एक खबर छपी। दूल्हे तैयार, दुल्हन का इंतजार। मसला यह था कि महिला रिमांड होम की ओर से वहां रह रही लड़कियों की शादी करने की पहल की जा रही है। इस दिशा में सक्षम लड़का वालों से अप्रोच किया गया और उन्हें रिमांड होम की लड़कियों से शादी करने को तैयार किया गया। उनका अप्रोच कारगर रहा औऱ कई लड़के इसके लिए तैयार हो गये। सुखद पहलू यह रहा कि लड़कों की संख्या की तुलना में लड़कियां कम पड़ गयीं। तो रिमांड होम वालों ने राजधानी के रिमांड होम से शादी के लिए लड़कियां भेजने की अपील की ताकि उनका दांपत्य संसार सज सके। खबर इसी पर आधारित थी। मेरी समझ से खबर लिखने वाले ने कितनी सकारात्मक सोच के साथ यह खबर बनायी थी। बनायी थी कि नहीं? जो लड़कियों के बाप हैं, उनसे पूछिए, लड़का खोजना और लड़की की शादी करना कितना जहद्दम भरा काम है। अब नकारात्मक सोच देखिए। एक साथी की पहली टिप्पणी थी-ये क्या खबर है? जनसंख्या के मिजाज से लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम ही होती जा रही है, ऐसे में लड़के शादी के लिए क्यों न तैयार हों? और ऐसे लड़कों के लिए अब प्रशासन ढूंढ़कर लड़कियां उपलब्ध करा रहा है, बहुत बुरा कर रहा है। अखबार खबर छाप रहा है, अब क्या समाचार पत्र यही परोसेंगे? साथी वर्तमान दशा पर भीतर-भीतर काफी घुल भी रहे थे। मेरी समझ से यह उनकी नकारात्मक सोच थी। थी कि नहीं?
बहुत सारे लोग कल की चिंता में घुलते रहते हैं, आज भी खराब कर लेते हैं। जबकि, कल कभी आता है? आता तो आज है, गाता है, चला जाता है। कल क्या होगा कौन माने, अंजाम खुदा जाने। इस पर दूसरों को फिक्र करने दीजिए, आप तो सिर्फ हंसिए, जमाने पर नहीं, खुद पर भी नहीं, खुश होकर हंसिए। हंसी के बीच निकली सोच हमेशा सकारात्मक होती है। आपने देखा होगा कि लोग अकसर बॉस के मूड के बारे में पूछते रहते हैं। क्यों? लोग मानते हैं कि बॉस का मूड ठीक होगा तो बातें ठीक होंगी। यहां सकारात्मकता को पकड़ा जा सकता है। आदमी को सकारात्मक सोचों को दिशा देनी हो तो उसे खुश रहने की कला सीखनी होगी। जितना आप खुश रहेंगे, सोचें उतनी सकारात्मक होंगी। और आफको पता है, दुख और सुख विपरीतार्थक शब्द नहीं हैं। एक ही चीज के दो अनुपात है। रात में सोये थे, सुबह जगते, इसकी क्या गारंटी थी? जगे तो इसमें आपकी क्या भूमिका थी? तो जब जग ही गये तो आज जी लेने की कला सीखिए। जी लेने की कला सकारात्मक सोचों को विकसित करने से उपजती है। उपजती है कि नहीं? तो आपका दिल दरिया हो यानी उसमें सबकुछ बहा ले जाने की क्षमता हो, खुशियों में भी आंखें आंसू निकालती हों और दिमाग का दरवाजा हमेशा हर पहलू पर विस्तार से विचार करने को तैयार हो तो तब जाकर उपजती है सकारात्मक सोचें। तो देखा आपने बात बढ़ चुकी है। सकारात्मक सोचें खुशियों और शुक्रिया देने की आधारशिला पर ही टिकी होती हैं। व्यकित्त्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेंगी। अगली पोस्ट में 'शुक्रिया' पर विचार किया जायेगा।
अगर आप पहली बार सफल नहीं होते तो सारे प्रमाण नष्ट कर दो कि आपने कभी कोशिश भी की थी।
काफी सकारात्मक लिखा है आपने
ReplyDeleteकाफी सकारात्मक लिखते हैं आप आपकी सोच भी सकारात्मक ही है
ReplyDeletebahut sahi kaushal jee...bahut accha likha hai aapne..next post ka intezaar rahega..
ReplyDeleteअच्छा अनुभव रहा आपको पढ़ना. नियमित लिखिये, शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteजो हर बात पर दुखी रहते हैं , उनके लिए सही तो लिखा है आपने , पर कभी कभी परिस्थितियां इतनी बुरी हो जाती हैं कि सकारात्मक सांच रख पाना नामुमकिन होता है।
ReplyDeleteकौशल जी, बहुत बढिया लिख रहे हैं। अच्छा लगता है आपको पढ़कर।..और यह देखकर भी कि अब आप इतना अच्छा सोच लेते हैं।
ReplyDeleteअच्छा तो मैं पहले भी सोचता था, पर यह सच है कि आपके सानिध्य में आने के बाद कुछ और अच्छा सोचने लगा हूं। मार्गदर्शन करते रहिए।
ReplyDeleteअच्छा अनुभव रहा आपको पढ़ना. नियमित लिखिये,
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