Tuesday, December 8, 2009

मेरी बीवी, मेरे बच्चे

एक जहीन सा वाक्य - मेरी बीवी, मेरे बच्चे। उनके इर्द-गिर्द ही तो मानव का जीवन संसार रचा-बसा होता है। मानव उनके कितना करीब होता है, हो सकता है या होना चाहिए, इस पर विचार व्यक्तित्व विकास और भविष्य की संभावनाओं के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, ऐसा मुझे लगता है। आपको भी यदि ऐसा लगता है तो चंद अल्फाजों के साथ आगे बढ़ लीजिए। निश्चित की कुछ सूत्र हाथ लग जाएंगे। मेरे जेहन में कुछ सवाल हैं, जवाब खुद ढूंढि़ए।

आंखें बंद कर लीजिए और सोचिए। आपके होने का अर्थ किसके लिए है? आपके न होने से सर्वाधिक प्रभाव किस पर पड़ता है? आपकी बेरोजगारी में या आपकी बुलंदियों में समान भाव से व्यवहार करने वाले कौन होते हैं? आप घर से निकले और शाम में सकुशल घर पहुंचे या नहीं, इसकी सबसे ज्यादा चिंता किसे होती है? घर न पहुंचें तो बावला होकर दर-दर तलाश करने वाला कौन होता है? आपको कुछ हो गया तो वे कौन हैं, जो दौड़-दौड़ कर आपकी खिदमत करते हैं? आपके चेहरे की तनिक भी मुरझाहट पर गमों की टीस में डूब जाने वाले वे लोग कौन हैं?

आम तौर पर बीबी-बच्चों के लिए भला सोचने वालों को लोग संकुचित विचारधारा का व्यक्तित्व मान लेते हैं। टीका-टिप्पणियां ऐसे की जाती हैं, मानो अपनी बीवी, अपने बच्चे का ख्याल न कर वे कोई बड़ा काम कर रहे हैं। उल्टी पढ़ाई, उल्टे लोग। सोचिए, आधार से अलग कोई भवन खड़ा हो सका है? जड़ों से हटकर कोई पेड़ पनप सका है? सांसें बंद कर कोई जीवन की घडि़यां गिन सका है? बिना पेट्रोल-डीजल कोई गाड़ी सड़कों पर फर्राटे भर सकी है? बिना पंख के कोई पक्षी परवाज कर सका है?

एक पहलू। आप एयकंडीशंड एक्जीक्यूटिव चेंबर में बैठे हैं। आपकी तवेरा पोर्टिको में खड़ी है। आफिस के मुहाने पर बाअदब-बामुलाहिजा हुक्म फरमाने वाला दरबान। एक आवाज पर काम बजाने को दर्जन भर मुलाजिमों की कतार। और आप चौबीसों घंटे इसी में अंटागाफिल हैं। सुबह को निकले तो शाम को आपके बदले आपका फोन पहुंचता है। अभी राजधानी निकल रहा हूं, परसों लौटूंगा। परसों आए तो सो गए। जगे फिर वही दफ्तरी हाय-तोबा। आप व्यस्त हैं, सफलतम व्यक्तित्व।

अब आपका बच्चा किसी चौराहे पर मटरगश्ती, आवारागर्दी करता घूम रहा है। कहीं हाथापाई कर रहा है तो कहीं किसी चौराहे पर हर फिक्र को धुएं में उड़ा है। आपको कुछ पता नहीं। पता चलता है किसी थाने से, किसी बड़े हादसे से। आपकी बीवी हफ्तों आपसे बात को तरस रही है। आपके आने-जाने से वह उदासीन होती जा रही है। अपनी जरूरतों का जिक्र वह पड़ोसियों या पड़ोस की सहेलियों से करने लगी है। आपको पता चलता है तब जब बात आगे बढ़ जाती है। आप परेशान हैं।

और एक दिन गाड़ी, दफ्तर, खाते, उड़ान सब होने के बाद भी आपको लगता है कि आपके पास कुछ नहीं है। आप लुट चुके हैं। न बेटा हाथ में रह गया, न बीवी पर कोई काबू है। भाई-बंधु तो पहले ही किनारा कर चुके होंगे। आप दफ्तर से लेकर घर तक निठल्ला चिंतन कर रहे हैं और आपको समझाने-बुझाने व दिलासा देने आ रहे हैं कुछ लोग। जिनका चेहरा आपके पास आने के वक्त तो रहता है गमगीन, पर आपके सामने से हटते ही जिन पर छा जाती है चट्टानी मुस्कुराहट। बुरा मत मानिए, जमाने के लिए आप जोकर बन जाते हैं। जोकर।

यह आपके व्यक्तित्व का अहम पहलू होना चाहिए कि आप अपने परिवार का पूरा-पूरा ख्याल करें। जिस तरीके से आप अपने दफ्तर में छाए हुए हैं, जिस तरीके से दफ्तर की एक-एक फाइल, एक-एक काम आप सहेजते हैं, उससे भी बेहतर ढंग से आप अपने परिवार को सहेजें और ख्याल करें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो यह आपके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है।

एक कहावत है न कि घर से भूखा निकलने वाले को बाहर भी खाने को कोई नहीं पूछता। तो घर को खुशहाल बनाइए। उनकी फिक्र कीजिए, जो आपकी फिक्र में अपना मोल तक भूल चुके हैं। जिनका पूरा जीवन ही आपके होने, न होने से प्रभावित होता है। हां, जो टीका टिप्पणी करते हैं, उनके लिए भी कुछ अच्छा कर दीजिए। वे चुप हो जाएंगे और आपका भविष्य संवर जाएगा। संवर जाएगा कि नहीं? मुझे लगता है कि मेरी बातें स्पष्ट हैं, समझ में आ चुकी होंगी। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास और भविष्य संवारने का टिप्स तलाशती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा। धन्यवाद।

एक चुटकुला - टीचर ने कहा, हमें गरीबों के साथ प्यार से पेश आना चाहिए। एक बच्चा सोचने लगा। अच्छा तो पापा इसीलिए परसों शाम नौकरानी को गले लगा रहे थे।

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