Wednesday, May 20, 2009

हीन भावना से कैसे उबरें?

दरभंगा से एक सुधी पाठक पंकज जी (निक नेम) ने इस ब्लाग पर व्यक्तित्व विकास के सिलसिले में लिखे गये आलेखों को पढ़ा और उसकी सराहना करते हुए मेल पर पूछा है कि व्यक्ति इंफीरियरिटी कांप्लेक्स (हीन भावना) से कैसे उबरे? पहले तो मैं उन्हें बधाई दे लूं कि वे मेरे ब्लाग पर आये, मेरे आलेखों को पढ़ा और सराहना की। एक बधाई इसलिए भी कि उन्होंने पर्सनालिटी डेवलपमेंट से संबंधित एक महत्वपूर्ण सवाल उठाकर इस दिशा में कुछ और लिखने को प्रेरित किया। सवाल करने वाले हर व्यक्ति का पता नहीं क्यों मैं दिल से सम्मान करना चाहता हूं। दरअसल, आज जिस सोसाइटी में हम रह रहे हैं, वहां सवाल उठने बंद हो गये हैं। जिस सोसाइटी में सवाल नहीं उठाये जाते, उस सोसाइटी को सीधा-सीधा मृत मान लेने में मैं कोई बुराई नहीं समझता। जब सवाल उठेंगे तभी तो जवाब ढूंढ़े जा सकेंगे। मैं पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर कई आलेख लिख चूका हूं, इसे कौन पढ़ता है, क्यों पढ़ता है, इसका सही पैमाना भी पंकज जी के सवालों से ही तय होता है, इसलिए उन्हें सवाल पूछने के लिए फिर से बधाई।
अब आते हैं मुद्दे पर। मुद्दा है, व्यक्ति हीन भावना से कैसे निकले, कैसे उबरे? तो आइए, पहले जानते हैं कि व्यक्ति आखिर हीन भावना से कैसे और किन परिस्थितियों में ग्रसित होता है। मेरा मानना है कि एक बार हीन भावना के पनपने और उससे ग्रसित होने के कारणों का विश्लेषण कर लिया जाय तो शायद जवाब तलाशना कठिन नहीं रह जायेगा। दरअसल, अलग-अलग परिस्थितियों में हीन भावना के पनपने के अलग-अलग कारण होते हैं। जब कारण अलग-अलग होंगे तो जाहिर है कि उनके निदान की विधियां भी अलग-अलग होंगी।
प्राथमिक स्तर पर दो चीजें हैं। एक परिवेश, दसरी व्यक्ति की क्षमता। आप जिस लायक हैं, उस लायक यदि आपको परिवेश नहीं मिला, माहौल नहीं मिला और ऐसी स्थिति निरंतर बनी रही तो आपके हीन भावना से ग्रसित होते जाने की संभावना बन आती है। दूसरी ओर, जब आप क्षमता से अधिक जिम्मेवारी ओढ़ लेते हैं, सुबह से शाम तक भाग-दौड़ के बाद भी आउटपुट निल पाते हैं और कार्यों के निवर्हन में हमेशा पीछे रह जाते हैं तो वैसे माहौल में भी आपके हीन भावना से ग्रसित होने की संभावना बन आती है।
तीसरी स्थिति कमजोर नेतृत्व के कारण उत्पन्न होती है, जबकि चौथी स्थिति व्यक्ति द्वारा स्वयं रचित होती है। ऐसा देखा गया है कि कमजोर नेतृत्व अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए भी सदा दूसरों को उपेक्षित रखता है। अपने नीचे के साथियों को निराशा की गर्त में धकेलने और अपमानित करने के लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है। दरअसल, कमजोर नेतृत्व की चाहत अपने नीचे के लोगों से ऐन-केन-प्रकारेण काम करा कर उसका श्रेय खुद लूटना होता है। ऐसी स्थिति में उसके नीचे के लोगों के हीन भावना से ग्रसित होते जाने की संभावना बनती है।
व्यक्ति खुद भी अपने विचारों से बैठे-बिठाये हीन भावना से ग्रसित हो जाता है। यह बिल्कुल उसका निठल्ला और तुलनात्मक अध्ययन को अग्रसर रहने वाला माइंड होता है। किसी ने कार खरीद ली, वह हीन भावना से ग्रसित हो गया। किसी का बच्चा फर्स्ट कर गया, वह हीन भावना से ग्रसित हो गया। कोई पार्टी में गया, सजे-धजे लोगों को देखा और आ गयी हीन भावना। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास की श्रृंखला में हीन भावना (इंफीरियरिटी कांप्लेक्स) से कैसे उबरें को लेकर सुधी श्री पंकज जी के सवाल पर जवाबों को तलाशती चर्चा अभी जारी रहेगी।
घड़ी
की तरह हमेशा नियमित, पर रहिए गुलाब की तरह हरदम ताजा। फूलों की तरह नरम, पर बनिए चट्टानों की तरह कठोर भी।

3 comments:

  1. लगता है, सवालों में ही उलझ गये। जवाब चाहिए। वैसे कारणों को ठीक ढंग से फोकस किया है आपने। जवाब भी शानदार तरीके से देंगे, ऐसी उम्मीद है। - देवेन्द्र सिंह, जमशेदपुर।

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  2. अच्छा चैप्टर उठाया है। आगे की श्रृंखला का इंतजार रहेगा। - ब्रजेश, जमशेदपुर।

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  3. जवाब शानदार होगा, इंतजार कीजिए।

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