खबरों की जान हैं शीर्षक - 2
आइए लेते हैं खबरों की खबर -6
जमशेदपुर की बात है। पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में राजनीति की दिशा और दशा पर हफ्तेवार पूरा पेज लिखने वाले बुजुर्ग पत्रकार केदार महतो (अब इस दुनिया में नहीं हैं) कहा करते थे कि यदि खबर हार्ड हो तो शीर्षक साफ्ट बनाइएगा और खबर साफ्ट हो तो शीर्षक को हार्ड कर दीजिएगा। हमलोग उन्हें चाचा कहा करते थे। जब पूछता कि चाचा, जरा विस्तार से बताइए तो कहते खुद सोचिए। बड़ी मुश्किल थी, कोफ्त भी होती थी। पहले तो बात समझ में ही नहीं आई। पर, इतना जरूर हुआ कि दिमाग चलने लगा। जब कभी हार्ड खबर लेकर बैठता तो साफ्ट हेडिंग सोचने लगता। जब कभी साफ्ट खबर लेकर बैठता तो हार्ड हेडिंग सोचने लगता। अजीब मुसीबत थी। आप विश्वास करिए, यह मशक्कत हर खबर की हेडिंग के लिए होने लगी। और नतीजा बड़ा चमत्कारिक था। अखबार चमकने लगा था।
तो मुद्दे पर आएं। क्या हो हार्ड खबर की साफ्ट हेडिंग और साफ्ट खबर की हार्ड हेडिंग? अमूमन होता यह है कि जब किसी अधिकारी या विभाग की कलई खोलती हार्ड खबर लिखी जाती है तो संवाददाता या डेस्क के साथी हेडिंग को भी हार्ड ही रखते हैं। लेकिन, जरा रुकिए, सोचिए..। क्या इसकी कोई साफ्ट हेडिंग हो सकती थी जो तीर की तरह सीधे दिलोदिमाग में घुस जाती? सोचिए कि क्या यह खबर किसी विभाग या किसी अधिकारी के भ्रष्टाचार की कलई खोलती पहली खबर बन रही है? क्या वह पहला विभाग है या पहला अफसर है जो भ्रष्टाचार में लिप्त है? तो सोचिए कि आप इस खबर का शीर्षक हार्ड बनाने पर क्यों तुले हैं?
खबर में मुख्य रूप से तीन प्राथमिकताएं ही होती हैं। पहली सूचित करना। दूसरी सावधान करना। तीसरी संवाद करना। इन तीन प्राथमिकताओं पर गौर कीजिए। यह हार्ड और साफ्ट की परिभाषा भी समझा रही हैं। मेरा आग्रह तीसरी प्राथमिकता पर है। संवाद की श्रृंखला ही आपको इस फर्क को समझाने लगेगी। सवाल आएगा कि इस खबर को लेकर संवाद किससे? किससे?? फिर सोचिए, इस खबर की बाबत आप संवाद किससे कर रहे हैं। क्या उस आम पाठक से जो अखबार खरीदकर पढ़ रहा है? क्या उस विभाग के आला अधिकारी या सीधे सरकार से? सोचिए, क्या यह संवाद सीधे उस विभाग से या उस अधिकारी से नहीं हो सकता? मुझे लगता है कि अब आपकी हेडिंग बन गई होगी। और एक नहीं, कई हेडिंग्स बन गई होंगी। बनी कि नहीं? चलिए, हम ही कुछ सुझाते हैं। भ्रष्टाचार की कलई खोलती इस तस्वीर के कई साफ्ट शीर्षक हो सकते हैं - मनरेगा में यह क्या हो रहा है सर..., मत बेचिए भूखों का अनाज, आ गया भादो अब क्या करेंगे जॉब कार्ड आदि आदि...।
ग्लैमर की चकाचौंध भरे आज के परिवेश में कहीं कोई भूख से मर जाता है। आपको इसकी खबर बनानी है। बहुत आक्रोश होगा मन में। व्यवस्था के प्रति, समाज के प्रति। क्या लिख दें। मन कर रहा होगा कि गुस्से का कोई आखिरी शब्द हो तो उसे ही उकेर दें। पर सावधान, यह हार्ड खबर बिल्कुल साफ्ट हेडिंग की मांग कर रही है। सोचिए, यदि इसकी हेडिंग आप यह लगा दें 'उफ वो ठंडा चूल्हा, वो चमकते बर्तन' तो क्या कम मारक दिखेगी, क्या कम व्यवस्था को झकझोरेगी, क्या इससे निकलने वाला दर्द कुछ ही लोगों को टीसेगा? सोचिए, सोचिए।
और मतलब समझे? कैसे बनती है हार्ड खबर की साफ्ट हेडिंग? पहली बात, आपको खबर से पूरी तरह जुड़ जाना होगा, उस पूरी घटना को अपने ऊपर हुआ मानना होगा। दूसरी बात, अपनी जुबान को किसी भी कुव्यवस्था या भ्रष्टाचार की वजह से पीड़ित की फरियाद लगाने वाले की जुबान बनानी होगी। और सावधानी भी जरूरी है। यह कि मामला प्रखंड की गड़बड़ी का हो तो दोषी पूरे जिला प्रशासन को मत ठहरा दीजिएगा, दोष जिलाधिकारी के मत्थे मत मढ़ दीजिएगा। फिर खबर जिस असर, जिस परिणाम के लिए लिखी जाएगी, उसमें देरी हो जाएगी।
अब एक सवाल उठ सकता है कि हत्या, लूट और बलात्कार जैसी हार्ड खबर की हेडिंग साफ्ट कैसे की जाए? है न रोचक सवाल? तो जवाब अगली पोस्ट में।
