Wednesday, July 20, 2022

हां, अजीब

देश में, प्रदेश में, शेष बचे विदेश में...

जहां देखिए वहीं...

अजीब समां बंधा है...

हां, अजीब.


जानी दुश्मन मित्र बना बैठा है...

मित्र जानी दुश्मन...

लोकतंत्र का सरमायेदार भक्त...

भक्त लोकतंत्र का सरमायेदार...

अजीब समां बंधा है...

हां, अजीब.


अब महंगाई चोट नहीं पहुंचाती... 

आतंक दिल नहीं दहलाता... 

नक्सली वारदात गुस्से में नहीं डालती...

अजीब समां बंधा है...

हां, अजीब.


जो कभी नहीं हुआ... 

इधर कुछ सालों में हो गया...

उपलब्धियां गिनाते जुबां थकती है...

रुकती नहीं...

अजीब समां बंधा है...

हां, अजीब.


हिंदू पक्के हिंदू हो गए...

मुसलमान पूरे मुसलमां... 

दलितों की पहचान पक गई... 

महिलाओं की जां... 

अजीब समां बंधा है...

हां, अजीब.

......

निहितार्थ...

साथ फूलों का हवा से छूटता है...

दिल का शीशा इस तरह भी टूटता है...

इस तरह सिस्टम में कुछ रद्दोबदल है...

हिंद को हिंदुस्तानी लूटता है...!

......

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