विचार
पढ़ें, समझें, तब स्वीकारें
Thursday, December 18, 2008
शुरुआत मुक्तक से
झांक मत खिड़की से आना है तो दरवाजे से आ,
आ दिखा जलवा तू अपनी और दरवाजे से जा,
इस नजर के खेल में कब तक टिकेगा कौन जाने,
ढूंढ़ ले तू रास्ता और फिर कहीं करतब दिखा।
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