Thursday, February 5, 2009

मैंने तुम्हे कहीं देखा है


मैंने तुम्हे कहीं देखा है,
सूखे पत्ते की तरह गिरते,
गिर कर भी संभलते,
संभल कर भी बहकते,
फिर भटकते,
फिर बदलते,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

बदमाशों व हथियारों के साथ,
शरीफों पे दिनदहाड़े डालते हाथ,
जेबों पर दिखाते करामात,
फिर खाते मात,
फिर खाते लात,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

देते भाषण,
लूटते राशन,
पीते किरासन,
लगाते आसन,
वह भी वज्रासन,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

हाथ मिलाते,
हाथ छुड़ाते,
फिर मिलाते,
फिर छुड़ाते,
फिर मिलाते,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

एक जंगेजां को जिंदा जलाते,
कइयों के मरने के बाद पुल को बनाते,
फिर सलामी में गोलियां दगवाते,
हंसते,
मुसकाते,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

आग लगाते,
आग बुझाते,
लोगों को समझाते,
उजड़वाते,
बसवाते,
उजड़वाते,
बसवाते,
उजड़वाते,
मैंने तुम्हे कहीं देखा है।

तुम्ही तो आस हो,
तुम्ही तो पास हो,
तुम्ही तो सर्वनाश हो,
लोगों का विनाश हो,
मैंने तुम्हे ही देखा है,
कहां देखा.... कहीं देखा है।


किसी से कुछ मांगने में यदि आपको कठिनाई होती हो तो मान लीजिए आपमें शराफत जन्म ले रही है, क्योंकि शरीफ आदमी के लिए किसी से कुछ मांगना बहुत कठिन होता है।

2 comments:

  1. मैंने तुम्हे कहीं देखा है,
    सूखे पत्ते की तरह गिरते,
    गिर कर भी संभलते,
    संभल कर भी बहकते,
    फिर भटकते,
    फिर बदलते,
    मैंने तुम्हे कहीं देखा है।
    बहुत सुन्दर लिखा है।

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