... मेरे देश की संसद मौन है
एम. अखलाक
एक आदमी रोटी बेलता है, दूसरा सेंकता है, तीसरा न बेलता है न सेंकता है, सिर्फ खाता है। मैं पूछता हूं- तीसरा कौन है? मेरे देश की संसद मौन है। मैं इन चर्चित पंक्तियों से अपनी बात शुरू करता हूं। संभव है सतीश चंद्र श्रीवास्तव जी ने जो सवाल उठाए हैं, उनका जवाब सामने आ जाए। 62 साल में ही भारतीय लोकतंत्र की यह दुर्दशा होगी, यदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इस बात का आभास होता तो शायद ही वे जंग-ए-आजादी के मैदान में कूदते! आजादी के बाद भारत का बंटवारा लोकतंत्र की दुर्दशा की शुरुआत थी। समय दर समय यह रूप बदल कर हमारे सामने आता गया, आता गया और हम खामोश रहे, संसद की तरह। हमने कभी आवाम बनकर संसद से पूछने की जुर्रत नहीं की कि वह 'तीसरा' कौन है? भाई सतीश जी ने जलियावाला बाग का जो 'दृश्य' शब्दों में दिखाने की कोशिश की है, वह शायद दुर्दशा का आखिरी एपीसोड ही है! क्योंकि जिस तेजी से हमने ग्लोबल दुनिया रूपी गुलामी में इंट्री मारी है, उससे तो मानना ही पड़ेगा कि जंग-ए-आजादी का मकसद अब खत्म हो चुका है। हम कह सकते हैं कि हमें सिर्फ 60-62 साल की ही आजादी मिली थी। देश में दूसरा दौर शुरू हो चुका है। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से भी पहले नरसिम्हाराव ने इसकी बुनियाद रख दी थी। शहीद और शहीदों की कहानियां अब सिर्फ सुनने-सुनाने के लिए हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन ब्रिटिश हुकूमत की 'कहानियां' सुनाते हैं, भूल जाते हैं। जहां तक सरकार की बात है तो हुजूर आपकी सरकार बची ही कहां है? भ्रम तोडि़ए, सरकार आपसे नहीं, अमेरिका से चल रही है, विश्व बैंक के पैसों से चल रही है। क्या बचा है आपका आपके हिन्दुस्तान में, जिसे गर्व से कह सकें कि अपना है। सब कुछ तो बदल गया, जो बचा है वह भी बदल रहा है, बदल जाएगा। सो अंत में यही कहूंगा- तख्त बदल दो, ताज बदल दो, यदि कूवत है तो गद्दारों का राज बदल दो। और यह संभव है आप जैसे विचारशील साथियों से। आपकी आवाज ठहरे पानी में हलचल पैदा करे, क्रांति की आवाज बने, इसमें मैं भागीदार बनूं, यह आकांक्षा है।
श्री एम. अखलाक युवा क्रांतिकारी पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। पत्रकारीय जीवन का सफलतापूर्वक निर्वहन करते हुए वे कई सामाजिक सरोकारों से भी जुड़े हुए हैं। इनसे मिलिए www.reportaaz.blogspot.com पर।
कवि धूमिल को नमन ।
ReplyDeleteहम लोग सिर्फ आशा कर सकते हैं....लेकिन कुछ कर नही सकते......आज पैसे के बल पर सब खरीदा बेचा जाता है......वोट हो या आदमी का जमीर।फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है। ....
ReplyDeleteठहरे पानी में हलचल तो अब बाबा रामदेव ने मचा दी है. बस, कुछ को समझ आ गयी है, कुछ समझना नहीं चाहते, कुछ दूर रह कर तमाशा देखना चाहते हैं. वैसे आपके विचार और भावना बहुत मिलती है.
ReplyDeleteजलियांवाला बाग के शहीदों को सम्मान दिलाने के लिए श्री अखलाक जी की टिप्पणी के साथ होने वाले श्री शरद कोकस जी, श्री परमजीत बाली जी और श्री शंकर फुलारा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद। निश्चित ही इस आवाज से शहीदों की आत्मा को शांति पहुंच रही होगी।
ReplyDeleteमेरे देश की संसद मौन है, वाह, वाह। मुझे तो लगता है कि इस लेख के बाद मौन टूटेगा।
ReplyDeleteYour opinion about the leader of our country is perfect. Theme of your story will work like inspirator of our socity.
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