वक्त के दायरे में चाहे भविष्य ही क्यों न हो, जब फंसता है तो फैलता भी है और सिकुड़ता भी है। कैसे? दिल्ली जाने के लिए किसी ने बस पकड़ी, किसी ने ट्रेन तो कोई हवाई जहाज पर ही उड़ चला। तीन व्यक्ति का एक भविष्य दिल्ली पहुंचना वक्त के दायरे में कैसे फैला और कैसे सिकुड़ा, अब क्या यह समझाने की बात है? नहीं न?
मगर, यह समझने की बात है कि यदि दिल्ली जाना ही तीनों व्यक्तियों का लक्ष्य था तो कोई जरूरी नहीं कि पहले पहुंचने वाला व्यक्ति ही सब कुछ हासिल कर ले और पीछे पहुंचने वाला व्यक्ति कुछ भी हासिल न कर पाए। इसके बिल्कुल उलट भी हो सकता है।
कैसे? हवाई जहाज से उड़ने वाले के लिए अपना सब कुछ तलाशने का मौका सिर्फ दिल्ली में मिलने वाला है। जहां से उड़ा, वहां के बाद संभावनाओं का विकल्प उसके लिए सिर्फ दिल्ली में खुलता है। बीच के सारे स्टापेज से वह चूक जाता है। बस-ट्रेन से सफर करने वालों के साथ ऐसा नहीं है। रास्ते के सारे एवेन्यू के मजे लेने के उसके पास जो मौके हैं, वह उड़ान भरने वालों के पास कहां?
इन बातों का अर्थ क्या हुआ? अर्थ वही कछुआ और खरगोश वाला है। स्लो व स्टीडी विन्स द रेस वाला है। हवाई जहाज से उड़कर जल्दी पहुंच गए, मगर लगे सुस्ताने, लगे आराम फरमाने तो चूक जाएंगे।जल्दी पहुंचकर भी पीछे छूट जाएंगे। छूट जाएंगे कि नहीं?
आइए अब उन बातों पर चर्चा करें, जो बातों-बातों में सामने आयी है। क्या? कि सवाल माध्यम का नहीं, लक्ष्य का है। कि सवाल जल्दबाजी का नहीं, टाइम मैनेजमेंट का है। कि सवाल गति का नहीं, उसकी निरंतरता का है। कि सवाल बौखलाहट व बेचैनी का नहीं, धैर्य व गंभीरता का है।
यानी, माध्यम कोई भी हो आपका लक्ष्य हमेशा आपके सामने रहना चाहिए और आपका काम उसी दिशा में होना चाहिए। किसी काम को पूरा करने की न तो जल्दबाजी दिखाएं, न छोटे-छोटे कारणों से गति में शिथिलता लाएं। आपको इसके लिए बस समय प्रबंधन की कला सीखनी होगी। टाइम का नहीं, टाइम मैनेजमेंट का ख्याल करना होगा। बौखलाहट और बेचैनी की तो कोई बात नहीं, जो जल्दबाजी नहीं दिखाएगा, जो टाइम मैनेजमेंट के फैक्टर पर अमल करेगा, उसमें अपने आप धीरता और गंभीरता आ ही जाती है।
और इतना सब कुछ आपने किया तो निश्चित मानिए, आपका भविष्य संवरा। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास को सतर्क व्यक्ति के लिए भविष्य संवारने वाले टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।
इलाहाबाद से सतीश चंद्र श्रीवास्तव का एसएमएस - जब बाढ़ आती है तो चीटियों को मछलियां खा जाती हैं। पानी उतरने पर मछलियों को चींटियां खाने लगती है। सबक - अवसर सभी के सामने आते हैं।
चिंतन की दिशा सही है।
ReplyDeleteअवसर सभी के सामने आते हैं
ReplyDelete-उम्दा चिन्तन!
सतीश जी को भी बधाई, उन्होंने एक बेहतर एसएमएस किया है। वर्ना आजकल तो लोग ऐसे ऐसे एसएमएस करते हैं कि ....।
ReplyDeleteसतीश चंद्र श्रीवास्तव का पूरा परिचय दीजिए।
ReplyDeleteवाह, क्या बात कही है - टाइम का नहीं, टाइम मैनेजमेंट का ख्याल करना होगा।
ReplyDeleteसफलता पाने की होड़ में धैर्य कहां कौशल जी !
ReplyDeleteचंद्र जी,
ReplyDeleteसतीश चंद्र श्रीवास्तव जी एक प्रखर पत्रकार हैं। उनकी चिंतनशीलता का आधार बड़ा व्यापक है। अपने मित्रों में वे अग्रसोची के लिए मशहूर हैं।
sahi hai aur yahan bilkul prasangik hai-slow & steady wins the race.
ReplyDelete-Anoj, Rajasthan
Fate is remarkable but time manegment is also impaortant. Your new post is the reality of our socity. SANJAY.KUMAR.YPADHYAY. BAGAHA.W. CHAMPARAN.
ReplyDeleteजब बाढ़ आती है तो चीटियों को मछलियां खा जाती हैं। पानी उतरने पर मछलियों को चींटियां खाने लगती है।
ReplyDeleteBaat pate ki hai.