आइए लेते हैं खबरों की खबर - 3
खबरों से जुड़े किसी भी शख्स से यह पूछा जाए कि खबरों के कितने वर्ग होते हैं तो वह सीधे-सीधे कई खबरें गिना डालेगा। अपराध-अपराधी की खबरें, घटना-दुर्घटना की खबरें, साहित्य-संस्कृति-सामाजिक सरोकारों की खबरें, शासन-प्रशासन-विधि व्यवस्था की खबरें, शिक्षा-शिक्षक की खबरें, कारोबार-कारोबारी की खबरें, ट्रैफिक-यातायात-परिवहन की खबरें, यात्रा-पर्यटन की खबरें, संचार-दूरसंचार की खबरें, नेता-राजनीति की खबरें, संस्था-संस्थान की खबरें आदि-आदि....।
सही भी है। मोटे तौर पर खबरें इन्हीं जगहों से निकलती हैं, इन्हीं की होती हैं। मगर क्या कभी आपने सोचा कि इन्हीं खबरों के भीतर कुछ और वर्ग तैयार खड़े होते हैं, जिन पर गौर करना बेहद जरूरी हो जाता है। इन वर्गों पर गौर किए बगैर खबरों में घुसे, खबर लिखनी शुरू कर दी, लिख दी तो गड़बड़ी शुरू हो जाती है। गड़बड़ी यानी डेस्क को, आपके संपादक को और अंततः अखबार को या उस मीडिया माध्यम को जिससे आप जुड़े हुए हैं और जिसे आप खबर दे रहे हैं।
जरा सोचिए। वह कोई एक खबर ही तो होती है जो लीड बन जाती है, वह कोई एक खबर ही तो होती है जो बाटम बन जाती है। कोई खबर पहले पन्ने पर जगह ले लेती है कोई अंदर के पन्ने पर चली जाती है। वह भी खबर ही होती है जिसे टाप में बाक्स ट्रीटमेंट दिया जाता है या कह दिया जाता है कि अंदर के किसी भी पन्ने पर बाक्स लगा लें। ध्यान दें, खबर तो वह भी होती है, जिसे छापने से मना कर दिया जाता है।
खबरों का वर्गीकरण और भी हैं। यह है साइज, लेंथ। अकसर अखबारों में बेहद गंभीर चर्चाएं सिर्फ इस बात पर होती हैं कि इस खबर को लीड लगाओ पर दो कालम ट्रीटमेंट दो, तीन कालम ट्रीटमेंट दो या चार कालम से ज्यादा मत छापो। यह तो बैनर है यार, इस खबर को पूरे आठ (आजकल सात) कालम में तानकर- लहराकर छापो। इस खबर को चार कालम में क्यों लिख दिया, यह तो सिंगल कालम में भी छपने के लायक नहीं है, इस खबर को तो ब्रीफ में निपटा दो, इसमें है क्या। इस खबर को सिंगल में क्यों निपटा दिया, इसे कम से कम तीन कालम में छापने के लायक लिखो। इस खबर को किसने लिखा, क्यों लिखा, कितना पैसा खाकर लिखा आदि-आदि...।
अब यह सोचिए, खबरों की साइज, लेंथ और उसके प्लेसमेंट पर विचार किए बगैर आपने खबर लिख दी तो कितनी गड़बड़ होती है! एक खबर पर कितनी देर तक उलझन होगी, बहस होगी, समय बर्बाद होगा, आप डांट खाएंगे और पूरा काम करने के बाद भी निराश घर जाएंगे।
तो खबरों की दुनिया में चैन की सांस लेनी है तो उस हुनर का मास्टर बनकर रहिए जहां अगला आपको सिर्फ खबरों की लेंथ-साइज और प्लेसमेंट को लेकर क्लास लगा देता है। और इसका हुनरमंद बनना बेहद आसान है। कुछ बातें सोचने के लिए तो आपको यही आलेख मजबूर कर रहा होगा, कुछ आगे का कर देगा। इंतजार कीजिए।
