व्यक्तित्व विकास से जुड़े इस महत्वपूर्ण पहलू पर आम तौर पर एक्सपर्ट सुझाव नहीं मिलते, क्योंकि टार्गेट पर आने की वजहें जुदा-जुदा परिस्थितियों में जुदा-जुदा होती हैं। कोई जाति के नाम पर टार्गेट बन जाता है। कोई स्वाभिमान को लेकर टार्गेट बन जाता है। किसी की विद्वता खटक जाती है। बास को देखते हड़बड़ा आप खड़े नहीं हुए कि टार्गेट पर आ गये। आपने नये कपड़े, नये वाहन भी आपको टार्गेट पर ला सकते हैं।
दरअसल व्यक्ति की बहुत सारी चीजें सार्वजनिक नहीं होतीं, व्यक्ति उन्हें सार्वजनिक कर भी नहीं सकता। 1999 की बात है। मेरे एक सीनियर साथी सिर्फ इसलिए टार्गट पर आ गये, क्योंकि उन्होंने एक सेकंड हैंड वेस्पा स्कूटर खरीदा था। मुझे पता था कि वे घर गये थे और बैल व भूसा बेचकर कुछ पैसे लाये थे। बाकी पैसों का उन्होंने साथियों से जुगाड़ कर वाहन खरीदा था। उनके साथ जो हुआ, उसके विस्तार में न जाकर मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि साथी के साथ-साथ मैं और मेरे जैसे अन्य सहयोगी काफी दिनों तक दुखी रहे। नतीजा-हमलोगों ने संस्थान बदल दिया। उस संस्थान का हश्र क्या हुआ, कहना नहीं चाहूंगा। निश्चित रूप से आज अच्छी स्थिति में नहीं है।
चर्चा में भटकाव के लिए माफी के साथ मुख्य बिंदु पर आता हूं। कहना यह है कि यदि आपको लगता है कि आप टार्गेट पर हैं तो आपको टार्गेट ओरियंटेड जाब करना होगा। क्या है टार्गेट ओरियंटेड जाब? इसे गंभीरता से समझकर इस पर विचार करने की जरूरत है। आपको हमेशा देखना होगा कि आप जहां काम कर रहे हैं, जो जिम्मेवारियां आपको वहां सौंपी गयी हैं, उस पर आप कितने खरे उतर रहे हैं। इस बात का ख्याल करना बिल्कुल छोड़ दीजिए कि आप जाति विशेष को लेकर टार्गेट हो रहे हैं, या आपका परिधान या वाहन बास को पसंद नहीं आ रहा। आपके ख्याल में सिर्फ और सिर्फ काम होना चाहिए। आपके हर काम में परफेक्शन होना चाहिए। जी हां, आपको मान लेना होगा कि आप बास के टार्गट पर हैं। इससे आंखें मत चुराइए। आंखें बंद कर लेने से समस्याएं हल नहीं होतीं। पहले मानिए कि आप टार्गेट पर हैं और फिर वही काम पूर्णता-दक्षता से कीजिए जिस काम को लेकर आपको टार्गट बनाया जा रहा है या बनाया जा सकता है। निश्चित रूप से इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। अपने फील्ड में एक्सपर्ट बनना होगा। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। अगले पोस्ट में मेहनत पर कुछ विचार रखना चाहूंगा।
नेवर लेट ए फ्रेंडली फाक्स इनटू योर हेन हाउस, वन डे ही विल गेट हंग्री... (किसी लोमड़ी दोस्त को अपने मुर्गियों के दड़वे में मत जगह दें, एक न एक दिन वह भूखा हो जायेगा और ....)
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने.....
ReplyDeleteअमित जी, व्यावहारिक पहलुओं की विवेचना के क्रम में जानकारियां निकल रही हैं। यदि जानकारी अच्छी लग रही है तो मैं चाहूंगा कि आप भी अपने किसी पहलू को मुझसे शेयर करें। मैं आभारी रहूंगा। धन्यवाद। - कौशल
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