आइए लेते हैं खबरों की खबर -6
जमशेदपुर की बात है। पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में राजनीति की दिशा और दशा पर हफ्तेवार पूरा पेज लिखने वाले बुजुर्ग पत्रकार केदार महतो (अब इस दुनिया में नहीं हैं) कहा करते थे कि यदि खबर हार्ड हो तो शीर्षक साफ्ट बनाइएगा और खबर साफ्ट हो तो शीर्षक को हार्ड कर दीजिएगा। हमलोग उन्हें चाचा कहा करते थे। जब पूछता कि चाचा, जरा विस्तार से बताइए तो कहते खुद सोचिए। बड़ी मुश्किल थी, कोफ्त भी होती थी। पहले तो बात समझ में ही नहीं आई। पर, इतना जरूर हुआ कि दिमाग चलने लगा। जब कभी हार्ड खबर लेकर बैठता तो साफ्ट हेडिंग सोचने लगता। जब कभी साफ्ट खबर लेकर बैठता तो हार्ड हेडिंग सोचने लगता। अजीब मुसीबत थी। आप विश्वास करिए, यह मशक्कत हर खबर की हेडिंग के लिए होने लगी। और नतीजा बड़ा चमत्कारिक था। अखबार चमकने लगा था।
तो मुद्दे पर आएं। क्या हो हार्ड खबर की साफ्ट हेडिंग और साफ्ट खबर की हार्ड हेडिंग? अमूमन होता यह है कि जब किसी अधिकारी या विभाग की कलई खोलती हार्ड खबर लिखी जाती है तो संवाददाता या डेस्क के साथी हेडिंग को भी हार्ड ही रखते हैं। लेकिन, जरा रुकिए, सोचिए..। क्या इसकी कोई साफ्ट हेडिंग हो सकती थी जो तीर की तरह सीधे दिलोदिमाग में घुस जाती? सोचिए कि क्या यह खबर किसी विभाग या किसी अधिकारी के भ्रष्टाचार की कलई खोलती पहली खबर बन रही है? क्या वह पहला विभाग है या पहला अफसर है जो भ्रष्टाचार में लिप्त है? तो सोचिए कि आप इस खबर का शीर्षक हार्ड बनाने पर क्यों तुले हैं?
खबर में मुख्य रूप से तीन प्राथमिकताएं ही होती हैं। पहली सूचित करना। दूसरी सावधान करना। तीसरी संवाद करना। इन तीन प्राथमिकताओं पर गौर कीजिए। यह हार्ड और साफ्ट की परिभाषा भी समझा रही हैं। मेरा आग्रह तीसरी प्राथमिकता पर है। संवाद की श्रृंखला ही आपको इस फर्क को समझाने लगेगी। सवाल आएगा कि इस खबर को लेकर संवाद किससे? किससे?? फिर सोचिए, इस खबर की बाबत आप संवाद किससे कर रहे हैं। क्या उस आम पाठक से जो अखबार खरीदकर पढ़ रहा है? क्या उस विभाग के आला अधिकारी या सीधे सरकार से? सोचिए, क्या यह संवाद सीधे उस विभाग से या उस अधिकारी से नहीं हो सकता? मुझे लगता है कि अब आपकी हेडिंग बन गई होगी। और एक नहीं, कई हेडिंग्स बन गई होंगी। बनी कि नहीं? चलिए, हम ही कुछ सुझाते हैं। भ्रष्टाचार की कलई खोलती इस तस्वीर के कई साफ्ट शीर्षक हो सकते हैं - मनरेगा में यह क्या हो रहा है सर..., मत बेचिए भूखों का अनाज, आ गया भादो अब क्या करेंगे जॉब कार्ड आदि आदि...।
ग्लैमर की चकाचौंध भरे आज के परिवेश में कहीं कोई भूख से मर जाता है। आपको इसकी खबर बनानी है। बहुत आक्रोश होगा मन में। व्यवस्था के प्रति, समाज के प्रति। क्या लिख दें। मन कर रहा होगा कि गुस्से का कोई आखिरी शब्द हो तो उसे ही उकेर दें। पर सावधान, यह हार्ड खबर बिल्कुल साफ्ट हेडिंग की मांग कर रही है। सोचिए, यदि इसकी हेडिंग आप यह लगा दें 'उफ वो ठंडा चूल्हा, वो चमकते बर्तन' तो क्या कम मारक दिखेगी, क्या कम व्यवस्था को झकझोरेगी, क्या इससे निकलने वाला दर्द कुछ ही लोगों को टीसेगा? सोचिए, सोचिए।
और मतलब समझे? कैसे बनती है हार्ड खबर की साफ्ट हेडिंग? पहली बात, आपको खबर से पूरी तरह जुड़ जाना होगा, उस पूरी घटना को अपने ऊपर हुआ मानना होगा। दूसरी बात, अपनी जुबान को किसी भी कुव्यवस्था या भ्रष्टाचार की वजह से पीड़ित की फरियाद लगाने वाले की जुबान बनानी होगी। और सावधानी भी जरूरी है। यह कि मामला प्रखंड की गड़बड़ी का हो तो दोषी पूरे जिला प्रशासन को मत ठहरा दीजिएगा, दोष जिलाधिकारी के मत्थे मत मढ़ दीजिएगा। फिर खबर जिस असर, जिस परिणाम के लिए लिखी जाएगी, उसमें देरी हो जाएगी।
अब एक सवाल उठ सकता है कि हत्या, लूट और बलात्कार जैसी हार्ड खबर की हेडिंग साफ्ट कैसे की जाए? है न रोचक सवाल? तो जवाब अगली पोस्ट में।
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