Tuesday, February 3, 2009

बुड्ढे हो गये और इतना भी नहीं जानते...


यह एक त्रासद स्थिति हो सकती है, व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष भी, कि उम्र बढ़ने के साथ आपका ज्ञान न बढ़े। ठीक कक्षाओं की भांति दुनिया आपसे यह उम्मीद करती है कि गुजरते लम्हों और बढ़ती उम्र के साथ आपके पास ज्ञान का भंडार भी बढ़ना चाहिए। ज्ञान की बढ़ती श्रृंखला ही किसी के व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाती है। जिसके पास जितना ज्ञान, वह उतना महान। ज्ञान के मामले में मेरा मानना है कि इसके अर्जन के तीन तरीके हो सकते हैं। पहली बात - जो बातें आप जान चुके हैं, उसका आपके स्मरण में रहना पहली तरह का ज्ञान है। दरअसल आदमी ज्ञान तो अर्जित करता चलता है, पर उसे भूलता भी जाता है। तो जानी हुई बातों का समय-समय पर दोहराव पुरानी बातों के स्मरण के लिए, ज्ञान के प्राथमिक स्तर को बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी होता है। संभवतः यह इसलिए भी जरूरी होता है, क्योंकि तभी आप उससे आगे की जानकारियां इकट्ठा करने के लिए प्रेरित हो पायेंगे। तो पहली बात यह कि आपको जो याद रखना है उसका आपको ज्ञान हो और जो भुलना है, वह भी आपको पता हो। आपके यह संज्ञान में रहना चाहिए कि याद रहने वाली चीजें आपको याद रहें और भूलने वाली चीजें भूल ही जाएं। वर्ना जो याद रखना है उसे भूलने लगे तो बड़ी गड़बड़ शुरू हो जाएगी।
दूसरी बात - नयी चीजों को जानने की कोशिश। आपके सामने बहुत सी चीजें नयी हो सकती हैं, जिन्हें जानना आपके लिए जरूरी हो सकता है। तो लगभग हर दिन एक-दो नयी चीजों के बारे में जानने की कोशिश ज्ञानअर्जन की दिशा में काफी सहयोगी हो सकती है। आप कहीं हों, किसी फील्ड में हों, रोजगार में लगे हों, बेरोजगार हों, यह जरूरी है कि लगातार आपके पास जानकारियां बढ़ती रहें। देखने की बात यह भी है कि यह रातोरात नहीं हो सकता है। रातोरात न तो कोई कालिदास बन सकता है, न ही टाटा-बिड़ला। लेकिन, अभ्यास की प्रक्रिया आपने शुरू कर दी, तो इतना जरूर है कि आप कालिदास को भी पछाड़ सकते हैं।
तीसरी बात - अज्ञानता का ज्ञान। अमरीका की इंटेलिजेंस ने माना कि अफगानिस्तान में जिन परिस्थितयों से उसकी फौज का सामना हुआ, उससे वे बिल्कुल अनजान थे, उसके बारे में कोई स्ट्रेटजी वे तैयार नहीं कर पाये थे। तो अपनी अज्ञानता का भी आपको ज्ञान हो, यह जरूरी है। ज्ञान अर्जन के मामले में देखा गया है कि जिस किसी मौके या स्तर पर व्यक्ति चूका, उसी मौके या उसी स्तर से उसका व्यक्तित्व प्रभावित होने लगा। दुनिया की इस मान्य प्रक्रिया से शायद ही किसी को इनकार हो कि आप आगे बढ़ते रहिए, नहीं तो कोई न कोई आपसे आगे निकल ही जायेगा, आपको पीछे धकेलकर। सूचना क्रांति के दौर और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी शायद यह बहुत जरूरी है कि आपके ज्ञान का स्तर हमेशा बढ़ता रहना चाहिए। और यह बिल्कुल आपके स्वयं के ऊपर निर्भर करता है, आपके प्रयास के ऊपर निर्भर करता है।
इसके अलावा, देखने की बात यह भी है कि आज दुनिया जिस तरीके से विस्तार ले रही है, जिस तरीके से रोज नयी-नयी व्यवस्थाएं, परियोजनाएं, कंपनियां व अवसर सामने आ रहे हैं, उस लिहाज से आदमी को इन सबके बारे में जानना, जानकारियां रखना कितना जरूरी है। कोई फंड आ गया, आपको पता ही नहीं, तो उस फंड का आप लाभ कैसे ले पायेंगे? कोई व्यवस्था लागू हुई, आप उससे अनजान रहे तो उसमें आपका हिस्सा कैसे निर्धारित हो पायेगा। सूचनाएं, जानकारियां आपके पास होनी ही चाहिए। और आप अपने पड़ोस में, इर्द-गिर्द, देख सकते हैं, जिसके पास अधिकतम सूचनाएं हैं, अधिकतम जानकारियां हैं, उसी के पास अधिक पैसे हैं, वही धनी है। गरीब वही है, जिसके पास न तो सूचनाएं हैं, न जानकारियां। तो क्यों न अपने व्यक्तित्व विकास के लिए, सफलता के लिए, आगे बढ़ने के लिए, आज से ही ज्ञान अर्जन का प्रयास शुरू कर दिया जाय? व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी।


लफ्फाजियों से इंसान महान नहीं बनता, इसके लिए कुर्बानियां देनी पड़ती हैं।

2 comments:

  1. बहुत बढिया, शुक्ला जी! ऐसे ही लिखते रहें ताकि हम भी बुढापे में कुछ सीख सकें!

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