यह भी याद करें,
यह भी फरियाद करें।
कि मिलता रहे
हमें, हम सबको,
सदा, सदा और हमेशा।
मां का प्यार... ,
बहन का प्यार... ,
कभी-कभी दुल्हन का भी प्यार... ।
यह भी याद करें,
यह भी फरियाद करें।
कि मिलता रहे
हमें, हम सबको,
सदा, सदा और हमेशा।
मां का प्यार... ,
बहन का प्यार... ,
कभी-कभी दुल्हन का भी प्यार... ।
मुझे याद आता है दुष्यंत की रचना का एक टुकड़ा। मैं बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूं, मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं .....। कविता किसी दूसरे अर्थ में लिखी गयी है, पर मुझे इसका जो मतलब समझ में आता है, उसका नजारा कराना चाहूंगा। नजारों की नजर यह है कि जो कुछ भी सामने दृष्टिगोचर है, कम से कम उस पर तो पूरी नजर फेर ही ली जाए। अंधेरा है तो अंधेरा कहिए, सुबह है तो सुबह। अंधेरे को सुबह कहने-समझने में खतरे ही खतरे हैं।
तीन दृष्टांत हैं, तीन तरह की घटनाएं। ये सभी के सामने घटती रहती हैं, पर शायद ही कभी किसी ने इसकी गहराई थामने की कोशिश की हो। आइए, कम से कम मौके और दस्तूर का लिहाज करते हुए अब इसकी गहराई नाप ली जाए। मेरा मानना है कि एक बार इन घटनाओं के जेरेसाया हकीकत और फसाने को ठीक-ठीक समझ गए तो संवर गया भविष्य, सुधर गया कल। वह कल जो कभी आता ही नहीं है। जब आता है तब आज बन जाता है। ये तीन बातें है फेट, ट्रस्ट और होप।
दृष्टांत एक - एक गांव में वहां के लोगों ने बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने का समय निश्चित किया। तय समय पर सारे लोग वहां प्रार्थना के लिए आए। पर, सभी खाली हाथ थे। खाली हाथ यानी प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ेंगे और काम मुकम्मल। पर, वहां एक ऐसा बच्चा भी आया, जिसके हाथों में छाता था। उसे भवितव्यता पर भरोसा था कि हमारे कृत्य यदि बारिश के लिए किए जा रहे हैं तो बारिश होगी। और यदि बारिश होगी तो भींगने से बचने के लिए उसके पास छाता था। यह क्या था। यह था फेट का नमूना।
दृष्टांत दो - एक बच्चे को आप आकाश में उछालते हैं। उसे तो अपनी मौत के भय से थर-थर कांपना चाहिए। पर नहीं, वह हंसता है, किलकारियां मारता है, चहकता है। उसे भरोसा है कि आप उसे गिरने नहीं देंगे, आप उसे मरने नहीं देंगे। क्या है यह? यह है ट्रस्ट।
दृष्टांत तीन - हर रात आप सोने जाते है। सोते भी हैं और सोने से पहले आप कल का पूरा मेनू तैयार कर लेते हैं। एक-एक मिनट तक का। यह करेंगे, वह करेंगे। यहां जाएंगे, वहां जाएंगे। कोई कभी यह नहीं सोचता कि अरे अभी सोया, कल जगेंगे कि नहीं पता नहीं। पर नहीं, आप या कोई ऐसा नहीं सोचता। क्या है यह? यह होप है।
फेट, ट्रस्ट, होप के बहुत सारे उदाहरण हो सकते हैं, पर समझने की बात यह है कि भविष्य संवारने के लिए चेतनशील व्यक्ति में इन तीन चीजों का होना मुझे जरूरी लगता है। आपमें किसी काम के शुरू करने से पहले छाता लेकर चलने वाला फेट होना चाहिए, अपने इर्द-गिर्द के माहौल-परिवेश से कुछ लम्हों- कुछ लोगों पर आपका ट्रस्ट होना चाहिए और एक बार सो गए तो फिर जगेंगे, ऐसा होप होना चाहिए। होना चाहिए कि नहीं? फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास को लेकर भविष्य संवारने के लिए टिप्स तलाशती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।
इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कही से ढूंढ़ लाओ दोस्तों, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है। एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है। एक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है। निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी, पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है। दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर, और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है। - दुष्यंत
भविष्य की चिंताएं कैसे-कैसे फैसले कराती है, इसे मैंने देखा है और देखकर हैरान भी हुआ हूं। कुछ दृश्यों से आपको भी दो-चार कराना चाहूंगा। हो सकता है इन उदाहरणों से भविष्य और उसके मैकेनिज्म को समझने में आसानी हो और यह अनुभव किसी काम आ जाए।
पहला उदाहरण - एक गांव में एक व्यक्ति मर गया। उसकी बेटी मैट्रिक का एक्जाम दे रही थी और उस रोज भी उसका पेपर था। मैंने देखा कि बाप की लाश दरवाजे पर पड़ी थी और रोती बेटी को गांव वालों ने मोटरसाइकिल पर बिठाकर एक्जाम देने के लिए भेज दिया था। लोग चर्चा कर रहे थे, जाने वाला तो गया, अब इस लड़की का भविष्य क्यों खराब किया जाए?
