हां, लूट पैसों की लूट। पैसों की लूट? हां, नाला सफाई के नाम पर नगर निगम को जो पैसे खर्च करने होते हैं, उसे मिल-बांट कर हजम कर लिया जाता है। यह बड़ी राशि है साहब। तो अगला जो वाक्य था, वही शीर्षक बन गया और लगातार चलने वाली एक बोझिल स्टोरी सिर्फ उसी हार्ड हेडिंग के बल कल की सनसनी थी, खलबली थी। नगर निगम से लेकर जिला प्रशासन तक को झकझोर रही थी, अलार्म कर रही थी, बड़े घपले का पर्दाफाश कर रही थी, सरकार को कदम उठाने पर मजबूर कर रही थी। यह हेडिंग थी - नाला नहीं, खजाना साफ।

उदाहरण तीन - पश्चिम चंपारण जिले के भितिहरवा (गांधी आश्रम) में कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मेलन था। राहुल गांधी आ रहे थे। सुरक्षा कड़ी थी। सिर्फ कार्यकर्ताओं को ही जाने की इजाजत थी, जबकि भितिहरवा के भोले-भाले ग्रामीणों को हुजूम राहुल को एक नजर देखने भर को बेताब था,  बैरिकेडिंग तोड़ देने पर उतारू था। राहुल वायुसेना के हेलिकाप्टर से आए। कार्यकर्ता सम्मेलन, सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ पर अलग-अलग कई हार्ड खबरें बनीं। निश्चित रूप से खबरें-फोटो पहले पन्ने से अंदर तक कवर हो रहे थे। सभी खबरें प्रेषित कर लौटने के दौरान रास्ते में स्टेट एडीटर का सुझाव आया कि एक ऐसी साफ्ट खबर बने जिसकी हेडिंग हार्ड हो, जो पूरे माहौल को फोकस करती हो और जो दिलों में घुस जाए, लोगों को याद रह जाए। यदि इसमें राहुल की थोड़ी प्रशंसा भी होती है तो हो जाए।

सभी खबरें लिखी जा चुकी थीं। मगर, सुझाव स्टेट एडीटर का था। सो, शुरू हो गया ब्रेन ड्रेन। दिमाग में बिजली की तरह एक ही बात कौंधी कि राहुल के आने, कार्यकर्ताओं को संबोधित करने और भितिहरवा से दरभंगा के लिए उड़ जाने के दौरान कॉमन क्या था। क्या था?? क्या था जो समय के बदलते नहीं बदला? क्या था जो तब भी था जब राहुल आए और तब भी था जब राहुल गए? निश्चित रूप से स्टोरी साफ्ट थी, मगर इसकी हेडिंग हार्ड का दर्जा पाने वाली थी। और लौटकर बेतिया पहुंचते वह कामन वस्तु मिल गई थी, हेडिंग भी बन गई थी। शीर्षक था - तेरा मुस्कुराना गजब ढा गया। यह मुस्कुराहट ही थी जो तब भी राहुल के चेहरे पर चस्पा थी जब वे हेलिकाप्टर से उतरे, तब भी थी जब कार्यकर्ता सम्मेलन में थे, तब भी थी जब बैरिकेडिंग की ओर उतारू भीड़ से हाथें मिला रहे थे, तब भी थी जब कस्तूरबा बालिका विद्यालय में शिक्षक से बातें कर रहे थे और तब भी थी जब हेलिकाप्टर से आगे की उड़ान भर रहे थे। यह हेडिंग उस रोज दैनिक जागरण की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी बाजी मार ले गई।

तो क्या अब भी यह बताने की जरूरत है कि साफ्ट खबर की डिमांड हार्ड हेडिंग ही होती है? क्या यह भी बताने की जरूरत है कि आखिर यह लगाई कैसे जाती है? यदि नहीं तो अगला वाक्य याद रखिए। यदि आप अखबार की दुनिया से जुड़े हैं, खबरों का सरोकार जीते हैं तो मान लीजिए आपके लिए यह बहुत ही आसान है, बहुत ही आसान। हेडिंग को लेकर कुछ और महत्वपूर्ण बातें अगली पोस्ट में। इंतजार कीजिए। 

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