कहीं पढ़ा था, चीजें जितनी परिवर्तित होती हैं, वह अपनी मूल स्थिति को प्राप्त होती जाती हैं। यानी विकल्पों का सिकुड़ता दायरा। कहते हैं, धरती गोल है। एक सिरे से भागना शुरू किया जाय और पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने की मशक्कत की जाय तो आदमी फिर वहीं पहुंच जाता है, जहां से चलना शुरू करता है। मगर, यह भी मान्यता है कि परिवर्तन संसार का नियम है। चेंज इज द रुल आफ नेचर। व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति के लिए इस सूत्र को समझने की जरूरत है। परिवर्तन संसार का नियम तो है, पर उसके अवसर कितने हैं। अवसर है, जितना परिवर्तन परिमार्जित होगा, मूल स्थिति में पहुंचने की संभावनाएं उतनी ही बलवती होती जायेंगी। यानी मेरा विकल्प तू तो तेरा विकल्प मैं। बात साफ।
लोग घबराते हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ाते हैं, शुगर के पेशेंट बन जाते हैं और यकीन मानिए इलाज कराते-कराते गुजर भी जाते हैं। उन्हें सिर्फ इतना पता चल गया कि संस्थान ने, बास ने उनका विकल्प खोज लिया है। उन्हें सिर्फ इतना पता चल गया कि वे जो काम कर रहे हैं, अब वैसा ही काम करने वाला एक तैयार हो गया है। इतना सुना और आदमी बीमार। आपने कभी यह सोचा कि कोई आपका विकल्प तैयार हो गया तो इसमें गड़बड़ क्या हो गयी? आप यह क्यों नहीं सोचते कि ये तो होना ही था। हालाकि, मेरा मानना तो यह है कि संस्थान तैयार करे या कोई खुद तैयार होने लगे , इससे पहले आपको खुद ही अपना विकल्प तैयार करता चलना चाहिए, इससे आपके ऊपर उठने की संभावनाएं बनती हैं, स्थितियां तैयार होती हैं, पर इस पर चर्चा कभी बाद में। फिलहाल यह कहना चाहता हूं कि जब आपके सामने आपका विकल्प तैयार होने की नौबत आयी तो आपको दर्द हुआ। आपके सोचने का मुद्दा यह है कि इसमें घबराहट या बीमार पड़ने जैसी कोई बात नहीं है। आप भी किसी का विकल्प बन कर ही वजूद में आये हैं। अब नीचे की श्रृंखला ऊपरी पायदान पकड़ रही है तो एक पायदान आप भी चढ़ने की कोशिश कीजिए। इससे भी परेशानी कम न हो तो आगे सोचिए। यदि कोई आपका विकल्प बन गया तो आने वाले दिनों में निश्चित रूप से उसका भी विकल्प तलाशा जायेगा। जब ऐसी नौबत आयेगी तो निश्चित रूप से आपका दावा पहला होगा। होगा कि नहीं? यानी मेरा विकल्प तू तो तेरा विकल्प मैं। बात साफ। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी।
दो शैतानों में कमतर शैतान को चुनने के वक्त यह याद रखिए कि एक शैतान आपके ही द्वारा अपने वजूद को बहाल रखने वाला है।