दूसरा उदाहरण - कुछ दिनों पहले उसी गांव में एक लड़के की शादी होनी थी। शादी के लिए वही तिथि शुभ मानी गयी और तय भी कर ली गयी, जिस तिथि को उस लड़के को मैट्रिक का एक्जाम देना था। लड़के के घर से एक्जामिनेशन सेंटर की दूरी करीब तीस किलोमीटर थी। अब संयोग देखिए, जिस दिन बरात जानी थी, उस रोज रोडवेज में हड़ताल हो गयी। एक्जाम और शादी, लड़के के लिए तो दोनों ही भविष्य के लिए जरूरी चीजें थीं।
उसने अलस्सुबह साइकिल से तीस किलोमीटर की यात्रा की और निश्चित समय पर परीक्षा केन्द्र पहुंचा। उसी साइकिल से फिर उसने तीस किलोमीटर की दूरी तय की और बरात के लिए घर पहुंच गया। शादी तो हो गयी पर परीक्षा में वह फेल हो गया। पर, परीक्षा में फेल होने का फिक्र न तो लड़के को और न ही उसके किसी घर वाले को था। सभी का यही कहना था कि परीक्षा तो अगले साल भी आएगी। शादी का शुभ मुहूर्त में होना जरूरी था।
यह दोनों उदाहरण मेरी समझ से भविष्य के उस मैकेनिज्म को फोकस करते हैं, जहां सेचुरेशन लेवल पर भविष्य का अर्थ भी बदल जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति को इस सेचुरेशन लेवल को अलग कर समझने की जरूरत है। जैसे आप किसी काम में तल्लीनता से लगे रहते हैं और देखते ही देखते जब उसका निहितार्थ खत्म हो जाता है तो बाद में उस काम को याद करना भी आप जरूरी नहीं समझते।
कुछ बातें ऐसी हैं, जिसका फलाफल और निहितार्थ जानते रहने के बावजूद व्यक्ति उसे अपना भविष्य समझता है और उसे सुधारने में लगा रहता है। जैसे करीब नब्बे प्रतिशत बच्चे अपने अभिभावक को बुजुर्गावस्था में लात मार देते हैं, पर शायद ही कोई पिता हो जो अपने बच्चे का भविष्य संवारने से अपना मुंह मोड़ता हो। और इसी सिलसिले में यह भी कहना चाहूंगा कि बाप बुढ़ापे में भले अपने बेटों से लात खा रहा हो, पर वह कभी भी अपने बेटों का बुरा नहीं सोचता।
भविष्य बड़ा रहस्यमय चीज है। अनजान, अबूझ। धर्म - अध्यात्म और साधु-संतों तक की बातें उसका रहस्य नहीं खोल पातीं। और इसी रहस्य पर पकड़ बनानी है। तो कैसे बने पकड़? कैसे संवरे भविष्य? इस सिलसिले में अभी चर्चा जारी रहेगी। फिलहाल इतना ही।
ऐसा कहा जाता है कि जब आप हंसते हैं तो ईश्वर के लिए प्रार्थना करते हैं। जब आप दूसरों को हंसाते हैं तो ईश्वर आपके लिए प्रार्थना करता है। सबक - खुद खुश रहिए और दूसरों को भी खुश रखा कीजिए।