नजीर के कलाम 'यां आदमी पे जान को वारे है आदमी और आदमी पे तेग को मारे है आदमी...’ की तरह ही तो दिखता है वह। आता है, चाय-नाश्ता-भोजन करता है, इंसानियत के रिश्ते गांठता है, चकाचौंध व ग्लैमर भरी जिंदगी के सपने दिखाता है और आखिर में सालम आदमी को बेच देता है वह आदमी। हथियार-नशीली दवाओं के बाद विश्व के दूसरे बड़े संगठित अपराध 'मानव व्यापार’ का बरास्ते नेपाल बार्डर इतना ही तो सच है। अपना बनाकर दामन में दाग लगाने वाला और इंसानी जेहन में सन्नाटा मचा देने वाला यह खेल उत्तर बिहार से जुड़ी खुली नेपाल सीमा के कदम-कदम पर हर रोज खेला जाता है। गोरखपुर से शुरू होकर वाल्मीकिनगर, रक्सौल, सोनबरसा, भिïट्टामोड़, बैरगनिया, पूर्णिया, सुपौल से लेकर पश्चिम बंगाल तक।
पश्चिमी चंपारण में 26 अप्रैल 2008 को सीमावर्ती वाल्मीकिनगर थाना क्षेत्र होकर बार्डर पार कराने के दौरान पकड़ी गयी सात नेपाली लड़कियों ने जो बताया और उससे क्रास बार्डर ट्रैफिकिंग की जो कहानी सामने आयी, वह किसी भी संवदेनशील इंसान के मानस पटल को झकझोर कर रख देने वाली है। कभी लड़की के जन्म पर लक्ष्मी का आना मानकर खुशियां मनाने और जश्न में डूब जाने वाला गरीब नेपाली समुदाय आज पूरी तरह ग्लैमर की चकाचौंध में फंस गया है। नेपाल सरकार परेशान रहे तो रहे, भारत हाय-तोबा मचाता रहे तो रहे, विश्व भर में जहां-तहां राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में चिंता प्रदर्शन का दौर जारी रहे तो रहे, पर यह सच है कि तराई के करीब आधा दर्जन से अधिक जिलों सरलाही, वारा, परसा, नवलपरासी, मकवानपुर, सिंधुली और थरुहट इलाके में 'मानव व्यापार’ को किसी अपराध के नजरिये से बिल्कुल नहीं देखा जाता। हां, यह रोटी के जुगाड़ का आसान मार्ग जरूर है। जिसे आम दुनिया सिंडिकेट, रैकेट और नेक्सस के रूप में जानती है, उसे यहां का बड़ा हिस्सा रोजगार मुहैया कराने वाला मानता है। जी हां, पूरा सौदा तय होता है। परिवार के अभिभावक को एक साल का मेहनताना एडवांस दिया जाता है। कम से कम पच्चीस सौ रुपये प्रतिमाह की तय राशि पर एक युवती घर से निकल पड़ती है पैसे कमाने के सपने को पूरा करने। पश्चिमी चंपारण के वाल्मीकिनगर, पूर्वी चंपारण के रक्सौल, सीतामढ़ी के बैरगनिया और मधुबनी के जयनगर में कहीं भी नेपाल बार्डर पर जब वे पकड़ी जाती हैं तो यह साबित करना ही मुश्किल होता है कि वे किसी साजिश का शिकार हैं। साथ चलने वाले लड़के को वे अपना रिश्तेदार बताती हैं, जबकि लड़का भी कुछ ऐसी ही बातें करता रहता है। कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों के हाथ तो कुछ नहीं आता। जब वे उन लड़कियों को वापस उनके परिजनों के हवाले करते हैं तो उनमें लौटकर घर आने या किसी बड़ी मुसीबत से बच जाने की भी कोई खुशी नहीं दिखती।
खुले नेपाल बार्डर से मानव व्यापार का यह धंधा कब से शुरू है, यह कहना तो मुश्किल है, पर 2004 से मानव व्यापार पर रोक लगाने के लिए दो बड़े एनजीओ नेपाल में माइती नेपाल और भारत में दलित महिला उत्थान केन्द्र मानव सेवा संस्थान (सीबीटीएन) के वजूद में आने और सक्रिय होने के बाद इस पर अंकुश लगा है। इनके प्रतिनिधि सीमा पर खासकर रक्सौल में चौबीसों घंटे नजर रखते हैं। ट्रैफिकिंग के अधिकतर मामले रक्सौल में ही पकड़े जाते हैं। सीबीटीएन के मेंबर जब तक एक-एक बोगी को खंगाल नहीं लेते, तब तक रक्सौल से बड़े शहरों को जाने वाली लंबी दूरी की कोई ट्रेन नहीं खुलती। हालांकि, सिंडिकेट से जुड़े लोगों ने इससे पार पाने का भी रास्ता ढूंढ़ लिया है। अब वे 'खेप’ के साथ पैदल सीमा पार करते हैं, तांगा से भारत में भीतर घूम-फिरकर बस पकड़ते हैं और फिर रेलमार्ग से आगे निकल जाते हैं। महानगरों खासकर दिल्ली पहुंचने के बाद ही खेप सिंडिकेट के असली हाथों में जाती है।
आंकड़ा कहता है कि 9 से 16 वर्ष की सात हजार से दस हजार लड़कियां प्रतिवर्ष नेपाल से भारत भेजी जाती हैं, जो विभिन्न शहरों की सेक्स मंडियों से लेकर खाड़ी देशों तक में खपायी जाती हैं। एक अनुमान के अनुसार भारतीय सेक्स ट्रेड में इस वक्त करीब दो लाख नेपाली लड़कियां इस्तेमाल हो रही हैं या की जा रही हैं। 2006 में भारत में महिलाओं व बच्चों की तस्करी पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि नेपाल से आने वाली महिलाओं में से सर्वाधिक 42 फीसदी उत्तर प्रदेश व 40 फीसदी दिल्ली पहुंचती हैं। इसके अलावा नौ फीसदी महाराष्ट्र, पांच फीसदी पश्चिम बंगाल व चार फीसदी बिहार ले जायी जाती हैं।