खबरों से जुड़े किसी भी शख्स से यह पूछा जाए कि खबरों के कितने वर्ग होते हैं तो वह सीधे-सीधे कई खबरें गिना डालेगा। अपराध-अपराधी की खबरें, घटना-दुर्घटना की खबरें, साहित्य-संस्कृति-सामाजिक सरोकारों की खबरें, शासन-प्रशासन-विधि व्यवस्था की खबरें, शिक्षा-शिक्षक की खबरें, कारोबार-कारोबारी की खबरें, ट्रैफिक-यातायात-परिवहन की खबरें, यात्रा-पर्यटन की खबरें, संचार-दूरसंचार की खबरें, नेता-राजनीति की खबरें, संस्था-संस्थान की खबरें आदि-आदि....।
सही भी है। मोटे तौर पर खबरें इन्हीं जगहों से निकलती हैं, इन्हीं की होती हैं। मगर क्या कभी आपने सोचा कि इन्हीं खबरों के भीतर कुछ और वर्ग तैयार खड़े होते हैं, जिन पर गौर करना बेहद जरूरी हो जाता है। इन वर्गों पर गौर किए बगैर खबरों में घुसे, खबर लिखनी शुरू कर दी, लिख दी तो गड़बड़ी शुरू हो जाती है। गड़बड़ी यानी डेस्क को, आपके संपादक को और अंततः अखबार को या उस मीडिया माध्यम को जिससे आप जुड़े हुए हैं और जिसे आप खबर दे रहे हैं।
जरा सोचिए। वह कोई एक खबर ही तो होती है जो लीड बन जाती है, वह कोई एक खबर ही तो होती है जो बाटम बन जाती है। कोई खबर पहले पन्ने पर जगह ले लेती है कोई अंदर के पन्ने पर चली जाती है। वह भी खबर ही होती है जिसे टाप में बाक्स ट्रीटमेंट दिया जाता है या कह दिया जाता है कि अंदर के किसी भी पन्ने पर बाक्स लगा लें। ध्यान दें, खबर तो वह भी होती है, जिसे छापने से मना कर दिया जाता है।
खबरों का वर्गीकरण और भी हैं। यह है साइज, लेंथ। अकसर अखबारों में बेहद गंभीर चर्चाएं सिर्फ इस बात पर होती हैं कि इस खबर को लीड लगाओ पर दो कालम ट्रीटमेंट दो, तीन कालम ट्रीटमेंट दो या चार कालम से ज्यादा मत छापो। यह तो बैनर है यार, इस खबर को पूरे आठ (आजकल सात) कालम में तानकर- लहराकर छापो। इस खबर को चार कालम में क्यों लिख दिया, यह तो सिंगल कालम में भी छपने के लायक नहीं है, इस खबर को तो ब्रीफ में निपटा दो, इसमें है क्या। इस खबर को सिंगल में क्यों निपटा दिया, इसे कम से कम तीन कालम में छापने के लायक लिखो। इस खबर को किसने लिखा, क्यों लिखा, कितना पैसा खाकर लिखा आदि-आदि...।
अब यह सोचिए, खबरों की साइज, लेंथ और उसके प्लेसमेंट पर विचार किए बगैर आपने खबर लिख दी तो कितनी गड़बड़ होती है! एक खबर पर कितनी देर तक उलझन होगी, बहस होगी, समय बर्बाद होगा, आप डांट खाएंगे और पूरा काम करने के बाद भी निराश घर जाएंगे।
तो खबरों की दुनिया में चैन की सांस लेनी है तो उस हुनर का मास्टर बनकर रहिए जहां अगला आपको सिर्फ खबरों की लेंथ-साइज और प्लेसमेंट को लेकर क्लास लगा देता है। और इसका हुनरमंद बनना बेहद आसान है। कुछ बातें सोचने के लिए तो आपको यही आलेख मजबूर कर रहा होगा, कुछ आगे का कर देगा। इंतजार कीजिए।
U r great sir
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