Tuesday, November 17, 2009

ढलता सूरज, धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा

जहां जड़ों में सबही नचावत राम गोसाई मजबूती से स्थापित हो और जन्म-जन्मांतर के रिश्ते-नाते का हर दिमाग कायल हो, वहां भविष्य को संवारने के लिए संभावनाओं की तलाश कर उस पर अमल करना थोड़ा दुश्वारी भरा तो हो सकता है, पर है जरूरी। जरूरी इसलिए कि जन्म-जन्मांतर के रिश्ते का गुणगान करने वाला दिमाग भी अगले जन्म को सुधारने की बात तो करता ही है। अगला जन्म कुछ होता है या नहीं, इस पर चर्चा कभी बाद में, पर इस वक्त तो समझने की बात यही है कि अगला जन्म सुधारने के पीछे भी तो भविष्य सुधारने की ही बात होती है। होती है कि नहीं? तो जब होती है तो यह जरूरी है कि भविष्य को सुधारने की बात की जाए और उसके संवारने का टिप्स तलाशा जाए। मैंने कहीं पढ़ा था कि जिस काम को करने की आपने सोच ली, समझ लीजिए वह आधा पूरा हो गया। अब तो बस आपको काम कर डालना है। तो यह बड़ा जरूरी है कि भविष्य सुधारने के लिए कुछ करने को तैयार हुआ जाए। तैयार हो गए तो काम हुआ।

अब दो-तीन उन बुनियादी बातों की चर्चा, जिस पर गौर करने वाला आदमी कभी धोखा नहीं खाता, उसका भविष्य कभी खराब नहीं होता। चार कदम का सफर, उसके दो-चार हमसफर, थोड़ी आंधियां, थोड़ी खुश्बू, थोड़ी खुशियां, थोड़े गम इसी से तो बंधी होती है जिंदगी। और कुछ करें न करें, वक्त तो कट ही जाता है। ढलता सूरज, धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा। तो पहली बुनियादी बात यह है कि आप कुछ करें या न करें वक्त तो बीत ही जाएगा। इसलिए इस बीतते वक्त की नब्ज पकड़े और कुछ करें। कुछ भी करें पर करें। आपके हर दिन का कुछ न कुछ आउटपुट होना चाहिए। यह आउटपुट ही आपको समग्रता में चमकीला भविष्य देगा। गारंटी है।

कहते हैं, हिंदुस्तान का माइंड है - रिलैक्स। जल्दबाजी क्या है? आज नहीं कल, कल नहीं तो परसों। यह ख्याल नहीं होता कि आज शुक्रवार है, कल शनिवार और परसों रविवार। रविवार को दफ्तर बंद हो जाएगा। स्कूल में छुट्टियां हो जाएंगी। बैंक नहीं खुलेंगे। शुक्रवार को आपने कुछ नहीं किया और शुक्रवार बीत गया। शनिवार आया, वह भी बीत गया। आप बैठे रह गए। जब कुछ किया ही नहीं तो होगा क्या? अब बताइए, इसमें वक्त का कुछ दोष है? नहीं, दोष आपका है। आपको शुक्रवार को, शनिवार को कुछ करना था, पर आपने कुछ नहीं किया। यहीं है दूसरी बुनियादी बात। बात भी, सवाल भी। आखिर क्यों नहीं किया? इसलिए कि आपके पास प्रोग्राम नहीं था। आप जानते ही नहीं थे कि क्या करें? तो प्रोग्राम बनाना होगा कि आपको क्या करना है। तो बनाइए। आपको आज क्या करना है, कल क्या करना है, परसों क्या करना है, इसका मुकम्मल प्रोग्राम बनाइए। प्रोग्राम होगा तो वही आपको आगे बढ़ा देगा।

बुनियादी बातों की बात चल रही है। संदर्भ व्यक्तित्व विकास के साथ भविष्य संवारने का है। आप खुद देखेंगे कि दूसरी बुनियाद पर आपके अग्रसर होते श्रृंखला का तीसरा पायदान आपके बिल्कुल करीब होगा। और वह होगा कि कैसे करें? करने का जो प्रोग्राम बनाया है, उसे कैसे करें? जान लीजिए, सवाल उठता है तभी जवाब ढूंढे जाते हैं। एक बार सवाल उठा कि कैसे करें, निश्चित जानिए तभी जवाब भी आएगा कि ऐसे करें। और एक बार रास्ता मिल गया तो सफर कितना आसान होगा, क्या यह कहने की बात है? नहीं न? तो मेरे कहने से ही सही, निकल पडि़ए इस मार्ग पर, जो आपके लिए भविष्य की ढेर सारी संभावनाएं खोल रहा है। फिलहाल इतना ही। चर्चा जारी रहेगी। धन्यवाद।

घुटनों के बल जीने से अच्छा है, अपने पैरों पर मर जाना।

5 comments:

  1. मैं यह जानना चाहता हूं कि छोटे-छोटे जुमलों पर आप इतनी अच्छी-अच्छी बातें कैसे रच लेते हैं।

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  2. सही कहा आपने।

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  3. ढल ही जाता है धीरे धीरे ढलने वाला सूरज। मार्के की बात है, भई।

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  4. बहुत सुंदर लेख,
    घुटनों के बल जीने से अच्छा है, अपने पैरों पर मर जाना।
    धन्यवाद

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  5. विचार
    पढ़ें, समझें, तब स्वीकारें.
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    घुटनों के बल जीने से अच्छा है, अपने पैरों पर मर जाना।
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    सत्यवचन.
    धन्यवाद.

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