नेपाल सीमा से चलाये जा रहे इस खेल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सिंडिकेट से सीधा जुड़ा कोई 'मुर्गा’ कभी पकड़ में नहीं आया। वाल्मीकिनगर में पकड़ी गयी लड़कियों की शिनाख्त पर पूर्वी चंपारण के एक कारोबारी का नाम सामने आया था, पर वह भी एक लंबा समय गुजर जाने के बावजूद शिकंजे से दूर ही है। पुलिस की आंखों में धूल झोंककर बदस्तूर जारी इस धंधे का सच यह है कि ट्रेनरों के हाथों कभी-कभी शिफ्टिंग की जिम्मेदारी मिल जाने से ही लड़कियों की खेप बार्डर पर पकड़ी जाती है। नेपाल ने अभी हाल में ही 4 मार्च 2009 को मानव व्यापार के खिलाफ बड़ी लड़ाई की घोषणा की है। उधर, भारत में भी इसको लेकर समय-समय पर सरगोशियां चलती रहती हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मानव व्यापार को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद माना है। जब कभी मामला उठा, कार्ययोजना का शीघ्र प्रारूप तैयार करने का वादा कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गयी। 8 नवंबर 2007 को पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यूनाइटेड नेशंस आफिस आन ड्रग्स ऐंड क्राइम के संयुक्त सहयोग से पटना, गया और मुजफ्फरपुर में तीन मानव व्यापार निरोध कोषांग का गठन किया। 3 फरवरी 2008 को तत्कालीन एडीजी सीआईडी अशोक कुमार गुप्ता जब मुजफ्फरपुर आये तो उन्होंने स्वीकारा कि नेपाल के रास्ते हो रही मानव तस्करी बेलगाम हो गयी है और इस पर काबू पाना जरूरी है। पर, बंद कमरे की ये बातें कभी बार्डर की राह नहीं पकड़ पायीं। खुली सीमा आज भी मानव व्यापार का प्रवेश मार्ग बनी है। 21 नवंबर 2008 को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के आईजी दिलीप टंडन ने नेपाल सीमा पर 750 महिला आरक्षियों की तैनाती की घोषणा की तो मानव व्यापार पर कुछ अंकुश लगने की उम्मीद जगी। हालांकि, 1800 किलोमीटर लंबी खुली नेपाल सीमा पर इससे कितना अंकुश लग पायेगा, कहना मुश्किल है। फिलहाल शिकारी कौन, शिकार कौन की मुश्किल पहचान के बीच सिलसिला कुछ यूं बना है - एक सन्नाटा मेरी पलकों पे लिखता है धुआं, जैसे एक कंदील के साये में हों तारीकियां, ठीक है कि स्वप्न मेरे टूट ही जायेंगे फिर, है इन्हीं सपनों में एक उम्मीद की महफिल जवां।
...पर सरगना कभी नहीं हुआ चिह्नित
पिछले एक साल में सिर्फ रक्सौल रेलवे स्टेशन परिक्षेत्र से करीब पांच सौ से अधिक युवतियों व गिरोह के लोगों को हिरासत में लिया गया। इस दौरान गिरोह के लोगों के पास से विदेशी मुद्रा व पासपोर्ट तक बरामद किये गये, पर स्थानीय या नेपाल प्रशासन इस कार्य में लगे सरगनाओं को चिह्नित करने में विफल साबित हुए। मानव तस्करी रोकने की दिशा में प्रयासरत स्वयंसेवी संगठन सीबीटीएन व प्रयास के सर्वे में यह खुलासा हुआ कि इस कार्य में लगे लोग युवक-युवतियों को अपना रिश्तेदार बताकर रक्सौल के रास्ते दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व खाड़ी देशों में ले जाते हैं और मोटी रकम लेकर उन्हें देह व्यापार मंडी, रेस्तरां, बार व होटलों में शारीरिक शोषण के लिए झोंक देते हैं।
छितौनी का रेल सह सड़क पुल वरदान
गोरखपुर से सटे पश्चिमी चंपारण के बगहा पुलिस जिले में स्थित गंडक नदी पर छितौनी के समीप बने रेल सह सड़क पुल तस्करों के लिए वरदान बना हुआ है। सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा, भिट्ठामोड़ व बैरगनिया की खुली सीमाएं मानव तस्करी के लिए तो बदनाम हैं ही, जिले के भीतर भी लड़कियों, महिलाओं व बच्चों को जाल में फांसा जा रहा है। सीतामढ़ी में पांच वर्षों के दौरान ट्रैफिकिंग से जुड़े करीब डेढ़ सौ से अधिक मामलों का खुलासा हुआ। यह भी सामने आया है कि युवतियों को पहले येन-केन प्रकारेण मुजफ्फरपुर भेजा जाता है, जहां से उन्हें आगे के गिरोहों के हवाले किया जाता है।
Monday, November 2, 2009
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हे राम , इन लडकियो को खरीदने वाले, बेचने वाले, ओर इन से धंधा करवाने वालो को इन मे से किसी की शकल अपनी मां बहन से मिलती नजर नही आती, क्या इन्हे यह होश नही होता कि इन सब की मां बहन भी तो एक ओरत है, जेसे यह इन्हे बेच रहे है कोई इन की मां बहन को बेच दे तो??
ReplyDeleteआप का लेख पढ कर आंखॆ खुली रह गई.
धन्यवाद