Sunday, October 28, 2012

खबर वह जो खबरदार करे

आइए लेते हैं खबरों की खबर - २

एक लंबा समय बीता। ब्लॉग पर नजर गई। लगा कि जो शुरुआत की थी, वह ठीक थी, प्रेरक थी और जिस पेशे में हूं, उसके सम्मान के लिए थी। गैप आया, गड़बड़ हुई। सो, इसी सिलसिले की रफ्तार के साथ फिर सामने हूं।

तो साहब, बात हो रही थी खबरों की। जब भी आप खबरों की बात करेंगे तो सबसे बड़ा सवाल यही आकर आपके सामने खड़ा हो जाएगा कि आखिर खबर क्या है? कोई कहता है हर सूचना खबर है। कोई कहता है हर सूचना खबर नहीं होती। अंग्रेजीदां समझाते हैं, जो न्यू है वह न्यूज है। लो, फंस गया मामला। उस पर भी तुर्रा यह कि अखबारों की नीतियों के मुताबिक, संपादकों के विचारों के मुताबिक खबर की परिभाषा भी रोज-रोज बदलती रहती हैं।

क्रिमिनल माइंडेड संपादक से पाला पड़ गया तो क्राइम की खबरें, सूचनाएं लहराने लगती हैं। बाकी सब बेकार। साहित्यकार या रसिक मिजाज संपादक मिल गया तो क्राइम की खबरें सबसाइड। ये भी कोई खबर है। साहित्य पर पन्ने निकलने लगेंगे, साहित्यकारों के आलेख बाइलाइन छपने लगेंगे, नृत्य कला की माधुरी किसी भी पन्ने पर रस बिखेरने लगेगी। किसी न्यूट्रल संपादक (किसी गुरु का चेला) के सिरे में हुए तो औऱ भी मुश्किलें हैं। वो करेगा कुछ नहीं, बस हर खबर की परिभाषा बताएगा और आप खबर छाप कर भी बेचैन रहेंगे कि कोई ऐसी चीज तो नहीं छाप दी जो खबर नहीं है। अपना ज्ञान तो भूल ही जाएंगे।

तो सवाल है कि खबर क्या है? आइए, विचार करते हैं। जेनरिक फार्मूला - हर सूचना खबर नहीं होती, जबकि हर खबर में सूचना जरूर होती है। एक खबर में कई सूचनाएं हो सकती हैं। यानी सूचनाओं के संग्रह से उपजा हुआ आइटम ही खबर है। इसे अच्छी तरह समझ लें। हर सूचना खबर होती तो सोशल साइट्स पर नजर फेरिए, गूगल को वाच कीजिए, वहां तो सूचनाओं का अंबार लगा है। क्या वे सभी खबरें हैं? नहीं, खबरें होतीं तो गूगल अखबार होता। तो जहां सूचनाओं के संग्रह का काम समाप्त होता है, वहां से खबरों के निर्माण का काम शुरू होता है। यानी जहां से गूगल का काम खत्म वहां से पत्रकारिता शुरू। कोई कंफ्यूजन, कोई शक?

अब एक औऱ बात। जेनरिक से थोड़ा ऊपर, थोड़ा मैच्योर्ड। खबर वह जो खबरदार करे। जो बीती बातों की जानकारी तो दे ही, आगे पर भी प्रकाश डाले। अब एजुकेशन की एक खबर बना रहे हैं। किसी परीक्षा की कोई तारीख छाप रहे हैं। इस खबर में परीक्षा से जुड़ी सारी संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है। फार्म भरने से लेकर परीक्षा की तैयारियों तक। आजकल के परिप्रेक्ष्य में एक पहलू यह भी देखा जा सकता है कि जो तिथि घोषित की जा रही है, उस तिथि पर परीक्षा का हो पाना संभव है या नहीं? क्या उस दौरान किसी बड़े आंदोलन की कोई पूर्व घोषणा तो नहीं है? कहीं किसी चुनाव की कोई शेड्यूलिंग तो नहीं है? हां, तब यह छोटी सी सूचना बड़ी खबर बन सकती है और बनाने वाले होंगे आप। यह खबर पढ़ने वाले को खबरदार करेगी।

खबरों का एक और मिजाज है। हर खबर किसी न किसी समूह को कनेक्ट करती है। आपकी खबर किस समूह को कनेक्ट करती है, यह देखना आपका काम होगा। कनेक्ट करती है तो खबर है, नहीं करती है तो खबर नहीं है। इस कनेक्शन में आपका मिजाज नब्बे फीसदी रिजेक्शन का होना चाहिए। जब ९० को रिजेक्ट कर १० को सेलेक्ट करने की प्रवृत्ति डालेंगे तो खबर सामने आएगी। क्यों, क्योंकि खबर कई प्रकार में आपके सामने आ सकती हैं, आती हैं। एक अपने मूल रूप में, दूसरे फालोअप के रूप में, तीसरे इंपैक्ट के रूप में, चौथे आपकी प्लानिंग के रूप में (न्यूज बिदिन न्यूज)। एक रूप एक्सक्लूसिव का भी है, एक खोजी भी। एक कार्यक्रम है तो एक डेट वैल्यू आयोजन।

ध्यान रहे, खबरों के गठन में, उसके निर्माण में खबरों को पहचानने का नजरिया बड़ा काम आता है। यानी रिपोर्टर का नजरिया। अखबार की नीतियां और संपादक का नजरिया एक तरफ और रिपोर्टर का नजरिया एक तरफ। क्या मजाल जो स्पॉट पर गया व्यक्ति जिस खबर को पहचान ले और लिख मारे, उसे कोई संपादक पकड़ ले, उसे किसी अखबार का नजरिया पकड़ ले। एक शराबी रात में नशे में घर में गिर गया औऱ बेहोश हो गया। उसकी पत्नी ने मदद के लिए मोहल्ले के कई दरवाजे खटखटाए। मदद नहीं मिलने पर उसने पति को साइकिल पर लादा और अपनी बच्ची की मदद से नर्सिंग होम ले गई। वहां भी किसी ने केयर नहीं किया तो वह दूसरे अस्पताल की ओर दौड़ी। आखिर में उसका पति मर गया औऱ इतनी सी सूचना रिपोर्टर के हाथ लगी।

अब देखिए, रिपोर्टर का नजरिया। उसकी खबर का शार्षक था, शहर की संवादनाएं समाप्त। खबर की बॉडी नारी सशक्तीकरण पर नहीं थी, बल्कि भावनाओं से ओतप्रोत संवेदनाओं को झकझोर रही थी। एक महिला अपने पति को साइकिल पर लादकर रात भर दौड़ती रही और पूरे शहर में एक हाथ मदद को सामने नहीं आया। मोहल्लावासियों से लेकर नर्सिंग होम तक को खंगाल देने वाली खबर थी यह। और विश्वास मानिए, अगले दिन उस महिला की मदद को पूरा शहर दौड़ पड़ा। पति के मरने के बाद बेसहारा हुई इस महिला के लिए खबर कितना बड़ा सहारा बन कर आई, यह कल्पना की जा सकती है।

खबर क्या है और खबर किसे कहते हैं, इस पर अभी और बातें होंगी। फिलहाल इतना ही। हां, इस पोस्ट की आखिरी बात यह कहना चाहूंगा कि अब खबर सिर्फ खबर नहीं होती। इस भूल में पड़े तो बड़ी भूल हो जाएगी। खबर में लिखावट होती है, बुनावट होती है, संभावना होती है, प्रेरणा होती है। और यह सब कुछ है तो वह खबर है।


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