एक लड़का है। जोशीला, गर्म मिजाज का। कभी किसी से भिड़ जाने की आदत है। इंटर करने के बाद उसे ग्रेजुएशन में नाम लिखाना था। अभिभावक उसे जरूरत के मुताबिक पैसे दे रहे थे, पर उसकी डिमांड थोड़ी ज्यादा थी। लड़के की मां ने कहा कि अभी इस पैसे से जरूरी काम करो, नाम लिखवाओ, कमरे ठीक करो, फिर और पैसे दिये जायेंगे। बच्चा जोश में आ गया। उसने रुपये फाड़ डाले और रुठकर घर बैठ गया। बाद में तो वह जिद पर आ गया। गया ही नहीं कालेज करने। नतीजा, वह इंटर पास ही रह गया। आज जब उसे नौकरी के लिए ग्रेजुएशन की डिग्री की अहमियत समझ में आयी तो काफी वक्त बीत चुका है। लड़के के पास हाथ मलने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया है। अपने जोश को वह हजार बार लानतें भेजता रहता है। अब होश के साथ जोश का एक उदाहरण। वीपी सिंह के मंडल कमीशन का जमाना था। गांवों में अगड़ी और पिछड़ी जाति के लोग बेबजह एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे। मजदूर नहीं मिलने के कारण कुछ गांवों में अगड़ी जाति की जमीनों में फसलें नहीं बोयी जा सकीं। कम से कम दो गांवों का नाम यहां लिया जा सकता है। ये हैं वैशाली जिले के जलालपुर और चिंतावनपुर गांव। इन गांवों में अगड़ी जाति के युवकों ने, जो कभी शाम होते ही पीने-पिलाने और बाजार में दंगा-फसाद के लिए कुख्यात थे, ठान ली कि वे खेती करेंगे। एक लड़का उठा और ट्रैक्टर से पूरे गांव के खेतों को जोतता चला गया। दूसरा युवक उठा और बीज इकट्ठा कर समवेत रूप से उसे एक-एक कर खेतों में बोता चला गया। इनके जोश का नतीजा है कि ये दोनों गांव अब खेती के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं। आजकल यहां केले और आम की खेती लहलहा रही है। हालांकि, बाद में पिछड़ी जाति के लोगों को भी चेतना आयी और वे उनके साथ हो गये हैं। तो व्यक्तित्व विकास के लिए यह बहुत जरूरी है कि व्यक्ति जोश तो दिखाये, पर होश के साथ। होश में जोश दिखाने वाला व्यक्ति ही समाज में प्रतिष्ठा भी पाता है। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी।
मनुष्य का निज धर्म सेवा ही होना चाहिए, करुणा नहीं। करुणा ईश्वर के लिए छोड़ दीजिए।
सच है जोश में होश नहीं खोना चाहिए
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संदेश दिया आप ने धन्यवाद
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